घड़ी की सुइयों ने सात बजाये। काँची ने एक सरसरी नजर मेज पर सजे हुए डोंगे पर डाली। सब कुछ ठीक है ना ! पीहू और सिड डॉक्टर के यहाँ से सीधे यहीं आयेंगे। कितने दिन से पीहू दही बड़ों की फर्माईश कर रही थी। इसलिए आज काँची ने दहीबडे़ खास तौर पर बनाये थे। वैसे भी सिड और पीहू अपने अपने जॉब में इतने व्यस्त रहते हैं कि एक साथ बैठकर सारे परिवार को खाना खाने का अवसर तो बहुत कम ही मिलता है। सुधीर भी कई बार इसकी शिकायत कर चुके हैं।
तभी दरवाजे की घंटी बजी, काँची दरवाजा खोलने चल दी। बेटी का मुस्कुराता चेहरा देखने के लिए अधीर हो रही थी काँची। पीहू की मुस्कुराहट देखकर हर चीज भूल जाती है काँची। बिना माँ की पीहू को अपनाने में उन्हें एक पल भी नहीं लगा था, जब वह सुधीरजी से शादी करके आई। लोगों ने कहा भी था की दुहाजु से क्यों शादी करनी है। लेकिन उन्हें सुधीरजी का स्वभाव और विचार बहुत अच्छे लगे और इसलिए एक बच्ची के पिता को अपनाने में विलंब नहीं किया उन्होंने।
पीहू और सुधांशु दोनो ही दो बड़े बच्चे हैं जिनकी छोटी छोटी बातों का ध्यान भी काँची को रखना पड़ता है। लेकिन काँची थकती नहीं — 42 वर्ष की उम्र में भी उसने खुद को बहुत फिट रखा है। योग जिम और तैराकी तीनों का उपयोग वह अपने को स्वस्थ रखने में करती है और इन्ही के फलस्वरुप वह भरपूर ऊर्जा पाती है और अपनी उम्र से भी दस साल कम दिखती है, जबकि सुधांशु की प्रवृत्ति मोटापे की ओर है और उनका शरीर थोड़ा भारीपन लिये है। वैसे भी सुधांशु काँची से 6 वर्ष बड़े हैं, फिर भी दोनों में बहुत सामंजस्य है। उम्र के अन्तर को दोनों ने प्यार से कम कर लिया है।
पीहू लेकिन काँची से बिल्कुल अलग है। काँची जहॉं गोरी है वहीं पीहू का रंग गेहुआं है। काँची का कद छोटा है जबकि पीहू पांच फीट छः इंच की है। उसने कमर्शियल आर्ट से ग्रेजुएशन किया है और अब पिकल एडवर्टीज़मेंट में काम करती है।
काँची ने मुस्कुराते हुए दरवाजा खोला लेकिन सामने पीहू के बुझे चेहरे को देखकर चुप हो रही। पीहू के पीछे सिड था। आते ही पीहू कुर्सी पर बैठ गई – माँ थक गई हूँ चाय बना दो। अभी लाई — काँची चाय बनाने चल दी। चाय बनाते समय सोचने लगी क्या हुआ है पीहू को डॉक्टर ने कुछ कहा क्या। फोन पर तो पीहू ने कहा था कुछ रिपोर्टस दिखानी है, रूटीन चेकअप है और अभी ये उदासी। चाय लाकर टेबल पर रखते हुए उसने पीहू और सिड की तरफ देखा। दोनो चुप थे सुधीर भी इस अस्वाभाविक चुप्पी को सहन नहीं कर पा रहे थे। आखिर उन्होंने पूछ ही लिया — क्या कहा डाक्टर ने ? सिड ने कहा कुछ खास नहीं पापा बस कुछ टेस्ट और कराने पड़ेंगे। पीहू फट पड़ी झूट क्यों बोल रहे हो ये मेरे पेरेन्टस् हैं और उन्हें जानने का हक है की उनकी बेटी को क्या हुआ है। काँची ने डरकर सिड की तरफ देखा।
