विविधवर्णी रचनाओं के साथ प्रस्तुत है 'जनमैत्री' का दूसरा अंक। पत्रिका के प्रवेशांक को आप सबका जो
स्नेह-सद्भाव प्राप्त हुआ, वह अत्यंत प्रेरक है। इस हेतु सभी रचनाकारों एवं सुधी पाठकों के प्रति आभार।
विषयगत विविधता इस दूसरे अंक की खासियत है। साहित्य, संस्कृति, अध्यात्म, योग आदि क्षेत्रों से लेकर परिवार, संस्कार, आहार, व्यवहार आदि विषयों तक केन्द्रित रचनाओं से इसे सुसज्जित किया गया है। श्रीमद्भगवद्गीता के प्रथम अध्याय के श्लोकों का भावानुवाद इस अंक में प्रकाशित करते हुए हमें प्रसन्नता हो रही है। बड़ी निष्ठा से सरल भाषा में इन दोहों की रचना की है श्री राकेश शंकर त्रिपाठी ने। आगामी अंकों में क्रमश: इसे जारी रखने की हमारी योजना है।
क्रांतिवीर चंद्रशेखर आजाद के जीवन के अछूते प्रसंगों पर केन्द्रित तथा श्री सतीशचन्द्र मिश्र के सौजन्य से प्राप्त आलेख का समावेश इस अंक का विशेष आकर्षण है। इसे भी हम अगले अंकों में जारी रखेंगे। 'शिष्टाचार' के माध्यम से साहित्य-संस्कृति एवं आचार-व्यवहार की सीख देने वाली विवाह की पुरानी रस्म का पुनरावलोकन करनेवाला आलेख नई पीढ़ी को रोचक लगेगा, साथ ही पुरानी पीढ़ी के पाठकों को अतीत की स्मृतियों से संबद्ध करेगा - ऐसा हमारा विश्वास है।
पत्रिका के इस अंक में कॉफी की कथा, कानाताल का यात्रा वर्णन, हवा महल की रोचक चर्चा, बैसवाड़ी मुहावरे, मेडिटेशन, लक्जरी से लेकर सोनपरी चिड़िया तक रचनाकारों ने अपनी कलम चलाई है। परिवार तथा पिता से संबद्ध रचनाओं का मर्म पाठकों को अवश्य ही प्रभावित करेगा। पिता पर केन्द्रित आलेखों से गुजरते हुए मुझे कवि नागेश पाण्डेय 'संजय' की पंक्तियाँ याद आती रहीं -
'नेह-घट हैं पिता / एक वट हैं पिता, आत्मज के सदा ही / निकट हैं पिता।
मन कभी भी भंवर में फँसा, तो लगा- / भाव हैं, नाव हैं, एक तट हैं पिता ॥'
साहित्य की विविध विधाओं (कविता, कहानी, संस्मरण, लघु कथा, रेखाचित्र, यात्रावृत्त, रिपोर्ताज, व्यंग) का प्रतिनिधित्व करने वाली कई रचनाएँ पाठकों को उनकी रुचि के अनुसार परितृप्त करेंगी, ऐसा मेरा विश्वास है। कई रचनाओं के लेखक तो ऐसे हैं, जिन्होंने संभवतः पहली बार अपने भावों - विचारों को लिपिबद्ध किया है। नवोदित रचनाकारों की इसी सृजन - क्षमता को उजागर करना हमारा उद्देश्य है। इन सभी प्रतिभाओं को प्रेरणा देंगी डॉ. अरुण प्रकाश अवस्थी की ये काव्य - पंक्तियाँ -
'सृजन के पन्ने न रह जायें अधूरे, देख लो सूरज समय का ढल रहा है।'
प्रसन्नता की बात है कि कुछ बाल-प्रतिभाओं ने भी अपनी सक्रिय भागीदारी से इस अंक को समृद्ध करने में हमारी मदद की है। पत्रिका के कलेवर को आकर्षक बनाने में 'जनमैत्री' टीम के सदस्यों की निष्ठा भी प्रशंसनीय है।
हमें उम्मीद है कि यह अंक भी पाठकों को प्रीतिकर लगेगा।