निदेशक की कलम से


धार्मिक स्थलों के प्रति बढ़ता

यात्रा का एहसास अपने आप में एक सुखद अनुभव है, फिर मंजिल चाहे कोई भी हो। "बहता पानी निर्मला" के भावों को यदि जीवन के दृष्टिकोण से देखें तो जीवन को भी नदी के जल की तरह होना चाहिए। प्रवाह में ही शुद्धता है, जल जहाँ रुका वहीं अशुद्धि व्याप्त हो जाती है। वैसे ही चलना जीवन है और रुकना मौत। मार्टिन लूथर की मानें तो -- “If you can't fly then run, if you can't run then walk, if you can't walk then crawl, but whatever you do you have to keep moving forward”। तात्पर्य यह है कि जीवन गतिमय ही अच्छा प्रतीत होता है, बस दृष्टिकोण बदलिए और गतिशील रहिये।

हाँ ! तो यात्रा पर आते हैं -- दो बातें अनिवार्य हैं प्रारम्भ करने से पहले, पहला कि खर्च का अतिरिक्त बोझ ना आने पाए, दूसरा अपने पसंद की जगह का चुनाव। कोई प्रकृति से प्रेम करता है तो कोई मानव निर्मित कृत्रिम स्थानों से, किसी को पहाड़ों में रुचि है तो कोई समंदर किनारे समय बिताना चाहता है, पसंद अपनी-अपनी। सभी स्थानों में वहां के मौसम के अनुसार पर्यटन बढ़ता और घटता रहता है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि कई स्थान मौसम के अनुसार ही भ्रमण किये जाते हैं।

पर, विगत कई वर्षों में देखा गया है कि वे स्थल जो धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं और जहाँ कोई प्राकृतिक बाधाएं या बंदिशें नहीं हैं पर्यटकों की पहली पसंद बन रहे हैं और वहां हर दिन हर मौसम भीड़ बनी रहती है। उदाहरण स्वरुप ले सकते हैं -- वाराणसी, मथुरा-वृन्दावन, वैष्णों माता मंदिर, तिरुपति बालाजी, पुरी, सोमनाथ द्वारका, स्वर्ण मंदिर इत्यादि। इसके साथ ही 12 ज्योतिर्लिंग, 52 सिद्ध पीठ को ध्यान में रखकर भी यात्राएं की जा रही हैं। सभी धार्मिक स्थल अपनी-अपनी पौराणिक विशेषताएं समेटे पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं, जिसका लाभ विभिन्न स्वरूपों में सरकार भी लेने लगी है, जिसे आप व्यस्था शुल्क भी कह सकते हैं। खैर, हमें तो सीधा circulation of money दिखता है जो एक के पॉकेट से निकल कर दूसरे के पॉकेट में जाता है और साथ ही देश की economy को सुदृढ़ करता है। अर्थात यदि आप यात्रा कर रहे हैं तो आप गर्व से कह सकते हैं कि आपका भी योगदान है भारत की बढ़ती अर्थ-व्यवस्था में।

कारण कुछ भी हो पर, एक बात अवश्य है कि धार्मिक स्थलों के प्रति बढ़ता रुझान अनायास ही मन में कुछ पल के लिए ही सही पर भक्ति का भाव भर तो देता ही है और यह स्थिति आने वाली पीढ़ियों को अपने धर्म और संस्कृति के प्रति आकर्षित करती है। भले ही उद्देश्य घूमने का हो पर वहां से लौटते समय जो धरोहर लेकर साथ आते हैं वह अनमोल है। अपनी आने वाली पीढ़ी को हम क्या दे रहे वही उनके साथ चलता है और वही वे भी आगे बढ़ाते हैं जो एक बेहतर धर्मयुक्त समाज के निर्माण में नींव की ईंट का काम कर सकता है। अतः अभिभावकों से यही अनुरोध है की धार्मिक स्थलों के प्रति रुचि इसी तरह बनाये रखें और अपने पर्यटन की सूची में उन्हें शामिल करते रहें। यही प्रयास हमारी संस्कृति को और सुदृढ़ करेगा साथ ही पर्यटन का आनंद भी देगा।

अमित त्रिपाठी