महिलाओं का बदलता स्वरुप

कन्या भ्रूण हत्या अपराध है ? कन्या तब है धन्या जब औरत ही औरत की बैरी ना हो। वरना कन्या पढ़े पर कन्या से लड़े। कन्याओं की देश में लिंगानुपात पुरुषों से कम है, पुरुषों को शादी न हो पाने का गम है। लगातार कन्याओं को भारत सरकार की तरफ से ये नारा दिया जाता है कि बेटी पढ़ाओ पर वस्तु स्थिति की बात करें तो देश में लड़कियों की शिक्षा व पोषण की ओर सरकार की तरफ से मिलने वाली सुविधाओं में असुविधा व खेद दिखने में आता है। 21 वींं सदी का भारत और जन, भागीदारी में लड़कियों की दुःखद स्थिति कई तरह से लापरवाही और पुरुषवादी मानसिकता की भेंट चढ़ी हुई है, जहां घर-परिवार में वंशवृद्धि हेतु लड़के की चाहना होती है और वशीयत की खातिर तथा अन्य कर्मकांडो को पूरा करने में लड़कों को तरजीह दी जाती है। पर, सोचने वाली बात यह है कि यदि लड़कियां ही न पैदा हों तो लड़कों के पैदा होने की संभावना भी जाती रहेगी और आज के आधुनिक दौर में कन्या जन्म की मांग को लड़कों से कमतर भी नहीं किया जा सकता।
जहां भारत एक स्वतंत्र देश है, हर एक पुरुष में लड़कियों का अनुपात कम है तथा देश की तरक्की में सालभर का लाभ और उसके पीछे के श्रम में, औरतों के द्वारा घर पर हो रहे लगातार श्रम और बिन निजी लाभ के योगदान का हाथ अपने आप में महान कुर्बानी की कहानी कहती है। उसके एवज में सरकार की तरफ से लड़कियों को दी जाने वाली जन-सेवा लचर और खस्ता हालत में है। सरकारी अस्पतालो में उपचार के सभी उपकरण नहीं मिलते साथ ही सरकार की तरफ से कोई स्वास्थ्य बीमा की मुफ्त सेवा भेंट नहीं दी जाती, अपितु लड़कियों, औरतों की तरफ से देश के विकास में घरेलू महिलाओं ने सरकार को मुफ्त योगदान दिया है। सरकार और समाज ऋणी है ऐसी उत्कट महिलाओं द्वारा दिए गए अपने श्रम-दान के लिए।
पर क्या 21 वीं सदी का भारत यूं ही लोगों का शोषण करेगा और जनता के मुफ्त श्रम-दान के द्वारा देश को तरक्की में ले जायेगा। बढ़ती मंहगाई के चलते देश की बेटियों में कुपोषण की समस्या, रक्त अल्पता संबंधी एनिमिया रोग बढ़ रहा है। यदि देश की नारी शक्ति कमजोर होती जायेगी तो आगे घर कैसे बसेगा ? समाज सशक्त कैसे होगा ? और देश की तरक्की कैसे होगी ? इस दयनीय राजनीति का पूरा दोष सरकार के जिम्मेदारी से पीछे हटने को तथा लोकतंत्र में कानून के सही से कार्यान्वित न करने को जाता है। चूंकि जन इच्छा शक्ति तभी एकत्रित होगी जब प्रशासनिक प्रबंधन आला दर्जे का हो और भ्रष्ट बुद्धि द्वारा भ्रष्टाचार ना किया जाता हो। वंचित लोगो के हाथ से दवा, दवात और दाना ना घपला हो। पर असल में देश महिलाओं के साथ न्याय का पालन नहीं करता दिखता है, उन्हें परिवार में भी बंदिशों में रखा जाता है। लड़कों की उपेक्षा प्रशासनिक भ्रष्टाचार में बदल गया है। सांस्कृतिक अपराध में बढ़ती मंहगाई के चलते महिलाओं के घर का चूल्हा ठंडा पड़ रहा है। यह सरकार की ह्रदय-हीनता की प्रत्यक्ष गवाही को सबके सामने रखती है। इसी बढ़ती मंहगाई के चलते अपना न्यूनतम लाभ ना पाने की दशा में महिलाओं का सुहाग उजड़ रहा है।
