यह कैसा युग है — वेदांत की दृष्टि से कश्मीर की त्रासदी

कुछ ही क्षणों में ज़िंदगी कैसे पलट सकती है ?
हनीमून मनाता एक नवविवाहित जोड़ा…
दोस्तों संग घूमने आए कुछ पर्यटक…
मनोरम कश्मीर की वादियाँ, बर्फीली हवाएँ और खिलखिलाते चेहरे… और फिर अचानक गोलियों की आवाज़ें। चीखें। खून। और मातम।
एक पल में सबकुछ बदल गया।
जो आँखें भविष्य के सुंदर सपने देख रही थीं, अब वे हमेशा के लिए बंद हो चुकी हैं।
क्यों ? किसलिए ?
क्या इन आतंकियों के दिल में ज़रा भी संवेदना नहीं बची ?
क्या उन्हें यह भ्रम हो गया है कि मासूमों की हत्या कर वे किसी स्वर्ग के अधिकारी बनेंगे ?
कभी-कभी लगता है मानो हम किसी सभ्य समाज में नहीं, बल्कि किसी अंधे, हिंसक, पागल जंगल में जी रहे हैं… जहाँ धर्म के नाम पर अधर्म का तांडव हो रहा है।
परंतु जब प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलते, जब न्याय की आस धुंधली पड़ने लगती है, तब हमें वेदांत की ओर देखना चाहिए।
वहाँ उत्तर हैं — गहराई में छिपे, पर अविचल सत्य के रूप में।
वेदांत कहता है — यह संसार केवल संयोग नहीं है।
यहाँ हर कर्म का फल है।
हर पाप का हिसाब है।
हर चोट, हर चीख, हर आँसू — एक न्यायपूर्ण सृष्टि उसे देख रही है।
कर्म का नियम अटल है।
जो आज निर्दोषों की हत्या कर रहे हैं, वे स्वयं भी कभी इस वेदना से बच नहीं पाएँगे। यह जीवन हो या अगला — वे उसी पीड़ा का अनुभव करेंगे जो उन्होंने दूसरों को दी है।
ये न कोई धमकी है, न कोई शाप।
यह तो प्रकृति का नियम है — न दया करता है, न पक्षपात।
केवल न्याय करता है।
इस विषय पर मेरे मार्गदर्शक मेजर डॉ. मोहम्मद अली शाह ने एक अत्यंत मार्मिक और निर्भीक ओपन लेटर लिखा है, जिसमें वे सीधे उन आतंकियों से कहते हैं:
“तुमने सिर्फ लोगों को नहीं मारा — तुमने इंसानियत का गला घोंटा है। तुम्हारी गोलियाँ हमारी आत्मा को छलनी नहीं कर सकतीं। हम डरेंगे नहीं। तुम्हारा अंत निश्चित है।”
पत्र इतना सशक्त था कि वरिष्ठ पत्रकार बरखा दत्त तक ने उसे साझा किया।
क्योंकि सत्य की गूंज सीमाओं से परे जाती हैं। धर्म और राष्ट्रों से नहीं, बल्कि मानवता के आँगन से उठती हैं।
आज हमें सोचने की ज़रूरत है — क्या हम भी उसी द्वेष, घृणा और बदले की आग में झुलस जाएँ ?
या हम उस विवेक को अपनाएँ जो वेदांत सिखाता है ?
जहाँ कर्तव्य है, शांति है, और सबसे बड़ी शक्ति — धैर्य और समत्व।
हमें न्याय चाहिए, हाँ — पर उस पथ से जो अधर्म से भिन्न हो।
हमें अपनी पीढ़ियों को यह समझाना होगा कि हिंसा कभी समाधान नहीं रही।
हमें उन्हें वेदांत पढ़ाना होगा — आत्मा की शांति, कर्म का विज्ञान, और जीवन का बड़ा उद्देश्य।
जब अधर्म बढ़े, तो धर्म और भी दृढ़ बनाना होता है।
जब अंधकार घना हो, तब और अधिक दीप जलाने पड़ते हैं।
और अंत में यही कहना चाहूँगी —
इन आतंकियों के लिए कोई माफी नहीं है।
किसी भी सच्चे धर्म, किसी भी नैतिकता में इनके लिए कोई जगह नहीं।
वे जो बो रहे हैं — उसका फल निश्चित है।
जो दूसरों को पीड़ा देता है, वह स्वयं उस पीड़ा से मुक्त नहीं हो सकता।
यही कर्म का धर्म है। यही सृष्टि का न्याय है।
