मरने से पहले, मरने के बाद

जीवन में कितनी कहानियां बनाता है यह इंसान ! स्वार्थ में अंधा होकर कितने गुनाह करता है उसे खुद पता नहीं होता है। अपने बच्चों के लिए धन जुटाने के लिए कितने ऊंच-नीच काम करता है; परिणाम की परवाह नहीं करता है।
बहुत पुरानी बात है, इतनी पुरानी भी नहीं कि युगों बीत गए हों ! यही कोई पचास साल पहले की बात होगी। जब मोबाइल फोन का अता-पता नहीं था। एक गांव में बृजराज नाम का एक दबंग आदमी रहता था। बंदूक का लाइसेंस था उसके पास ! गांव में उसका दबदबा था। जमीन का बड़ा हिस्सा, बड़ा भूभाग उसके पास था। वह किसी को भी अपनी जमीन में रोककर दबाव बना सकता था।
देश आजाद हो चुका था, गांव में तब हाथ उठाकर गांव का प्रधान चुना जाता था। बृजराज प्रधान पद का उम्मीदवार था। उसके डर से लोगों ने उसी के, बृजराज के पक्ष में हाथ उठाकर, बृजराज को प्रधान बना दिया था।
गांव में बृजराज का एकछत्र राज था। पुलिस, दरोगा, थाना में जो बृजराज कहता था वही होता था। उस समय पुलिस ही प्रशासन में सबकुछ थी। गांव के लोग एक सिपाही से भी थर – थर कांपते थे। पुलिस बृजराज के कहने पर काम करती थी, ऐसा जलजला था उसका ! गांव के बहुत से लोग बृजराज के पीछे कुत्ते की तरह दौड़ते थे।
पंचायत में जो बृजराज कहता, वही होता था। बृजराज पैसे, जमीन लेकर उसी के पक्ष में फैसला कर दिया करता था, जिसने उसे घूस दिया होता था। खूब धन कमा रहा था बृजराज ! बृजराज की पत्नी ने बृजराज से कई बार कहा था कि, “हमारे एक लड़का है, ज्यादा किसी का गला दबाकर हाय मत लिया करो!”
बृजराज मदांध था, भला वह किसी का कहा क्यों मानता, पत्नी की बातों को नजरंदाज कर दिया करता था। एक बार एक निर्दोष आदमी को, उसकी जमीन हड़पने के उद्देश्य से दिसंबर की रात में उसके घर से बृजराज के कुछ चमचे पकड़कर ले गए थे। वह चिल्लाता रहा, बृजराज के डर से कोई छुड़ाने के लिए नहीं दौड़ा था। उस आदमी का बड़ी निर्दयता से जंगल में सिर धड़ से काटकर अलग कर दिया गया था। बोरा में भरकर, बांधकर रेल की पटरी में फेंक दिया गया था। ऐसी हृदय विदारक हत्या से पूरे गांव में दहशत फैल गई थी।
उन कत्ल करने वाले कातिलों के खिलाफ किसी ने बयान तो नहीं दिया था लेकिन, ऐसी बद्दुआएं पूरे गांव के राजा-प्रजा के दिल से निकली थीं कि, ईश्वर का ऊपरवाले का आसान हिला दिया था।
बृजराज को मारने के लिए कुछ लोगों ने योजना बनाई थी। बृजराज के पाप का घड़ा भर चुका था इसलिए योजना सफल हो गई थी। बृजराज के ही आदमी ने बृजराज के साथ गद्दारी कर दिया था; बृजराज की बंदूक अपने कब्जे में करके फिर बृजराज को उसकी ही बंदूक से मार दिया गया था। इसे कहते हैं, ‘जैसी करनी वैसी भरनी!’
अभी भरी जवानी थी बृजराज की चालीस, बयालीस साल की उम्र में ही बृजराज मारा गया था। बृजराज की पत्नी विधवा हो गई थी। अत्याचारी बृजराज के पाप की कमाई थी। जितने साथी-संगी थे अब बृजराज के घर की तरफ आना तो दूर देखना पसंद नहीं करते थे।
समय बीतता गया, अब बृजराज के परिवार में आफत ने डेरा डाल दिया था। जो बृजराज के बिना नहीं रहते थे, बृजराज को खिलाकर, खाते थे वही दूरी बना लिए थे। बृजराज के परिवार में बीमारी ने भी डेरा डाल दिया था। काका – चाचा के घरों में भी सब परेशान हो गए थे। बृजराज की क्रिया – कर्म भी ढंग से नहीं हुआ था। बृजराज को गया, बद्रीनाथ धाम ले जाने के लिए उसका लड़का खर्च के डर से नहीं जा रहा था। बृजराज की गलत कमाई का परिणाम था यह !
