सम्पादक की कलम से

इलेक्ट्रानिक मीडिया, वेब पोर्टल के लगातार बढ़ते प्रभाव और पत्रकारिता के घोर व्यवसायिक युग में पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन निश्‍चित रूप से चुनौतीपूर्ण हो गया है। ऐसे चुनौतीपूर्ण परिवेश में ‘शशि स्मृति फाउंडेशन’ के बैनर तले प्रकाशित ‘जनमैत्री’ पत्रिका की पहली वर्षगांठ की अनुभूति स्वाभाविक रूप से अह्लादित करती है। एक विशेष उद्देश्य को लेकर शुरू हुई यह पत्रिका डिजिटल प्लेटफार्म के जरिए देश-विदेश के प्रबुद्ध पाठकों के दिलों में खास जगह बनाने में न सिर्फ कामयाब रही, बल्कि अपनी कुछ विशेषताओं की वजह से चर्चा का विषय भी बनती जा रही है। 15 नवम्बर, 2022 को जब ‘जनमैत्री’ का पहला अंक पाठकों के सामने पेश हुआ था, तब यह किसी बड़े सपने के साकार होने से कम नहीं था। प्रकाशन शुरू होने के कुछ समय पहले तक इसकी योजना पर बातचीत का दौर चलता रहा। आनन-फानन में तैयारियां हुईं, जनसम्पर्क का सिलसिला चला और ‘जनमैत्री’ का जन्म हो गया। पत्रिका का उद्देश्य था- राजनीति, धर्म-पंथ-मजहब से पूरी तरह से परहेज रखते हुए भारतीय संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों से सम्बद्ध विषयों से जुड़ी सामग्री पाठकों के लिए परोसते रहना। ‘जनमैत्री’ अपने इस खास मकसद में भी कामयाब रही है। सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए ‘जनमैत्री’ का मंच लिखने-पढ़ने के लिए खुला हुआ है। नये-नये लेखक जुड़ते जा रहे हैं और पाठकों को नये-नये अंदाज की पठन सामग्रियां मिलती जा रही हैं। भविष्य में सभी के सहयोग और समर्थन से यह सिलसिला तेज रफ्तार से जारी रहेगा।

‘जनमैत्री’ के एक वर्ष का सफर यूं ही नहीं आसानी से पूरा हो रहा है। नेपथ्य से स्वर्गीया श्रीमती शशि त्रिपाठी जी का आशीर्वाद स्तम्भ की भांति इसे टिकाए हुए आगे बढ़ाए जा रहा है। शशि त्रिपाठी जी की चिर स्मृति में ही इसका प्रकाशन हो रहा है। श्रीमती त्रिपाठी को उनके आचरण और स्वभाव के अनुरूप श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए ही ‘शशि स्मृति फाउंडेशन’ का गठन हुआ, जरूरतमंदों को मदद करने के लिए विविध तरह के सेवा प्रकल्पों की शुरुआत हुई और हमेशा के लिए उनकी स्मृति को तरो-ताजा रखने के लिए पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ। लोगों को अपने माता-पिता की स्मृति में विद्यालय, मंदिर, अस्पताल का निर्माण और सेवामूलक कार्यों के लिए ट्रस्ट, संस्था तथा फाउंडेशन का गठन करते देखा-सुना गया, लेकिन किसी पत्र-पत्रिका का प्रकाशन शुरू करना निश्‍चित रूप से परम्परा से हटकर उठाया गया सराहनीय कदम है। यह सब श्रीमती त्रिपाठी के पुण्य प्रताप और सत् कर्मों का ही फल है कि उनके पुत्र (अमित) तथा पुत्री-दामाद (पल्‍लवी-नितिन अवस्थी) ने मां की स्मृति में उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए बिल्कुल नई राह चुनी है। दरअसल यह मां से पुत्र-पुत्री को मिले संस्कारों का प्रकटीकरण है। एक ओर जहां तथाकथित आधुनिकता की आंधी में उड़ते रिश्ते-नाते और मां-बाप की हो रही असहनीय उपेक्षा के किस्से-कहानी आम चर्चा का विषय बन गए हैं, वहीं दूसरी तरफ मां की स्मृति में इस तरह का कदम बहुत बड़ी नजीर है। नई परम्परा शुरू करने के लिए बेटा-बेटी को हृदय की गहराइयों से धन्यवाद।

‘जनमैत्री’ की पहली वर्षगांठ के अवसर पर लेखक-लेखिकाओं, प्रिय पाठकों तथा प्रबंध मंडल से जुड़े सभी लोगों को हार्दिक बधाई।

प्रदीप शुक्ल