तुम कैसी माँ हो

डॉ. कनक  लता  तिवारी मुंबई

घड़ी ने 4:00 बजाये ! संजना जी चौंक कर उठ बैठी। अरे ! प्रत्यूष क्या अभी तक सोया पड़ा है ? अभी तक तो रोने लगता। उठ कर पालने में देखा प्रत्यूष नहीं था। अलका लेकर गई क्या बच्चे को ? कितनी बार उन्होंने समझाया कि बच्चे को उनके सामने ही पालने से उठाया करे – गर्दन टेढ़ी करके उठा लेती है बाद में बच्चा दर्द से चिल्लाया करता है।

प्रत्यूष का नाम लेते ही उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई l पोता प्यारा होता ही है, उनकी आँखों का तारा। पिता की लाड़ली अलका को घर लाने के बाद सिर्फ एक ही चीज अलका ने सही की जो उनके वंश का उत्तराधिकारी दिया। वरना उसका हर काम उल्टा पुल्टा ही होता है।

संजना जी अलका के कमरे में गई लेकिन वह तो अकेले सोई पड़ी थी। अरे तो फिर प्रत्यूष कहां गया ? एक महीने का बच्चा अपने आप तो जा नहीं सकता है कहीं। फिर कौन ले गया ? संजना जी कई सालों से इसी सोसाइटी में रह रही हैं। अलका के पति पराग का जन्म इसी में हुआ, पराग से छोटा अनुभव भी यहीं पैदा हुआ। उनका देवर सर्जन भी उनके साथ रहता है उसके कोई बच्चा नहीं है। बीबी से उसका तलाक हो चुका है।

अंजना जी का ध्यान फिर से प्रत्यूष की ओर गया। उनका कमरा तीसरी मंजिल पर है जहां वे प्रत्यूष को लेकर सोई थी। वैसे तो उनका कमरा दूसरी मंजिल पर है लेकिन पोते को मालिश के बाद अच्छी धूप मिले अतः वे तीसरे माले पर सोने लगी।

बच्चे के होने के बाद से अलका अन्नमयस्क रहने लगी। बात भी नहीं करती है ना उसका कोई काम करना चाहती है – जैसे माँ की ममता का उदय ही नहीं हुआ उसमें। अतः संजना जी बच्चों के सारे काम देखती हैं और उन्हें आनंद भी आता है यह सब करने में। पति का कार के स्पेयर पार्ट्स का बिजनेस है उसी में देवर उनकी सहायता करता है।

अभी तो साल भर पहले ही पराग के साथ अलका की शादी हुई है। काफी अमीर परिवार से है और अभी तक सब ठीक ही चल रहा था लेकिन बच्चे के होने के बाद से काफी लापरवाह हो गई है। अलका पहले भी लापरवाही करती थी, लेकिन कम उम्र सोच कर वे चुप रहती थी लेकिन अब तो वो खुद माँ है और उसे जिम्मेदारी निभानी चाहिए। संजना जी को फिर प्रत्यूष याद आया, अब उनका दिल घबराने लगा था।

छोटा बच्चा जो रेंग भी नहीं पाता है कहां चला गया ? बचपन में जब वे छोटी थी एक बार हल्ला मचा था कि एक छोटे बच्चे को अपना बच्चा समझ कर बंदर उठा ले गया और पेड़ पर बैठ गया। बाद में लोगों के कई लालच देने पर पेड़ से उतरा। बच्चे की मां डर कर बेहोश हो गई थी।

अंजना जी को अपने ऊपर गुस्सा आने लगा सिटी में तो बंदर आने से रहा। पड़ोस से भी कोई नहीं आ सकता। दोनों बिल्डिंगों के बीच की दीवार पर प्लेन कांच की एक दीवार खड़ी है। कौन आया और कौन बच्चे को ले गया ? पलंग के नीचे तो नहीं लुढ़क गया ? संजना जी सचमुच पलंग के नीचे झांकने लगी, वहां कोई नहीं था।

अब संजना जी से नहीं रहा गया। जाकर अलका को उठाने लगी, उठो बहू देखो प्रत्यूष कहां है ? अलका आंखें मलती उठ बैठी। कहां गया ? आपके पास तो सोया था ना ? हां सोया तो था लेकिन अब नहीं है। अलका उठकर बोली बाई तो नहीं आई जो ले गई हो। संजना जी ने कहा बाई को दरवाजा तो मैं या तुम ही खोलेंगे ना। अलका बोली क्यों चाचा भी तो खोल सकते हैं। आज दोपहर में खाना खाने आए थे तो सर दुख रहा था। इसलिए नीचे अपने कमरे में लेटे हैं।

