संकल्प

आज घर का माहौल कुछ बदला सा लग रहा है। सभी कमरों में सुबह-सुबह ही लाइट जल रही है। “कोई सपना तो नहीं” सोचते हुए मृदुल जो पूरी तरह से सो कर उठ भी ना पाया था, उत्सुकता भरी नज़रें लिए कमरे से बाहर आया। और ये क्या ड्राइंग रूम बलून से पूरी तरह सजाया गया था। पहले तो कुछ समझ ना आया पर ज्यों ही मृदुल ने बीते दिनों की बातें याद कीं, सारा माज़रा समझ में आ गया। तभी नूपुर ने कहा क्यों कैसी लगी सजावट।

मृदुल, कुछ कह पाता उसके पहले ही नूपुर ने फ़रमान जारी कर दिया कि आज ऑफिस से छुट्टी कर लो। मृदुल अपनी मनःस्थिति को व्यवस्थित कर कुछ सोचता तभी माँ ने भी बहू की बात का समर्थन कर दिया।

अब तक मृदुल पूरी तरह नींद से बाहर आ चुका था पर अब उसकी आँखें तलाश रहीं थी उसे जिसकी वजह से आज का दिन इतना भव्य होने वाला है।

जी हाँ ! बात करते हैं उस ख़ास सदस्य पायल की जिसका बारहवीं कक्षा का रिज़ल्ट आज आना है। जिसके जन्म के बाद से मृदुल और नूपुर के जीवन में एक नयी उमंग छा गई थी। पायल का जन्म मृदुल के विवाह के 3 साल बाद हुआ था और उसके बाद से घर में ख़ुशियों का जैसे ताँता लग गया हो। पायल बचपन से ही स्वभाव से सरल पर पढ़ने लिखने में तेज रही है। इसका प्रमाण उसके अब तक के रिजल्ट्स से मिलता है। पर, आज की प्रतिस्पर्धा से भरी ज़िंदगी में कहीं ना कहीं उसका आत्मविश्वास संशय में पड़ ही जाता है। इसी वजह से इतनी साज सज्जा के बावजूद वो उदास अपने स्टडी रूम में बैठी है। और क्यों न हो, उसकी नन्हीं आँखों में बड़े सपने जो संजोये थे, मृदुल नें। दरअसल, पायल बचपन से ही काफी क्यूरियस रही है और उसकी रुचि साइंस सब्जेक्ट्स में जयादा रहती थी। उसके इस लगाव की वजह से घर पर सभी उसे साइंस ग्रुप में पढ़ाई आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करते थे और इसी वजह से उसने बारहवीं में वैसे ही सब्जेक्ट्स भी लिए थे, क्यों कि उसे डॉक्टर जो बनना था।

खैर, मृदुल और नूपुर दोनों पायल के कमरे में प्रवेश करते हैं ……..

मृदुल : गुड मॉर्निंग बच्चा ! व्हाई आर यू सिटींग हियर (तुम यहाँ क्यों बैठी हो) ? चलो बाहर चलते हैं।

पायल : थोड़ा उदास चेहरे से डैडी की तरफ देखते हुए कहा "गुड मॉर्निंग"। पर, वो अपने डैडी की हर बात मानती थी, सो उठ कर खड़ी हो गई और डैडी का हाथ पकड़ कर बोली, चलो डैडी।

मृदुल, पायल की हर गतिविधियों से परिचित था, समझ गया की उसके मन में कुछ द्वंद्व चल रहा है, पुनः उसे चेयर पर बैठाते हुए बोला, क्या बात है बेटा, व्हाई आर यू वरीड (तुम क्यों दुखी हो) ?

पायल : मेरे नंबर ठीक तो आएंगे डैडी! मुझे डॉक्टर बनना है, और ये कहते- कहते अपनी मम्मी की ओर देखा और उनका हाथ पकड़ लिया।

नूपुर : क्यों नहीं! जरूर तुम डॉक्टर बनोगी। पर, आज उदास होने का कारण? तुम्हारे तो सारे पेपर्स अच्छे हुए थे तब किस बात की चिंता ?

पायल : मम्मी अगर नंबर ठीक ना आये तो!

मृदुल : बीच में टोकते हुए, बस इतनी सी बात और हंसने लगा। ये रिजल्ट तो अच्छा आना ही है, तूमने पढ़ाई जो मन से की थी। रही बात डॉक्टर बनने की, उसके लिए तो कम्पीटीटिव एक्जाम्स क्लियर करने होंगे। फिर भी मैं तुम्हें याद दिलाता हूँ। मेडिकल की पढ़ाई में एडमिशन के लिए तुम्हें पहले नीट एक्जाम्स (नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट) क्लियर करने होंगे, जिसकी तैयारी तुम अभी कोचिंग में कर रही हो। तुम्हें भी पता है, नीट एक्जाम्स में अच्छा रैंक जब आता है तब कई सारे गवर्नमेंट कॉलेज हैं जिसमें आसानी से एडमिशन भी मिल जाता है। इसके अलावा और भी कई मेडिकल कॉलेज हैं जहाँ से मेडिकल की पढ़ाई की जा सकती है। इस एडमिशन से तुम्हें ५ साल पढ़ाई और एक साल इंटर्न करने के बाद एम बी बी एस की डिग्री मिल जाएगी और फिर तुम डॉक्टर बन जाओगी। तो, किस बात की चिंता ?

