राणा की हल्दीघाटी

गिरिधर  राय,
कोलकाता

लिखने चली लेखनी अपनी
कथा अमर बलिदानी की।
दुश्मन तक चर्चा करता है
जिसकी अमिट कहानी की।।

सबसे पहले लिखूँ कहानी
मेवाड़ी उस माटी की।
या राणा की गौरवगाथा
वाली हल्दीघाटी की।।

मन करता चेतक से पहले
लिखूँ कहानी भाला की।
मन करता राणा से पहले
लिखूँ कहानी झाला की।।

घिरा देख राणा को जिसने
वैरी को ललकार दिया।
राजपुताने के गौरव पर
जिसने तन-मन वार दिया।।

या पहले मैं लिखूँ कहानी
मुगली शासन-पापों की।
या फिर पहले लिखूँ कहानी
चेतक की उन टापों की।।

जिनके वारों से मस्तक तक
गजराजों के फूट गए।
अकबरिया उस मान सिंह के
प्राण पसीने छूट गए।।

गद्दारों ने हौदे में छिप
अपनी जान बचायी थी।
लगता था रणचंडी उसदिन
स्वयं धरा पर आई थी।।

मन करता है लिखूँ कहानी
भामा की परिपाटी की।
कथा न पूरी हो सकती है
जिस-बिन हल्दीघाटी की।।

गलत पढ़ाया गया हमें उस
राणा ने था पत्र लिखा।
सभी जगह खोजा मैंने पर
कहीं नहीं वह पत्र दिखा।।

उदविलाव व घास की रोटी
की भी गलत कहानी है।
मुगली महिमामंडन की यह
काली कारस्तानी है।।

बार-बार कहते रहने से
झूठ, सत्य सा लगता है।
पर भविष्य में निश्चित ही वह
महल झूठ का ढहता है ।।

इतिहासों की भूलों को अब
संशोधित करना होगा।
छिपा दिया या मिटा दिया वह
सत्य हमें लिखना होगा।।

राजपुताने के गौरव का
क्यों ना मैं गुणगान लिखूँ।
मस्तक जिसका झुका नहीं,क्यों
उसको नहीं महान लिखूँ ।