निदेशक की कलम से (9th Edition)
निदेशक की कलम से इच्छाओं का अनंत व्योम, उस पार हुआ जाना मुश्किल; इक पूरी ज्यों हुई त्वरित, दूजे पर
निदेशक की कलम से इच्छाओं का अनंत व्योम, उस पार हुआ जाना मुश्किल; इक पूरी ज्यों हुई त्वरित, दूजे पर
सम्पादक की ओर से पाठकों के लगाव और कलमकारों की आत्मीयता के बल पर ‘जनमैत्री’ अपने उद्देश्यों के साथ अविरल
देशी मुहावरे आँख का तारा, आँख की पुतली घर घाट एक करना पासा पलटना दीवारों के कान होना टाँग अड़ाना
प्रगति के अवशेष समेटो अमित मिश्रा, सरायकेला प्रगति उतनी ही आवश्यक है जितना कि देश। भारत की आजादी के पश्चात
साधारण नहीं होते राखी के धागे हमारे भारत देश में अनेक त्योहार मनाये जाते हैं, जिनका उद्देश्य जीवन को सरस
निदेशक की कलम से धार्मिक स्थलों के प्रति बढ़ता यात्रा का एहसास अपने आप में एक सुखद अनुभव है, फिर
सम्पादक की ओर से जन संस्कृति, जन परम्पराओं- प्रथाओंं और भारतीय संस्कारों का प्रतिनिधित्व कर रही ‘जनमैत्री’ के प्रकाशन का
प्रधान संपादक की ओर से विविधवर्णी रचनाओं के साथ प्रस्तुत है ‘जनमैत्री’ का दूसरा अंक। पत्रिका के प्रवेशांक को आप
निदेशक की कलम से जीवन प्रतिपल आशाओं से, जुड़ा हुआ एक सपना है । उम्मीदों के सूरज से बल ले,