ओपेरेशन सिंदूर बदलते भारत की तस्वीर
गिरिधर राय, कोलकाता
ऑपरेशन सिंदूर की अब, सबको बात बतानी है
निडर तपस्वी राजा की यह, साहस भरी कहानी है
मानें नहीं अगर तुम तो फिर, हालत होगी गाजा की
छेड़ दिये तो छोड़ेगा ना, ऐसी आदत राजा की
टुकड़े गैंग के साथ में हो, खुद के टुकड़े पाओगे
खुली ऑंख गर कभी तीसरी, भस्म वहीं हो जाओगे
सिंदूर मिटाने वालों को, घर जाकर दफनाया है
खत्म करेंगे जड़ से उनको, बीड़ा नेक उठाया है
नाम पूछ कर छब्बिस मारे, हमने सौ को ठोका है
समझौते को तोड़ सिंधु का, पानी हमने रोका है
चिकन नेक पर नजर तुम्हारी, मुर्गा तुम्हें बनाऍंगे
इक दिन तेरे आका को भी, घुटने पर ले आएंगे
भाई-भाई कह कर मारा, पीछे छोड़ कसाई को
जासूसी के लिए लगा दी, साले और लुगाई को
सिंहासन पर एक तपस्वी, अब हद में रहना सीखो
पकड़ लिया तो छोड़ेगा ना, चाहे तुम जितना चीखो
कब तक बोलो कहाँ छिपोगे, ढूंढ-ढूंढ कर मारेंगे
जन्नत की ख्वाहिश गर तेरी, निश्चित तुझको तारेंगे
कहीं छिपे हों घुसपैठी सब, मार भगाये जायेंगे
डेमोग्राफी बदल रही है, रस्ते पर ले आयेंगे
सॉंपों को हमने पाला है, विष तो पीना ही होगा
पर लगता है जनमेजय का, नाग यज्ञ करना होगा
बासठ का यह हिंद नहीं है, अब हिसाब देना होगा
हड़प लिया है जिसने जितना, वह वापस करना होगा
प्रेम भाव से दे दोगे तो, नक्शे में दिख पाओगे
वरना है कसम भवानी की, मिट्टी में मिल जाओगे
