ये दुनिया केवल सपना है

डॉ. उदय प्रताप सिंह, कानपुर

आओ बांटें चलो प्यार को,
छोटा सा जीवन अपना है।
मन से मन के भेद मिटा लें,
ये दुनिया केवल सपना है।

ये पल-क्षण है बेशकीमती,
कहीं हाथ से छिटक न जायें।
शीशे से भी नाजुक हैं ये,
देखो गिरकर चटक न जायें।

ये सब चमक दमक नकली है,
इनसे सम्मोहित क्या होना !
ये दर्पण हैं सिर्फ सजीले,
इन्हें देख मोहित क्या होना !

क्या अपना है और पराया,
जीवन की ठगनी है माया।
जो मुट्ठी भर दिन जीना है,
इनको व्यर्थ करो मत जाया।

छोटी छोटी खुशियों से ही,
कितने चेहरे खिल जाते हैं।
इन को अञ्जुरी में भर लो,
जीवन को पर मिल जाते हैं।

किसे खबर है उड़ता पंछी,
किस बगिया में फिर जायेगा !
किसी पुष्प को छूकर भौंरा,
किसे पता फिर कब आयेगा !

पर इन सबसे उठकर तरुवर,
हर पंछी का बने बसेरा ।
अरुणशिखा के बिना दिवाकर,
नियत समय ही करे सवेरा ।

बिना प्रतीक्षा किये भ्रमर का,
सुमन सदा सौरभ देते हैं।
बहता दरिया, कल कल झरने,
किससे कब कुछ भी लेते हैं?

फिर हम अपने को सीमित कर,
किससे क्यों कर आस लगायें ?
सागर से ठहराव सीख लें,
कभी हवा से बहते जायें।


पता नहीं किस मोड़ पे कोई,
कब छूटे कब फिर मिल जाये !
आओ ऐसे क्षण बुन लें हम,
जो दुहरायें, दिल खिल जायें।

कोई थका हो, हाथ पकड़ लें,
तो विश्वास वृहद होगा ही।
हर संगी को साथी कर लें,
जीवन सुलभ सहृद होगा ही।

पर भौतिक जीवन से रिश्ते,
एक दिन आखिर छूटेंगे ही।
दंभ – द्वेष छलबाज लुटेरे,
सबको आखिर लूटेंगे ही ।

कौन जानता कहाँ पे अम्बर,
कब धरती से गले मिलेगा ?
कब दरिया सागर की होगी,
कब निशि का सूरज निकलेगा ?

आशाओं के वृक्ष उगे तो,
छद्म भरोसा बहुत मिलेगा।
समझ बूझकर गलती होगी,
दीप पतंगे को ही छलेगा।

झूठे सजे रंगीले पथ पर,
नहीं खबर क्या मिल जायेगा !
कौन टीस देकर निकलेगा,
कौन घाव को सिल जायेगा !

फिर छोड़ो परवाह करें क्यों,
कौन हमारा, कौन नहीं है ?
इसमे खुद को क्यों उलझायें,
कौन गलत है कौन सही है ?

आओ जी लें मधुर क्षणों को,
कुछ पल का जीवन अपना है।
दर्प भेद को “उदय” त्याग दो,
ये दुनिया केवल सपना है।

Author