21 वीं सदी का भारत कृषि पर खेती पर निर्भर है, किसान खेत पर निर्भर है, खेत वर्षा जल पर निर्भर है। महिलाओं ने ना केवल चूल्हा चौका संभाल रखा है अपितु नि:शुल्क सेवा खेत पर भी काम करके देती हैं। अपने घर पर वो पहली पाली चूल्हा-चौका संभालती है। दूसरी पाली अपने पति के साथ अथवा अकेले खेत में भी जाकर काम करती-हांथ बंटाती हैं। पर देश की, समाज की, परिवार की उपेक्षा ने आज महिला समाज को गर्त में ढकेल दिया है और केवल मौखिक राग अलापते रहते हैं कि बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ। आज के दौर में पढ़ी -लिखी लड़कियां भी घास छील रही हैं। रोजगार बहाली में तंग हाली, पेपर लीक के मामले हैं और फिर पुरुषवादी समाज में बढ़ती जनसंख्या का बोझ है। इस भयावह दशा में लड़कियां कैसे भारत जैसे संस्कृति और परम्परा में अपना पैर जमा सकती हैं, यह सोचनीय मामला है। आज हमारे नीति, निर्माताओं को इस ओर विमुख कतई नहीं होना चाहिए और सच्चाई के धरातल पर ईमानदारी से देश को तरक्की की ओर महिलाओं की दयनीय दशा में सुधार कानूनों का सख्ती से पालन करवा कर उन्हे उनका सम्मान, सुहाग लौटाना चाहिए। कितनों की मांग सुहाग लुट चुकी है, सरकार की नजरें झुक चुकी हैं। समाज के तबकों में महिलाएं कमजोर है, पर इस लोकतांत्रिक भ्रष्टाचार ने सांस्कृतिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है जिसके चलते महिलाओं द्वारा किए जा रहे अपराधों में लगातार वृद्धि देखने को मिल रही है। लड़कियां पुरुषों से शादी करके उन्हे डरा-धमका कर तलाक और उसकी भरन पूर्ति लेकर चली जा रही हैं। फिर नया स्वांग रचा रही हैं, शादी मना रही हैं और पुरुषों को उल्लू बना रही हैं।
वो दिन अब ज्यादा दूर नहीं जब महिलाओं द्वारा हो रहे अपराधों के चलते विवाह संस्थान जैसा पवित्र अनुष्ठान बंद हो जायेगा। लोगों खासकर पुरुष बिना नारी संग जीना पसंद करेंगे और विवाह होना ही बंद हो जायेगा। देश धीरे-धीरे उसी पश्चिमी परिवारों के रंग में और पश्चिमी समाज के संग में रंगता जा रहा है, जहां लड़कों द्वारा लड़कियों की तरफ से शताए जाने से पुरुष आत्महत्या में वृद्धि हो रही है। न्याय आंख बंद करके नहीं सबूतों के साथ होनी चाहिए, जहां मानवता जिंदा रह सके। चूंकि भारत में कानून का पालन एक अरब पैंतालिश करोड़ जनसंख्या को बर्बाद होने से बचाने के लिए उठाया गया एक जरूरी बड़ा कदम है, जिसके दम पर यह जनसंख्या अपने कदम पर पूरे विश्वास के साथ खड़ी हो सके और कदम से कदम मिला कर स्त्री और पुरुष ससम्मान गरिमामय जीवन जी सके, क्योंकि गरिमामय जीवन जीने का अधिकार संविधान दे रहा है, पर सरकार नहीं दे पा रही या लोग नहीं ले पा रहे !
