श्वान व्याख्यान

ब्रह्मांड के रचयिता, ईश्वर ने बहुत सी प्रजातियों का निर्माण अत्यंत ही मन से एवं मनन पूर्ण किया है। मानव, पशु-पक्षी, नदी-समुद्र, पेड़-पौधे, नदी-समंदर, जातियाँ प्रजातियाँ, हवा-पानी, आकाश-पाताल इत्यादि । जितनी भी रचनायें ईश्वर द्वारा की गयी हैं, वे समस्त रचनायें किसी न किसी रूप में सम्पूर्ण ब्रह्मांड के लिये उपयोगी सिद्ध होती हैं।
उन्हीं रचनाओं में से एक प्रमुख रचना है – श्वान अर्थात कुत्ता । श्वानों को हम प्रमुख रूप से दो भागों में रख सकते हैं – देशी एवं विदेशी या आवारा और पालतू। लैब्राडोर, जर्मन शेफर्ड, बुलडॉग, माल्टीज नस्ल के कुत्तों को विदेशी कुत्तों की संज्ञा दे सकते हैं और परिआह, चिप्पीपराई आदि जैसे कुत्तों को देशी नश्ल के प्रकारों में पा सकते हैं।
हमने तो अपने गाँव के पनघट पर देखे थे देशी एवं मस्त कुत्ते पर चक्कर खा गये हम तो रे भैया देख -विदेशी जातियाँ ।
कहते हैं कि बचपन में हमारा मन और मस्तिष्क अत्यंत ही मासूम और कोमल होता है। उस समय काल में घटित हुयी घटनाओं का, आस-पास के वातावरण का, विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों के संपर्क का, अध्यापकों का, मित्रों एवं शत्रुओं का, समाज में हो रहीं अंतःक्रियाओं का, हमारे कोमल मन-मस्तिष्क पर एक विशेष प्रभाव होता है। हमारी सीखने की क्षमता आज की अपेक्षा उस वक्त अत्यंत ही तीव्र होती है और वह छाप जीवन-पर्यन्त हमारे साथ-साथ यात्रा पर चलती रहती है।
हमें अपने बचपन के दो कुत्ते याद हैं – एक तो हमारे गाँव का और दूसरा कलकत्ता महानगर का। आज भी जब हम किसी भी कुत्ते को देखते हैं तो उनमें उन्हीं दोनों को प्राप्त करने की कोशिश अचेतन मन एक प्रयास करता है। यदि देसी है तो गाँव वाला और यदि विदेशी टाइप है तो कलकत्ते वाला।
बचपन में मैं जिस स्कूल में पढ़ता था, उसके बगल में एक बंगाली परिवार रहा करता था। उनके घर में एक विदेशी टाइप कुत्ता पला हुआ था। बड़ा सा, ऊँचा सा, आगे का मुँह श्याम वर्ण सा, शरीर के बाल कुछ श्याम वर्ण से और कुछ पीत वर्ण से । गले में एक काला पट्टा । आवाज में दम । उस वक्त शायद अभिजात्य वर्गों में इस प्रकार के नस्ल के कुत्ते पाये जाते थे। उसको देख कर डर भी लगता था किंतु अपना सौभाग्य भी था कि स्कूल शुरू होने के वक्त एवं छुट्टी होने पर उसका दर्शन लाभ हो जाता था एवं एक विशेष प्रकार की प्रसन्नता की अनुभूति होती थी।
गाँव में हमारे घर में एक कुत्ता था, जिससे हमें खेलने-कूदने का सुअवसर प्राप्त हुआ। सुडौल शरीर, हर वक्त चौकन्ना, उसके कान घोड़े के जैसे खड़े,पूँछ टेढ़ी तो थी किन्तु थी तो वह अत्यन्त सुन्दर एवं घुमावदार । अदम्य साहस जिसका परिचय हमें उस वक्त प्राप्त हुआ जब हम अपने गाँव से दूसरे गाँव अपने मामा के यहाँ जा रहे थे। चार-चार, पाँच-पाँच कुत्तों से अकेले लोहा लेना और लड़ कर आने पर अपने कानों को और खड़ा करना कि मानो वह कह रहा हो कि हमने धूल चटायी है सभी को । जब तक मैं गाँव में रहा उसको दूध-रोटी खिलाता रहा। गाँव छूटा और वह भी छूटा।
