नारी तुम सबला बन जाओ (9th Edition )
नारी तुम सबला बन जाओ… डॉ. कनक लता तिवारी,मुंबई ख़ूबसूरत यादें अब तो पत्थरों में क़ैद हैं आज भी ये
नारी तुम सबला बन जाओ… डॉ. कनक लता तिवारी,मुंबई ख़ूबसूरत यादें अब तो पत्थरों में क़ैद हैं आज भी ये
बँटवारा – गिरिधर राय, कोलकाता पश्चिम की नकल ने माँ-बाप को दर किनार कर बीवी-बच्चों को ही खास कर दिया भारतीय संस्कृति
उठनेके पहलेही में , में अनगिन बार गिरा हूँ – राकेश शंकर त्रिपाठी, कानपुर. आशाओं की डोरी से, लिपटी हुई
कैद है ग़ज़ल डॉ. कनक लता तिवारी,मुंबई ख़ूबसूरत यादें अब तो पत्थरों में क़ैद हैं आज भी ये औरतें तो
बन्दर देखे दर्पण में व्यग्र पाण्डे, गंगापुर सिटी, राजस्थान बंदर जब जब देखे चेहरा दर्पण में सबकुछ अर्पण कर देता
चाँद की रंजिश डॉ.दुर्गेश कुमार शुक्ल,प्रयागराज नीलाम्बर से नीला चाँद जब जब नीचे तकता होगा, देख धरा के चाँद को
कश्म कश पल्लवी अवस्थी , मसकट ,ओमान “पटाखो पर प्रतिबंध है, सुबह तुम खुद ही तो बता रही थी।” नवीन
अनुक्रमणिका कविताएं / ग़ज़ल : मीत प्रकृति का श्रेष्ठ सृजन “इंसान” पंद्रह अगस्त राखी भेजवा देना नया भारत, नये हौसले