डोर
मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जयपुर
आजकल रेशम की यह डोर बड़ी महंगी है…!!
भाई को मिलती बहन नहीं
बहन को मिलता भाई नहीं
संतान एक या होते ही नहीं
ऐसा समय देखेंगे सोचा नहीं।
आजकल रेशम की यह डोर बड़ी महंगी है…!!
जो हैं उनमें नहीं नजदीकियाँ
कैरियर ने बढ़ा दी बड़ी दूरियाँ
परिवार को न्यूनतम कर दिया
ये कैसा हमने संसार कर लिया।
आजकल रेशम की यह डोर बड़ी महंगी है…!!
नाजुक यह संबंध दिखावटी है
खुशबू आपस में भी बनावटी है
आत्मीयता भी अब मिलावटी है
कागज के फूलों सी सजावटी है।
आजकल रेशम की यह डोर बड़ी महंगी है…!!
महंगे होने चाहिए प्रत्येक उपहार
दिखावे से हुआ अहं का विस्तार
घटता जा रहा है विनम्र व्यवहार
केवल रस्म सा अपनापन व प्यार।
आजकल रेशम की यह डोर बड़ी महंगी है…!!
मोबाइल पर स्टेटस ही काफी है
कोमल रिश्ते के संग नाइंसाफी है
न गिला न शिकवा न ही माफी है
जीवन में सब तरफ आपाधापी है।
आजकल रेशम की यह डोर बड़ी महंगी है…!!
रिश्ता भाई-बहन का बड़ा प्यारा
जमाने में सुनाता है संगीत न्यारा
सहेज कर रखें ये दायित्व हमारा
मधु “अक्षरा” ने भी यही स्वीकारा।
कि आजकल रेशम की यह डोर बड़ी महंगी है…!!
“भाई बहन की यह रिश्ते की जाति विलुप्ति के कगार पर,
आग्रह है सभी से एक बार तो दिल से इस पर विचार कर।”