परिवार वाले, गांव वाले पंडितों के पास जाते थे तो पंडित यही कहते थे, “गृह दशा खराब चल रहे हैं, शनि की साढ़ेसाती है!” शांति के लिए पचासों हजार रुपए का पर्चा बना दिया करते थे। डाक्टर तो रोग बताकर इलाज कर रहे थे। जांच में पैसा खर्च होना स्वाभाविक था। एक ओझा के पास गए थे तो ओझा ने कहा, “बृजराज राक्षस हो गया है, उसे पकड़ने में बहुत बल है !” तमाम पूजा, सामग्री वह भी बता रहा था।
अब गांव में बृजराज के भूत का भय सबको लग रहा था। लोग भूत रोधक ताबीज पहनकर घर से निकलते थे, बृजराज राक्षस हो गया था, सबके पकड़ से बाहर था ! बृजराज को पूरा गांव गालियां बक रहा था। बृजराज का लड़का जवान हो गया था। बृजराज की पत्नी चाहती थी कि, बृजराज को तारने के लिए तीर्थयात्रा करनी चाहिए। बृजराज का लड़का इन सब बातों पर विश्वास नहीं करता था।
बृजराज के लड़के की शादी हो गई थी। बृजराज के लड़के को कोई संतान नहीं हो रही थी। गांव में चर्चा थी कि, पापी बृजराज की बंशनाश हो जाएगी। कुछ लोगों ने बृजराज के लड़के को सलाह दी थी कि, ‘दूसरी शादी कर लो!’ पर वह किसी भी हालत में दूसरी शादी करने के लिए तैयार नहीं था।
गांव के लोगों का कहना है कि, ‘बृजराज अपनी बहू की कोख में बैठा है, वह बच्चा नहीं होने दे रहा है !’ जै मुंह तै बातें !
कुछ ओझाओं ने उपाय किए थे, इससे राहत भी हुई थी। कुछ मानसिक शुकून भी राहत देता है।
राक्षस हुआ है या नहीं बृजराज, किसी ने देखा भी नहीं है, फिर भी कुछ लोग झूम कर कहते हैं, “मैं बृजराज हूं, नहीं छोड़ूंगा; कर ले जो करना हो!” कुल मिलाकर बृजराज जिंदा में भी दबंग था। मरने के बाद भी वह लोगों को परेशान कर रहा है। नाम बृजराज का है, रोग है, या भूत बृजराज है, या गृह – नक्षत्र खराब है; किसी को भी पता नहीं है।
मरने के बाद भी लोग उसे बृजराज को गालियां दे रहे हैं। जिसका बहुत बड़ा साथ था अब वह भी डर रहा है, कोई बड़ा ओझा, बड़ा गुनी बुलाकर उसका बंधेज करने के फिराक में हैं सब कोई ! मरने के बाद बृजराज चाहे जो कुछ हो गया हो, अब उसकी वंश बेल समाप्त हो जाएगी यह निश्चित है। करोड़ों की सम्पत्ति ताकत के बल पर लोगों की आत्मा को तकलीफ देकर कमाया था, बनाया था वह बेकार हो गई है क्योंकि, कृपण लड़का, ‘चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए’ किसी भी अच्छे काम में नहीं लगा सकता है।
बृजराज की तरह से अनर्गल कमाई की वजह से उस धन को सदुपयोग में नहीं लगना है, दुरुपयोग तो हो ही रहा है। जाने कोई उसके इतने बड़े घर को अपनाएगा या, वह भूतों वाला घर के नाम से जाना जाएगा ! जगह जमीन कोई दूसरा दबंग ही अपना लेगा, उसके हाथ से भी अच्छा काम शायद ही होगा !
अभी से बृजराज के घर की रौनक जाने लगी है; उधर देखने लायक नहीं है, बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता है। जाने कैसे तीन लोग बृजराज की बूढ़ी पत्नी, बहू, बेटा उस घर में रह लेते हैं। वहां भयानकता ने अभी से डेरा डाल दिया है। बृजराज के खेतों में भी कम पैदावार होती है। बृजराज के घर की ओर गया भी कोई धोखे से तो वह बीमार हो जाता है। ऐसा डर लोगों में भर गया है।
