योगेश कुमार अवस्थी
कोलकाता
कहने को तो यह एक मुहावरा है “अधजल गगरी छलकत जाय” किन्तु वर्तमान में इस वाक्यांश की सत्यता प्रत्येक क्षेत्र में देखने को मिलती है। इस मुहावरे का अर्थ यह है कि “व्यक्ति जब किसी विषय विशेष के बारे में बढ़-चढ़ कर बातें करे और उसे उस विषय का ज्ञान ही ना हो।
यदि जन्म से आरम्भ करें तो हमें दिखता है कि जन्में बच्चे और जन्म देने वाली माता को सलाह देने वालों की कतार सी लग जाती है। क्या खाएं क्या न खाएं, क्या पहनें क्या न पहनें, कैसे नहाएं, कैसे सुलायें, कैसे उठे बैठें वगैरह-वगैरह। सलाह देने वालों में लगभग पचास प्रतिशत व्यक्ति ऐसे होते हैं जिन्हें इन बातों का ज्ञान होता ही नहीं। ऐसी स्थिति में कहना पड़ता है कि “अधजल गगरी छलकत जाय”।
शिक्षा के क्षेत्र में कभी-कभी शिक्षक अपने प्रभाव की गरिमा बनाए रखने के लिए छात्रों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का गलत समाधान बता कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। कुछ दिनों पश्चात् छात्रों को इसका एहसास भी हो जाता है और वे भूल का सुधार कर लेते हैं। बाकी छात्र जीवन पर्यन्त ऐसी भूल धारणाओं को ढोए फिरते हैं। वर्तमान समय में छात्र कुशल एवं पारंगत शिक्षकों द्वारा दी गई शिक्षा को नजरंदाज करते हुए गूगल द्वारा प्राप्त जानकारी पर ही शत प्रतिशत निर्भर रहते हैं और उसी को आधार बनाकर विभिन्न क्षेत्रों में व्याख्यान देते हैं। तब कहने को बाध्य होता हूं कि “अधजल गगरी छलकत जाय”।
चिकित्सा के क्षेत्र में तो स्थिति और भयावह हो जाती है। कुछ व्यक्ति तो रुग्ण मानव शरीर को अपनी प्रयोगशाला बना लेते हैं और निरन्तर प्रतीक्षा में रहते हैं कि उन्हें कोई नई प्रयोगशाला मिले। ऐसे व्यक्तियों के पास हर बीमारी का देशी और विदेशी उपचार उपलब्ध होता है। कठिन परिस्थितियों से गुजर रहे व्यक्ति कभी असहनीय पीड़ा के चलते, कभी समय और धन के अभाव में उनके द्वारा बताए गए उपचार को सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं, जब कि रोगी को कुशल चिकित्सक से परामर्श ले कर ही इलाज की प्रक्रिया आरम्भ करनी चाहिए। पर्याप्त जानकारी के अभाव में दिए गए चिकित्सीय परामर्श को मान लेने पर कभी-कभी रोगी की मृत्यु तक हो जाती है। तब दुःख के साथ कहना वाजिब है कि “अधजल गगरी छलकत जाय”।
रोचक स्थिति उत्पन्न होती है जब बात हो पूजा विधि, वैवाहिक कार्यक्रम, संस्कारों और अन्त्येष्टि क्रिया की। यहां कुछ लोग अपनी ऊंची आवाज में तथ्यहीन सुझाव बड़े आत्मविश्वास के साथ साझा करते हैं। बात यहां तक पहुंच जाती है कि यदि सुझाव देने वाले व्यक्ति की बात न मानी गई तो उसके दिल पर बड़ी गहरी चोट लगती है, फलस्वरुप वह व्यक्ति क्रोधित या नाराज हो जाता है। इसकी गाज गिरती है बुलाए गए पुरोहित यानि की पण्डित जी पर, जिसे बड़े सम्मान के साथ कार्य संचालन हेतु आमंत्रित किया गया है। कभी-कभी पुरोहित भी सटीक जानकारी के अभाव में जानकर व्यक्ति से बहस में उलझ जाते हैं। तब कहने को विवश होता हूं कि “अधजल गगरी छलकत जाय”।
जीवन में ऐसे अनेक अवसर पर यह मुहावरा अनायास ही मुंह से निकल जाता है, सभी क्षेत्रों की मिशाल संभव नहीं। अतः इस मुहावरे की व्याख्या का कार्यभार अब पाठकों को सौंपते हुए लेखनी को विराम देता हूं।