ये जीवन ये दर्शन नित जो, वहाँ कहाँ हम पायेंगे।
इस अद्भुत दुनिया में फिर से, पुनः लौट कर आयेंगे।।
इतना सुंदर आँगन इसका, वैभव गौरवशाली है।
उतर रहा आँगन में सूरज, शुभ प्रकाश की लाली है।
उतरे नभ से इंद्र यहीं पर, ऐसा स्वर्ग बनायेंगे।
इस अद्भुत दुनिया में फिर से, पुनः लौट कर आयेंगे।।
ओढ़े चादर आसमान की, प्रकृति बड़ी निराली है।
चकाचौंध है हलचल जीवन, वहाँ शून्यता खाली है।
जगमग चमके जीवन ऐसे, हम प्रकाश फैलायेंगे।
अद्भुत दुनिया में फिर से, पुनः लौट कर आयेंगे।।
जीवन लम्बा नहीं मगर हो, बड़ी जिंदगी अभिलाषा।
धूम्र काष्ठ से अच्छा नितप्रति, जलती लकड़ी परिभाषा।
इस परिभाषा की चाहत में, हम जीवन ज्योति जलायेंगे।
इस अद्भुत दुनिया में फिर से, पुनः लौट कर आयेंगे।।
बिन दुख के जीवन खट्टा है, सुख दुख की ही छाया है।
भिन्न भिन्न के मोती इसके, चमकदार यह माया है।
मोहजाल को काट छाँट कर, मोती सूत्र बनायेंगे।
इस अद्भुत दुनिया में फिर से, पुनः लौट कर आयेंगे।।
सुन्दर है संघर्ष यहाँ का, सुन्दर इसका जीवन है।
अद्भुत इसकी पौरुष शक्ती, सुन्दर इसका यौवन है।
वीरा भोग्या वसुंधरा का, मंत्र पुनः हम गायेंगे।
इस अद्भुत दुनिया में फिर से, पुनः लौट कर आयेंगे।।
कहते सब हैं स्वर्ग भला है, कल्प तरु की छाया है।
सभी सुखी हैं सभी निरोगी, आनन्द उमंग समाया है।
पर पृथ्वी पर हम सब मिलकर, ऐसे वृक्ष लगायेंगे।
इस अद्भुत दुनिया में फिर से, पुनः लौट कर आयेंगे।।
पुण्य क्षीण होते ही सबको, मृत्यु लोक फिर आना है।
छूटे हैं जो कर्म अधूरे, पूर्ण उन्हें कर जाना है।
कर्मयोग निष्काम कर्म को, बार बार दुहरायेंगे ।
इस अद्भुत दुनिया में फिर से, पुनः लौट कर आयेंगे।।
राकेश शंकर त्रिपाठी , कानपूर