कर्मयोगी
करवटों में नींद ढूंढे,
उलझनों में हौसले।
भीड़ में पहचान खोजे,
भटकनों में मंजिलें ।।
लक्ष्य के प्रति हो समर्पित,
कष्ट को वरदान जाने।
अनवरत हो कार्य कोशिश,
इष्ट का एहसान माने ।।
हो सफलता मन प्रफुल्लित,
तनिक ना अभिमान आये।
विफलता में हो न विचलित,
फिर नए अभियान ध्याये ।।
स्वर्ण कुंदन बन सका ,जब
अग्नि में वह था तपाया।
लाख कंटकपूर्ण पथ पर
रास्ता अपना बनाया ।।
हर समर्पित कर्मयोगी की,
यही प्रचलित कहानी।
नाव तैरा दे ,जहां पर
बूंद भर भी हो न पानी ।
डॉ. लक्ष्मी शंकर त्रिपाठी, कानपुर