पीहू अचानक फूटफूट कर रो पड़ी माँ मैं माँ नहीं बन सकती ! कभी भी नहीं। काँची पीहू को संभालते संभालते खुद भी रोने लगी। पता चला पीहू की बच्चेदानी बच्चे का भार नहीं उठा सकती। काँची ने पूछा कोई तो उपाय होगा ? पीहू ने उदास होकर कहा सरोगसी ही उपाय है। सरोगेट के बारे में काफी कुछ काँची सुन चुकी थी। पति और पत्नी के स्पर्म और ओवम को मिलाकर दूसरी स्त्री के पेट में रखा जाता है और नौ महीने अपने पेट में रखकर जो स्त्री दूसरों के बच्चे को जन्म देती हैं वही सरोगेट मदर कहलाती है।
लेकिन पीहू का मन इस बात पर तैयार नहीं हो पा रहा था कि कोई दूसरा उसके बच्चे को जन्म दे। सिड के समझाने पर भी वह बार बार यही कहती कि क्या गारन्टीं हैं कि दूसरी औरत अपने पेट में पले हुए बच्चे को वापस मांगने नहीं आयेगी।
धीरे-धीरे पीहू चिड़चिड़ी और उदास रहने लगी। सिड से ये देखा नहीं गया उसने पीहू को उसके माँ-बाप के पास भेज दिया ताकि कुछ दिन दूसरे माहौल मेें रहकर उसके दिमाग का तनाव कुछ कम हो पाये-
माँ के घर आकर भी पीहू बैचेन ही थी। एक दिन काँची नहाकर अपने बाल पोंछ रही थी। तभी अचानक पीहू के दिमाग में कुछ कौंधा। उसे मालूम था कि अभी माँ के मेनोपाज में समय है। अतः उसने अपनी माँ से अपने बच्चे की सरोगेट मदर बनने का प्रस्ताव रखा। ये बात सुनकर काँची आग बबूला हो गई। लेकिन उसके बाद कई दिनों तक अपनी बेटी की अस्थिर होती मानसिकता ने काँची और सुधांशु को अपनी बेटी के प्रति बहुत चितिंत कर दिया। आखिर सुधांशु के कहने पर काँची ने ये बात मान ली। फिर शुरु हुए टेस्ट और टेस्ट। आखिर कुछ महींनों के हारमोनल ट्रीटमेंन्ट के बाद काँची को गर्भधारण में सफलता मिली। पीहू तो खुशी से फूली नहीं समा रही थी। काँची को बेटी के साथ ऑस्ट्रेलिया जाना पड़ा। वहीं पर नौ महीने उन्हें गुजारने थे, क्योंकि सिड का तबादला वहां हो गया था।
शायद अपने पीहू काँची को अकेले छोड़कर जाने का दर्द साल रहा था। अचानक काँची को लगा कि सुधांशु का हाथ ढीला पड़ गया है और देखते-देखते उसकी दुनिया सूनी हो गई। पीहू मूर्छित हो पिता के निर्जीव शरीर पर गिर पड़ी। लेकिन काँची पत्थर हो चुकी थी। फिर अन्तिम संस्कार से लेकर तेरहवीं तक काँची बिल्कुल चुप रही। सभी मेहमानो के जाने के बाद सिड और पीहू काँची के पास आये। पीहू अब अपनी माँ को भारत में अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी और सिड भी उससे सहमत था। आखिर जब वासू भी आकर नानी नानी करने लगा तो काँची को सहमत होना पड़ा। मकान का हिस्सा तो पहले से ही किराये पर उठा था। अपना हिस्सा बंन्द कर काँची बेटी के साथ आस्ट्रेलिया चली गई।
दिन गुजरने लगे। पीहू ने नौकरी कर ली थी अतः वासू को सम्हालने में काँची के दिन आराम से गुजरने लगे। तभी पीहू ने एक सेमिनार में जाने का मन बनाया। सेमिनार सरोगेट मदरहुड से ही सम्बन्धित था। वहां पर एक स्पीकर ने अपने पेपर में यह साबित करने की कोशिश की कि बच्चा हमेशा अपनी बायोलाजिकल माँ से ज्यादा अटैच्ड रहता है। पीहू के दिमाग में ये बात ही रह रह कर घूमने लगी। घर आकर अपने दिमाग में