रंगीला फागुन [ आधार छंद - सरसी ]
फागुन का जब लगे महीना, बदले सबकी चाल।
रंग-रंगीला मौसम लगता, चहुँदिश उड़े गुलाल।1
पीली सरसों दिखलाती है, अपना पीला रंग,
टेसू से कुदरत देती है, रंग सुहाना लाल।2
छटा सुनहरी है महुए की, उपजे मादक गंध,
आम्र मंजरी लद वृक्षों पर, मन को करे निहाल।3
कोयल कूके अमराई में, दिन हो या फिर रात,
स्वरलहरी के द्वारा वो नित, लेती पिय का हाल।4
जीर्ण पर्ण गिर जाते खुद ही, तब आयें नव पात,
हर पादप को शोभित करते, उगकर नए प्रवाल।5
मधुमासी मौसम में मोहक, बिखरी रंग-बहार,
ढोलक की थापों पर फगुआ, संग बजें खड़ताल।6
पर्व अनूठा है होली का, मन में भरे उमंग,
बाल-वृंद या नर-नारी के, हों तन-मन खुशहाल।7