सुबह-सुबह तुम उठा करो,
आलस कभी न किया करो, ,
प्राणवायु रूपी अमृत रस, ,
नित्य सुबह तुम पिया करो। ,
हँस-हँस कर तुम जिया करो, ,
चिंता कभी न किया करो,,
तन-मन को स्वस्थ रखना हो तो, ,
योग सदा तुम किया करो। ,
सदा प्रेम तुम किया करो, ,
हाथ बढ़ा, कुछ दिया करो, ,
शुद्ध ह्रदय और पवित्र मन से, ,
हरि सुमिरन तुम किया करो। ,
श्याम श्रीवास्तव 'रोहित', लखनऊ
फुर्सत
दीप देहरी पर जलने को कहाँ फुर्सत,
ज्योति के अक्षर सजाने को कहाँ फुर्सत।
लत पड़ी है खून को नदियां बहाने की,
प्रेम की गंगा बहाने को कहाँ फुर्सत।
जी रहे दिल में अँधेरे की घुटन पाले,
रौशनी का घर बसने की कहाँ फुर्सत।
जो तुम्हारे आँसुओं की पढ़ सके भाषा,
अब भला इतनी ज़माने को कहाँ फुर्सत।
आइये! सरगर्मियों से ही करें बातें,
चैन की बंसी बजाने को कहाँ फुर्सत।
- कमल किशोर "भावुक", लखनऊ
शारदा वंदना
हंस की सवारी करें इच्छापूर्ति सारी करें
शुद्ध भाव सदा भरें मन से प्रणाम है।
सृजन सँवारे आप, कला को निखारें आप
लेखन हमारा सदा चले अविराम है।
है हंसवाहिनी माता, शुभ ज्ञान की प्रदाता
नित वरदान देना माता का ही काम है।
उत्तम चरित्र गढ़ें मन के वे भाव पढ़ें
भक्ति से प्रसन्न होती लेती नहीं दाम है।1
माता सरस्वती तुम्हें, हृदय से प्रणाम है।
रोम-रोम बस रहा, बस तेरा नाम है।
कलम के प्रवाह में, बिंब सहित भाव में।
शब्दाक्षर चुनाव में, न कोई विराम है।।
प्रकृति की तरंग में, मन बसंत रंग में।
हृदय की उमंग में, रस आठों याम है।
कल्पनाओं के पंख में, नवल रास-रंग में।
वीणा अरु मृदंग में, गीत सुबह-शाम।
कर्नल प्रवीण त्रिपाठी (से.नि.), नोएडा
संयम से आगे बढ़ो
मंजिल को पाना है अगर,
संयम से आगे बढ़ना होगा;
मुश्किलों के बिछौने पर,
पांव रखकर निकलना होगा ….
बेरुखियाँ भी सहनी होंगी,
साजिशें भी गहरी होंगी;
लाठी लिए हौसले की लेकिन,
राह अकेले ही तय करनी होगी ….
अँधेरे गहरे डराएंगे तुझको,
आंधियां भी ज़ोर लगाएंगी;
रात महताब वाली न मिले तो,
हिम्मत जुगनू बन चमक जाएगी ….
कोई तुझे लगाएगा प्यार से गले,
तो कोई नफरत से ठुकराएगा;
सच्चा मुसाफिर है तू अगर प्यारे,
सबको खुशियां ही बांटता जायेगा।।
प्रियंका, भटिंडा
जिंदगी
कभी हँसाती तो कभी रुलाती है जिंदगी,
जीवन के हर रूप रंग दिखाती है जिंदगी;
कभी दूर तो कभी पास बुलाती है जिंदगी,
अश्कों को पोंछ कर, फिर से हंसाती है जिंदगी।
कभी माँ बन जी भर ममता बरसाती है तो,
कभी पिता बन जीवन पथ पर चलना सिखाती है;
कभी गुरु बन डगमगाते डगों पर हाथ थाम लेती है,
तो कभी दोस्त बन आगोश में ले भरोसा दिखाती है।
कभी आशा तो कभी निराशा दे जाती है जिंदगी,
दुःख - सुख को एक जैसा जीना सिखाती है जिंदगी;
जिंदगी से न मायूस हो जाना जीवन में कभी,
ये तो संघर्ष ही है जो चलाती है जिंदगी |
कभी हँसाती तो कभी रुलाती है जिंदगी,
जीवन के हर लम्हों को जीना सिखाती है जिंदगी |
जी भर कर जी लो कोई अरमान न रह जाय,
हर बार नहीं मिलती है जीने के लिए ये जिंदगी।
उमेश बद्री शर्मा "अनंत", कोलकाता
इसी का नाम दोस्ती
कभी प्यार कभी तकरार,
इसी का नाम दोस्ती है यार!!