कुत्ते शब्द के उच्चारण से दो प्रकार की तरंग – दैर्ध्य हमारे मन व मष्तिस्क में उत्त्पन्न होती हैं, एक नकारात्मक एवं दूसरी सकारात्मक । अब यह प्रत्येक व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह उसे किस प्रकार से ग्रहण करता है। अक्सर हम जब किसी को अपने वचनों से किसी को प्रताड़ित करते हैं तो अभद्र भाषा में यह कहते हैं कि कुत्ते हो क्या ? इस शब्द का प्रयोग शायद हमें मानसकि रूप से आघात पहुँचाने के लिये किया गया होता है किन्तु इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि मनुष्य सुविधानुसार अपनी प्रतिबद्धता को, अपनी वफादारी को समयानुसार परिवर्तित कर लेता है किन्तु कुत्ता कभी भी अपनों के साथ धोखा नहीं कर सकता। स्वामिभक्ति के लिये यदि हम किसी
की उपमा देते हैं तो वह केवल यही जानवर है जोकि हमें सदैव ही कृतज्ञ रहने की प्रेरणा से प्रेरित करता है। कुत्ते की प्राण – शक्ति गजब होती है। कहते हैंकि इसकी प्राण – शक्ति मनुष्य की सूचने की शक्ति से कई गुना ज्यादा होती है। घ्राण शक्ति इतनी तीव्र कि छठवें मंजिल पर रहने के बावजूद चमड़े का चप्पल या जूता यदि घर के बाहर रखा है तो वह कहीं से भी आकर उसका काम तमाम कर सकता है। प्राण – शक्ति के गुण के आधार पर ही इन्हें पुलिस, सेना और सुरक्षा बलों का एक
महत्वपूर्ण अंग के रूप में स्वीकार किया जाता है। ये खतरनाक पदार्थों, बम, कोविड 19 वायरस एवं आतंकवादियों का पता लगा सकते हैं। अभी हाल में ही जूम ने अनन्तनाग में दो आतंकवादियों को मारने में महती भूमिका का निर्वहन करते हुये शहीद हो गया। उसकी प्रतिबद्धता औरस्वार्थहीन सेवा के प्रति हम सब नमन करते हैं। लाइका डॉगी प्रथम जीवित प्राणी था जो कि वर्ष 1957 में स्तनिक 2 के साथ अंतरिक्ष व पृथ्वी की परिक्रमा की।
“श्वान निद्रा तथैव च” के बारे हमें हमेशा शिक्षा दी गयी है। एक आदर्श विद्यार्थी के पाँच लक्षणों में से एक है – श्वान निद्रा । एकदम चौकन्ना, किसी भी आहट पर तुरंत जग जाना। हल्की नींद, कम समय सोना और अधिक समय ध्येय एवं लक्ष्य पर केंद्रित ।
कोई यदि आपसे कहे कि आपका जीवन कुत्ते जैसा हो तो निश्चित हो जाइये क्योंकि वह आपके लिये शुभकामनाएं व्यक्त कर रहा है सभी कुछ आपके और हमारे प्रारब्ध पर निर्भर करता है। आप अगर अपने आसपास नजर दौड़ायेंगे तो आप निश्चित रूप से यह पायेंगे कि बहुत सारे कुत्तों का जीवन एक आम और मध्यम वर्ग से भी अच्छा व्यतीत हो रहा है। समस्त वे सुख – सुविधाएं जिसके लिये एक आम व्यक्ति संघर्षरत है, वे सब उसे सहज ही उपलब्ध हैं। बड़ी-बड़ी एवं महँगी गाड़ियों में घूमना, एसी का उपभोग, स्वमी की गोद, बड़े ऊँचे गद्दे, अलौकिक एवं अभिनव सुन्दर जीवन । यदि आवारा भी हैं तो स्वतंत्रता का जीवन, उन्मुक्त होकर विचरण, प्रत्येक तनाव से दूर एवं अपने जीवन में मशगूल । मैं एक शहर की एक बड़ी कालोनी में जहाँ निवास करता था, कुत्ते परिवार के दिलों में निवास करते थे। गाय को रोटी खिलाने के लिये काफी प्रयास कर ढूँढना पड़ता था ।