चलती उलझन की वजह से वह काँची के वासू के प्रति व्यवहार को भी उसी चश्मे से देखने लगी। एक नानी का नाती के प्रति अगाध प्रेम उसे बायोलाजिकल मदर का सन्तान से प्रेम लगने लगा। ममता की अन्धी अधिकार भाव में सच्चाई की रोशनी देख नहीं पा रही थी। एक दिन पीहू की छुट्टी थी तो वह वासु को नहलाने बैठ गई लेकिन वासु जिद करने लगा की वो नानी से ही नहायेगा। ईर्ष्या से अंधी पीहू ने जोर से धक्का देकर अपने बच्चे को टब में ढकेल दिया और रगड़-रगड़ कर उसे नहलाने लगी। काँची चुपचाप यह देखती रही। दूसरे दिन पीहू खुद दूध लेकर वासु को पिलाने बैठी लेकिन वासु नानी से पीने की जिद कर रहा था। पीहू ने उसे जोर का थप्पड़ जड़ दिया। सिड ये देखकर आगे आया तो पीहू उससे भी लड़ने लगी। दूसरे दिन सिड अपने दफ्तर की फाइलें चेक कर रहा था तभी काँची आकर पास खड़ी हुई। क्या बात है माँ ? सिड ने पूछ़ा — बेटा मैं इन्डिया जाना चाहती हूँ ! बहुत दिनो से गई नहीं सबको देखने का मन कर रहा है। सिड ने पूछा माँ कोई और बात तो नहीं। काँची बोली नहीं बेटा वर्मा जी का फोन आया था पिछ़ले कमरे की छत चू रही है उसकी भी मरम्मत करवा लूंगी। सिड कुछ नहीं बोला दूसरे दिन काँची का टिकट आ गया और वो जाने की तैयारी करने लगी। माँ को सामान लगाते देख पीहू ने पूछा कहाँ जा रही हो ? काँची के इन्डिया कहने पर वह कुछ नहीं बोली। जाने के दिन फिर सिड पीहू और वासु काँची को छ़ोडने एअरपोर्ट आये। वासु ने उन्हें कसकर पकड़ लिया। नानी मत जाओ, लेकिन काँची दिल कड़ा करके आगे बढ़ गई। आंसुओं से धुंधली आँखों से उसने पीछे़ मुड़कर नहीं देेखा।
नानी के जाने के बाद वासू उन्हें याद करता था और इसी चिन्ता में कि नानी कब आयेगी — वासु बीमार पड़ गया। बुखार में तपते बच्चे ने सिर्फ नानी की रट लगा रखी थी। तब पीहू ने महसूस किया कि आज उसे अपने बच्चे की तकलीफ खुद कितनी तकलीफ दे रही है उसी तरह काँची को भी उसकी पीड़ा कितनी पीड़ा देती रही होगी। उसकी माँ ने अपने बेटी के सुख के लिये प्रसव पीड़ा भी सही और उसे ही सुख देने के लिये चुपचाप यहाँ से चली भी गई। पीहू ने वासु की बीमारी के बारे में रोते रोते माँ को फोन किया और काँची अगली फ्लाईट से ही आस्ट्रेलिया आ गई। वासु नानी को देखकर खुश हो गया और नानी भी उसकी तीमारदारी में लग गई। वासु के ठीक हो जाने पर काँची ने फिर भारत जाने का इरादा जताया। सिड के ना कहने पर भी काँची टस से मस नहीं हुई। वो दुबारा अपनी बेटी को दुःख देना नहीं चाहती थी। एअरपोर्ट जाते समय पीहू नदारद थी। वासु और सिड काँची को एअरपोर्ट पर छोड़ने गये। काँची जैसे ही बाय करके मुड़ने को थी तो किसी ने उसका पल्ला खींचा। देखा था तो ऑंख में आँसू भरे पीहू खड़ी थी। काँची को याद आया कि बचपन में पीहू इसी तरह से अपनी जिद मनवाती थी।
माँ मत जाओ आय लव यू मॉम, पीहू के मनुहार भरे शब्दों ने काँची को रोक लिया, भला ! ममता का ये बंन्धन वो कैसे तोड़ सकती थी।