कभी हंसी ठिठोली,
कभी आँख मिचोली;
कभी स्कूल में किया मज़ा,
तो कभी मास्टर जी ने दी सज़ा;
कभी बाज़ार में यूँ ही घूमना,
कभी ग़ुस्से में उसे ही घूरना;
कभी प्यार भरी मुस्कान,
तो कभी रूठा हुआ यार;
कभी सपनों सी फ़िल्मी बातें,
कभी उन्ही सपनों में हम खो जाते;
वो "कभी" अब कब आएगा?
यार मेरा कब गले लगाएगा !!
अब हम सब बड़े जो हो गए,
नन्हें सपने न जाने कहाँ खो गए ?
चलो फिर से जी लें, वही पल आज;
फिर बैठें मिल के चार यार....
पल्लवी अवस्थी, मसकट, ओमान
कुण्डलियाँ……
पुअरा - कौड़ा
पुअरा जलता देखकर, जाड़ा हुआ फरार
दर्द गमों को फूँक कर, कौड़ा तापें यार
कउड़ा तापें यार, करें दुनिया की बातें
पुअरा में घुस काट रहे जाड़े की रातें
कहते गिरिधर राय-चलें अब किसके दुअरा
खेती हुई उदास, कहाँ से लायें पुअरा
पीढ़ी का अंतर
बच्चे थे, सुनते रहे, सदा बड़ों की बात
अब हमको सुनना पड़े, बच्चों की दिनरात
बच्चों की दिनरात, हमारा समय न आया
गुरु ने तोड़ा बहुत, अभी बच्चों से खाया
कहते गिरिधर राय- रह गये रिश्ते कच्चे
वो शिक्षा अब कहाँ, मिली जब हम थे बच्चे
मतदान
देश बचाना है अगर , रखना आँखें खोल
आज नहीं कल खुलेगी, एक-एक की पोल
एक-एक की पोल, करें नित गलत बयानी
लिखना होगा तुम्हें, देश की नयी कहानी
कहते गिरिधर राय- सोचकर बटन दबाना
सभी करो मतदान, अगर है देश बचाना
गिरिधर राय, कोलकाता
मोल
तेरे आँसू की ना कदर किसी को
बेबात इन्हे बर्बाद ना कर,
तेरे शब्दों की ना समझ किसी को
कोई समझे ये उम्मीद ना कर,
जो कम बोले वही अच्छा है
बोल के मोल तू कम ना कर,
कोई गाली दे तो अरे बावरे
सह लेना वह भी हँस कर,
जो हंसता है वो पाता है
जो रोए वह खोए,
इंसान वही कहलाता है
जिसे दूजे के दुख से दुःख होए,
जो जान बुझ दुःख दिया किसी को
वह जीत के भी हारा है,
मन सुन्दर है तो हीरा है
भले रंग उसका काला है।
अपेक्षा शुक्ला, बडनेरा
मन समर
खो चुकी है हर दिशा अब, कवच कुंडल मान भी।
साथ मेरे मैं अकेला, शिथिल अश्व - कृपान भी।
स्वप्नदर्शी मन पराजय से घिरा रण में खड़ा।
पर विजय का स्वप्न उसका हर प्रलोभन से बड़ा।।
हार का भय औ' निराशा, देह ने सब कुछ सहा।
अश्रु छलका जब पलक से, मन ने मेरे यूँ कहा।।
क्यों निराशा में व्यथा में, अश्रु तुम छलका रहे।
तेज दिनकर रश्मि हो तुम, व्यर्थ क्यों भरमा रहे।।
शक्ति तुझमें है अपरिमित, धैर्य तेरा है अनंत।
क्यूँ छले माया तुझे अब, अग्नि बरसे या वसंत।।
साध लो अंतःकरण को, जीत लो मन बंधुवर।
शक्ति सारी आ गिरेगी पांव पर तेरे प्रखर।।
आत्मा ही है उजागर, आत्मा ही है अमर।
जड़ कहां जीता किया है, चिर पुरातन मन समर।।