पायल : थोड़ा नॉर्मल होते हुए, पर डैडी अगर रैंक अच्छा ना आया तो।

मृदुल : पहले तो ऐसा सोंचना ही नहीं फिर भी अगर ऐसा हुआ तो आजकल कॅरियर के कई रास्ते खुल गए हैं, जिसमें बायो-साइंस से पढ़ने वाले बच्चे अपना भविष्य देख सकते हैं।

पायल : वो क्या डैडी ?

मृदुल : देखो, यदि कोई नीट एक्जाम्स के बगैर और किसी स्पेशलाइज़्ड सेक्टर में अपना कॅरियर बनाना चाहे तो कई और रास्ते हैं, उदाहरण के तौर पर बायो-टेक्नोलॉजिस्ट, माइक्रो-बायोलॉजिस्ट, बी एस सी अनेस्थिसिया, साइकोलोजिस्ट इत्यादि। आजकल कई कॅरियर ऑप्शन हो गए हैं, इसलिए अभी से उदास होने की जरुरत नहीं है।

नूपुर : अरे मेरी गुड़िया अभी से क्यों उदास है, मुझे पता है ना जो ये ठान लेती है उसे पूरा करती है। देख लेना, आज दोपहर में मेरी बात एक बार और सच होने वाली है।

पायल : मुस्कुराते हुए, मम्मी प्लीज ! चलो डैडी हॉल में चलते हैं। 9 बज गए हैं।

बाहर निकली तो दादी अपनी लाड़ली के लिए उसकी पसंद के व्यंजन बनाने की तैयारी में जुटी हुई थी। पायल को देखते ही दादी नें कहा आज तुम्हारे पसंद की सारी चीज़ें बना रही हूँ और अपने हाथों से खिलाऊंगी। पायल भी अब खुश थी, डैडी नें नए जोश का संचार जो कर दिया था। पर, इसके पीछे का सच जो शायद परिवार में कोई ना समझ पाया था वो यह कि पायल की पढ़ाई की पूरी जिम्मेदारी नूपुर की ही थी। पायल तेज़ थी और उसको मम्मी का प्यार दुलार के साथ हर वक्त पढ़ाई में गाइडेंस मिलता था और क्यों ना मिले वह स्वयं वेल एजुकेटेड थी। सच्चाई तो यह है कि मृदुल परिवार में जोश भरने और उनकी जरूरतों को पूरा करने में ही जुटा रहता था। घर में दादाजी की छत्रछाया है पर रेलवे में इंजीनियर के पद से रिटायर होने के बाद अब वो मुंबई मेट्रो परियोजना से कंसल्टेंट इंजीनियर के रूप में जुड़े हुए हैं। काम चरम पर है बावजूद उसके पोती के लाड की वजह से उन्होंने भी आज छुट्टी ली है। इस भरे पूरे परिवार का पूरा लाड एकमात्र पायल को ही मिलता है।

दोपहर के समय रिजल्ट भी आ गया और जैसा कि उम्मीद थी पायल नें 94% अंक से बारहवीं की परीक्षा पास की थी। सभी खुश थे, और होना भी चाहिए क्यों कि पायल के नन्हें पग अपने बड़े सपनों की ओर एक और कदम बढ़ चले थे।

समय यूँ ही बीतता गया, दादाजी भी अब पूर्णतया रिटायर होने के बाद घर पर समय देने लगे थे। पायल भी नीट एक्जाम्स क्लियर करने के बाद अपनी मेडिकल की पढ़ाई के लिए बंगलौर में रह रही थी। घर पर पायल की कमी खलती तो थी पर उसके सपनों को साकार होता देख लोग संतुष्ट थे।

आज के भारत की बदलती मानसिकता, जो कभी बेटियों को घर से बाहर निकलने देने से भी बचती थी, आज उनकी सामाजिक सरंचना में बराबर की भागीदारी का प्रत्यक्ष उदाहरण है। इसका पूरा श्रेय निरंतर बढ़ती शिक्षा और नई - नई संभावनाओं को जाता है। इस दिशा में भारत सरकार की भी अहम् भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" नारे ने इस दिशा में जैसे और जान फूंक दी है। और सच भी है "पढ़ेगा भारत तो बढ़ेगा भारत" और एक दिन पुनः विश्व गुरु भी बनेगा भारत। सच तो यह है कि शिक्षित और समृद्ध भारत की परिकल्पना और उसे साकार स्वरुप देने की लिए हर एक व्यक्ति को बराबर की भागीदारी निभानी होती है। मृदुल और नूपुर दोनों नें अपनी बच्ची की प्रतिभा को समझ, बचपन से ही उसके मन में एक संकल्प की तरह सपने संजोये, जिसे पायल नें भी बखूबी निभाया। पायल की परस्पर भागीदारी ने भी एक बेहतर समाज की नींव रखी जिसे कतई नकारा नहीं जा सकता है और यही प्रत्येक माँ - बाप अपने बच्चों से अपेक्षा रखते हैं। पायल की सफलता के पीछे एक और बड़ा कारण नूपुर का निरंतर इस दिशा में प्रयास करना था।

तात्पर्य यह है कि कोई भी सपना साकार स्वरुप लेने के पहले महज एक विचार ही होता है पर उसके सच होने के पीछे अनवरत अथक परिश्रम एवं चेष्टाएँ होती हैं। यदि बच्चों को विकसित मानसिकता के साथ समय - समय पर सही मार्ग दिखाया जाये तो वो देश की समृद्धि में परस्पर योगदान करने में अवश्य समर्थ होंगे।

अमित त्रिपाठी, मुंबई