संजना नीचे उतरकर सर्जन को आवाज देने लगी। सर्जन उठकर बाहर आया, क्या है भाभी ? संजना ने कहा अरे प्रत्यूष नहीं मिल रहा तूने किसी को दरवाजा तो नहीं खोला ? सर्जन ने कहा नहीं भाभी मैं तो खाने के बाद सर दर्द की दवा लेकर सोया तो अभी उठा हूं। घर की डोर बेल बजी। संजना जी ने दरवाजा खोला तो महरी थी। संजना जी के उड़े घबराए चेहरे को देखकर मेहरी ने पूछा क्या हो गया बच्चे की तबीयत ठीक नहीं है क्या ? संजना जी बोली तबीयत गई भाड़ में, प्रत्यूष का पता नहीं चल रहा है। महरी भी भौचक्की हो गई। अब सभी मिलकर घर के हर कोने में प्रत्यूष को ढूंढने लगे। संजना जी बोली अलका तू छत पर अच्छी तरह से चेक कर कोई बड़ा बाज ना आ गया हो। महरी बोली पगला गई हो क्या बीवी जी ? इतने बड़े बच्चों को चिड़िया लेकर उड़ेगी और वह चूं चां भी नहीं करेगा। संजना जी दहाड़े मार कर रोने लगी। उनके आंसू रुक नहीं रहे थे।

तभी उनके पति और बेटा घर में आए। पति और अनुभव को देखते हुए और जोर-जोर से रोने लगी। वह लोग घबरा गए और सारी बात की जानकारी होने पर पुलिस स्टेशन जाने की सलाह की गई। पराग रात के 9:00 बजे तक ही घर आता था, अतः उसे भी फोन कर बताया गया। थाने पहुंचकर संजना जी ने सारी बात बताई और अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई।

पुलिस तुरंत उनके घर पहुंची घर वालों से काम करने वालों से पूछताछ होने लगी। इंस्पेक्टर ने आकर वह कमरा भी देखा जहां संजना जी बच्चे को लेकर सोई थी। वहीं पर बगल में अलका और पराग का कमरा भी था। दोनों कमरों के दरवाजे छत पर खुलते थे। छत पर एक बड़ी सीमेंट की पानी की टंकी थी और वही एक कोने में एक बड़ी प्लास्टिक की टंकी थी। दोनों टंकियां के ढक्कन बंद थे वैसे भी डेढ़ महीने का बच्चा खुद से तो वहां जा नहीं सकता था, मामला बड़ा ही रहस्यमय बनता जा रहा था। इंस्पेक्टर ने फिर से कमरों की तलाशी शुरू की अलका के बाथरूम में एक कार्डिगन टंगा था, जिसकी बाहें भीगी हुई थी। पूछने पर अलका ने बताया कि संजना जी के उठाने पर वह मुंह धो रही थी तो धोने के समय बाँह भीग गई थी, इसलिए उसने कार्डिगन को टांग दिया था।

इंस्पेक्टर को कोई बात खटक रही थी तो उसने धीरे-धीरे फिर से सबसे पूछताछ शुरू की। संजना जी से उसने पूछा आप अलका को जगाने गए तो वह क्या कर रही थी। संजना जी ने कहा वह सो रही थी। इंस्पेक्टर ने कहा एक बात याद करके बताइए क्या उसने स्वेटर पहना हुआ था ? संजना जी ने दिमाग पर जोर डाला लेकिन याद ना आया। इंस्पेक्टर ने उस दिन के लिए तफ्तीश बंद की। दूसरे दिन सुबह फिर घर पर पुलिस आ गई। आज इंस्पेक्टर ने सीधे छत की राह ली और कांस्टेबल से दोनों टंकियों के ढक्कन उठाकर देखने को कहा। नीचे रखी प्लास्टिक की टंकी का ढक्कन उठते ही तैर उठी फूल से प्रत्यूष की लाश l

घर में हाहाकार मच गयाl संजना जी तो सन्न हो चुकी थी लेकिन सबसे ज्यादा अलका रो रही थी आखिर मां थी। पोस्टमार्टम से पता चला बच्चे की गला घोट कर हत्या की गई है। और मृत्यु का समय, जब संजना जी ने उसे खोजना शुरू किया उससे आधा घंटा पहले का है। सभी हाय हाय कर चीख उठे। पुलिस का डॉग स्क्वायड आया तो कुत्ता संजना, अलका के कमरे और छत की टंकी के बीच दौड़ता रहा। इंस्पेक्टर अनुभवी था थोड़ी पूछताछ से अलका टूट गई। हां उसने ही जान ली थी अपने बेटे की। रोज-रोज लापरवाही के लिए डांट खाते-खाते पता नहीं कब उसने अपने मन में यह ग्रंथि पाल ली थी। वह अपने बच्चे की ही दुश्मन बन गई थी और उसे मौत की नींद सुला दिया। सारे घर को जैसे काटो तो खून नहीं। पुलिस की वैन में बैठी अलका को संजना जी ने झकझोर दिया — मुझे मार डालती उस नन्ही जान को क्यों ?

मुकदमा चला अलका को सजा हुई। डॉक्टर की जांच ने उसे पोस्टरनटल डिप्रेशन का शिकार बताया। लेकिन इससे अपराध की गंभीरता तो कम नहीं होती। मानव का अनमोल जीवन इस तरह नष्ट करने का किसी को हक नहीं और यह तो उस बच्चे की जननी थी। उसकी मां अलका जेल में सजा काटते हुए क्या सोचती है कैसे पता चले और पत्थर की तरह सुन्न बैठी संजना जी क्या सोचती हैं कैसे पता चले ?

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