सब रिश्ते-नाते
ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान', शाहजहांपुर
संबंधों के मधुर गीत आखिर कैसे गाते।
बहुत पास से देख लिए हैं सब रिश्ते-नाते।
जिससे की उम्मीद
कि मुझसे पूछे मेरा हाल।
जब करीब से गुजरा
उसकी तेज हो गई चाल।
हम अपने मन की मजबूरी किसको समझाते।
अपना मतलब हल होने तक
बिछे रहे जो लोग।
सीना ताने खड़े हुए हैं
यह कैसा सँयोग।
ज़हर भरी मुस्कान फेंकते हैं आते-जाते।
अपनी-अपनी पड़ी सभी को
खुलकर कौन मिले।
झुँझलाहट है हर चेहरे पर
झेले नहीं झिले।
हिम्मत होती नहीं कि खोलूं और नए खाते।
