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कविताएं / ग़ज़ल :
चाँद की रंजिश
जनसेवक भैया जी (व्यंग)
बंदर देखे दर्पण मै
कैद है ……. (ग़ज़ल)
नारी तुम सबला बन जाओ
उठनेके पहलेही मै, मै अनिगन बार गिरा हूँ
नियत और नियति
बँटवारा
कश्म कश
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