सुरक्षित सफर: सड़क नियमों की अहमियत

भारत में सड़कें सिर्फ़ आवागमन का साधन नहीं हैं; वे हमारे जीवन की धमनियां हैं। हालांकि, दुख की बात यह है कि ये सड़कें अब जीवन लेने वाली बन गई हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है हमारी लापरवाही और यातायात नियमों के प्रति हमारी बेपरवाही। ये नियम हमारी सुरक्षा के लिए बनाए गए थे, लेकिन हम इन्हें दुश्मन की तरह देखते हैं।
जब कुछ लोग नियमों का पालन नहीं करते, तो इसे समझा जा सकता है। लेकिन जब यह संख्या बढ़ जाती है और अधिकतर लोग नियमों को तोड़ना शुरू कर देते हैं, तो यह दिखाता है कि हम अपनी सुरक्षा को कितनी कम अहमियत देते हैं। यह लापरवाही हमें बहुत भारी पड़ रही है। सड़क हादसों के रूप में इसका नतीजा हमारे सामने है – खून से लथपथ सड़कें, बिखरे हुए परिवार और अधूरे सपने।
साल 2024 में, भारत में सड़क दुर्घटनाओं में करीब 1.78 लाख लोगों की जान गई। यह आंकड़ा हैरान करने वाला है और हमें सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर गलती कहां हो रही है ! मरने वालों में ज़्यादातर 18 से 34 साल की उम्र के युवा थे, जो देश का भविष्य हैं। इनमें से अधिकतर जानें बचाई जा सकती थीं, अगर लोगों ने हेलमेट पहना होता, सीट बेल्ट लगाई होती, गाड़ी धीमी चलाई होती, और नियमों को मजबूरी की जगह सुरक्षा कवच माना होता।
नियमों की अनदेखी : आदत या लापरवाही ?
यह मानना पड़ेगा कि नियमों को तोड़ना अब सिर्फ़ एक गलती नहीं रह गई है, बल्कि यह एक तरह का सामाजिक रवैया बन गया है। कुछ लोग इसे बहादुरी मानते हैं, कुछ समय बचाने का तरीका, और कुछ सिर्फ़ इसलिए तोड़ते हैं क्योंकि उन्हें रोकने वाला कोई नहीं होता। लेकिन जब यह ‘कुछ लोग’ बढ़कर ‘अधिकतर’ हो जाते हैं, तो पूरा समाज खतरे में पड़ जाता है।
यह सच है कि हर गाड़ी के पीछे एक पुलिस वाला नहीं खड़ा हो सकता, लेकिन क्या हम इतने लापरवाह हो गए हैं कि हमें नियमों का पालन करने के लिए डर की ज़रूरत है ? क्या हमारी जान इतनी सस्ती हो गई है कि हम लाल बत्ती पर कुछ सेकंड रुकने को भी ज़रूरी नहीं समझते ?
2024 के आंकड़ों के मुताबिक, मरने वालों में सबसे ज़्यादा संख्या दोपहिया वाहन चालकों और पैदल चलने वालों की थी।
इनमें से ज़्यादातर ने या तो हेलमेट नहीं पहना था या वे बिना जेब्रा क्रॉसिंग का इस्तेमाल किए सड़क पार कर रहे थे। सरकारें अच्छी सड़कें, सिग्नल और सीसीटीवी कैमरे लगाती हैं, लेकिन क्या हम इन सुविधाओं का सही से इस्तेमाल करते हैं ?
यातायात नियमों का पालन सिर्फ़ जुर्माने के डर से नहीं, बल्कि समझदारी और जागरूकता से होना चाहिए। हमें खुद से यह वादा करना होगा कि :
• हम हमेशा हेलमेट और सीट बेल्ट पहनेंगे।
• लाल बत्ती पर रुकना हमारी ज़िम्मेदारी है, मजबूरी नहीं।
• तेज़ गाड़ी चलाना और गलत तरीके से ओवरटेक करना बहादुरी नहीं, बल्कि नासमझी है।
• पैदल चलते समय हमेशा तय रास्तों का इस्तेमाल करेंगे।
• हम नियमों का पालन करके अपने बच्चों और परिवार के लिए एक अच्छा उदाहरण बनेंगे।
हम सबकी भागीदारी ज़रूरी है। सड़क सुरक्षा सिर्फ़ सरकार या पुलिस का काम नहीं है, यह हम सबकी सामूहिक ज़िम्मेदारी है। जैसे एक परिवार में सबकी मदद ज़रूरी होती है, वैसे ही सड़क पर भी हर किसी को नियमों का पालन करना होता है। एक की गलती कई जानें ले सकती है।
‘विजन ज़ीरो’ और ‘जीरो फैटैलिटी कोरिडोर’ जैसी सरकारी योजनाएं तभी सफल होंगी जब हम नागरिक इनका समर्थन करें। कानून तभी काम करता है जब समाज उसे माने और उसका साथ दें।
अगर हम खुद अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देंगे, तो कोई और भी नहीं देगा। यातायात नियमों का पालन करना कोई सख़्त अनुशासन नहीं, बल्कि यह हमारी ज़िंदगी की सुरक्षा है। हमें नियमों को सिर्फ़ ‘मानने’ के बजाय ‘जीने’ का तरीका बनाना चाहिए। याद रखें, जब कोई सड़क पर नियम तोड़ता है, तो वह सिर्फ़ कानून नहीं तोड़ता, बल्कि किसी के घर का चिराग बुझाने का ख़तरा भी पैदा करता है।
तो आइए, आज से ही यह संकल्प लें और सड़क पर हर कदम सोच-समझकर रखें, ताकि हर सफर सुरक्षित हो।