कुत्ते की महत्ता आज कल टीवी विज्ञापनों में दिखायी देता है। इबिक्सकैश, फिनोलेक्स, हेटटीच के विज्ञापनों का केन्द्रबिन्दु कुत्ता ही दिखाई देता है कुत्ते होने की महत्ता पितृ – पक्ष में भी देखते हैं। पूर्वजों के लिये श्राद्ध करते वक्त दूसरा ग्रास कुत्ते के लिये निकाला जाता है। ऐसी मान्यता है कि कुत्ते को भी अन्य जीवों के साथ भोजन कराने से पितरों की आत्मा तृप्त हो जाती है और हमें आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह भैरव जी का वाहन है तथा यह कई बुरे ग्रहों को शान्त करने का कारक है।
कुत्ते से पंगा लेने का तात्पर्य यह है कि मुसीबत को आमंत्रित करना। कुत्ता अगर आपके घर के आसपास आकर रोये तो आफत, यदि आपको काट ले तो चौदह इंजेक्शन । कुत्ते अगर आपको सड़क पर दौड़ाये तो बिना चोट के आप बच नहीं सकते, प्रसाद तो प्राप्त होगा ही। हमारी औकात ही क्या है जब एक कुत्ता, केवल एक ही कुत्ता सम्पूर्ण प्रशासन को हिला सकता है। हमने अक्सर देखा होगा कि खेल के मैदान में हजारों की भीड़ की उपस्थिति, प्रशासनिक व्यवस्था चाक – चौबंद, परिंदा भी पर न मार सके किन्तु इन सबके होते हुए भी जब कुत्ता मैदान में प्रवेश कर जाता है तो प्रशासन के पसीने छूट जाते हैं उसको बाहर करने में। आगे-आगे कुत्ता, पीछे-पीछे
जवान और हजारों दर्शकों का शोर, अद्वितीय दृश्य । प्रत्येक बार यह प्रतिज्ञा होती है कि कुत्ते को मैदान में प्रवेश करने से रोका जायेगा किन्तु कुत्ता भी हार नहीं मानता और अपने उद्देश्य में सफल हो जाता है। एकलव्य ने कुत्ते से पंगा लिया था, उसका परिणाम उनको भोगना पड़ा था और उनको अपने दायें हाथ के अंगूठे से वंचित होना पड़ा था। कुत्ता अगर भौंक रहा था तो भौंकने देते, अपने कार्य में तल्लीन रहते किन्तु उसके मुँह को बाणों से बंद करना महँगा पड़ गया।
धर्मराज युधिष्ठिर ने कुत्ते का साथ नहीं छोड़ा और उसके लिये अडिग रहे तो वह सशरीर स्वर्ग को प्राप्त हुये। स्वामी विवेकानंद जी ने एक परेशान व्यक्ति को भी कुत्ते के माध्यम से जीवन-दर्शन को सहजता से समझया था। हाथी और कुत्ते के सम्बन्धों से कुछ सीखने को प्राप्त होता है।
शास्त्रों का मत है कि कुत्तों का संरक्षण होना चाहिये, उसे भोजन देना चाहिये। घर की एक रोटी पर कुत्ते का अधिकार है। इसे प्रताड़ित नहीं करना चाहिये। इसकी सेवा करनी चाहिए, किन्तु घर के बाहर ।
आजकल समाचारों में कुत्तों के आतंक के बारे में काफी चर्चा है। बहुत लोग कुत्तों के आक्रमण का शिकार हो रहे हैं। इस सन्दर्भ में माननीय उच्चतम न्यायालय को भी संज्ञान लेना पड़ रहा है। सिविल सोसायटी दो विचारों में बैट गई है, एक डॉग लवर्स और दूसरे इसके विपक्ष में।
प्रत्येक जीव को, अपना जीवन जीने का अधिकार है, प्रत्येक कार्य को करने का अधिकार है किन्तु वह अधिकार वह कार्य किसी को कष्ट न प्रदान करे यह हम सभी की जीवन शैली का महत्वपूर्ण अंगहै और यह हमारी संवेदनशीलता का द्योतक है।
उन अधिकारों के लिये जो भी दिशा-निर्देश हैं उनका पालन करना हम सभी का कर्तव्य है। किन्तु यदि जीवन ही संकट में पड़ जाय तो कठिन निर्णय लेना आवश्यक हो जाता है।
डॉ रामधारी सिंह जी ने लिखा है कि
रुग्ण होना चाहता कोई नहीं, रोग लेकिन आ गया जब पास हो
तिक्त औषधि के सिवा उपचार क्या ? शमित होगा वह नहीं मिष्ठान्न से ।
कोई न कोई उपचार निकालना होगा, जियो और जीने दो के सिद्धान्त को प्रतिपादित करना होगा और जीवन को सहज करना होगा।
