माँ की याद

– गिरिधर राय, कोलकाता

women and kid

जाने क्यूँ
माँ की याद आज फिर आयी ?
और जब आयी तो
बहुत आयी ,बहुत आयी, बहुत आयी,
बातें सोच-सोच कर आँखे भर आयीं ।।

दुनिया में, सबसे पहले
माँ को ही तो जाना था
पहले उसे, उसके स्पर्श से पहचाना था।
फिर उसकी, आवाज से उसे जानने लगा
बाद में तो उसके,
पदचापों से ही उसे पहचानने लगा।

जब पेट के बल सरकता था
घुटनो के बल रेंगता था
तब उसने ही तो उँगली
पकड़ कर चलना सिखाया था
गोदी में लेकर

सूतली की खटिया पर
शीशम की पटिया पर
उसी ने तो मुझे
क ख ग घ लिखना सिखाया था।

समय बदला
पर न वो बदली, न मैं बदला।
जाने लोग कैसे बदल जाते हैं ?
बूढ़े माँ-बाप को
वृद्धाश्रमों, स्टेशनों, मंदिरों
और मेलों तक में छोड़ आते हैं !!

जब तक माँ थी
मैं अपने को बादशाह समझता था।
क्योंकि माँ, मेरे साथ नहीं,
मै माँ के साथ
उसके आँचल में रहता था।
जाने कैसे मेरे आने के
पहले ही वो जान जाती थी ?
मेरे अनकहे
शब्दों को भी जान जाती थी।।

बाद के दिनों में जब कभी
रात को घर देर से लौटता था तब
बीबी- बच्चे तो बिस्तर में मिलते थे,
पर माँ ! सीढ़ियों पर बैठी हुई मिलती थी।
गुस्सा तब भी नहीं करती थी,
“आज बहुत देर हो गयी बेटा”
बस इतना ही कहती थी …
“चल हाथ-पैर धो, पानी लायी”
याद करते ही आँखें भर आयीं !

आज माँ की याद !
फिर आयी और जब आयी …
तो बहुत आयी ,बहुत आयी।।

कल बहुत दिनों बाद
एकबार फिर रात देर से घर लौटा
तो ऐसा लगा – जैसे माँ उन सीढ़ियों पर
उसी जगह, उसी तरह बैठी हुई है।
लपक कर पास गया तो देखा कि
वहाँ कोई नहीं था, सीढ़ियाँ खाली थीं,
उन खाली सीढ़ियों को देखकर
माँ की याद – एकबार फिर आई
और जब आई तो बहुत आई,
बहुत आई, बहुत आई……..
बहुत आयी ……..

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