पत्रकारिता

पल्लवी अवस्थी, मसकट, ओमान

पत्रकारिता क्या है ? पत्रकारिता वह माध्यम है जिसके द्वारा आम जनता तक देश विदेश की ख़बरें पहुँचाई जाती हैं। बाहरी दुनिया के बारे में हमें जानकारी समाचार के माध्यम से ही मिलती है। इन समाचारों को यथोचित माध्यम के उपयोग से जन-मानस तक पहुँचाने की पूरी प्रक्रिया को पत्रकारिता कहते हैं। कई दशकों पहले देश दुनिया की ख़बरें प्राप्त करने के साधन बहुत ही सीमित थे। समाचार पत्रों द्वारा हमें देश दुनिया की ख़बरें प्राप्त होती थीं। कुछ समय बाद समाचार पत्रों के अलावा दूरदर्शन और रेडियो के माध्यम से एक निर्धारित समय पर हमें समाचार देखने और सुनने की सुविधा शुरू हो गई। फिर धीरे-धीरे समाचार के माध्यम में बढ़ोतरी होने लगी और प्रिंट मीडिया के साथ साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर कई न्यूज़ चैनल्स आ गए जो हमें देश दुनिया की ख़बरों से अवगत कराते रहते हैं।

जैसे-जैसे समय बदलता गया संसाधन बदलते गए और पत्रकारिता के माध्यम भी बढ़ते गए। आज की हाईटेक दुनिया में पत्रकारिता भी हाइटेक बन चुकी है। अब पत्रकारिता सिर्फ़ समाचार पत्रों, दूरदर्शन और रेडियो तक सीमित नहीं है बल्कि अनेकों प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अतिरिक्त सोशल मीडिया से भी शुरू होने लगी है। पहले आज की ख़बरें हमें दूसरे दिन सुबह समाचार पत्र द्वारा प्राप्त होती थीं, पूरे 24 घंटों के इंतज़ार के बाद। परंतु, अब घटना घटने के पाँच मिनट बाद ही आपको ताज़ा ताज़ा ख़बरें आपके मोबाइल स्क्रीन पर दिख जाती हैं। देखा जाए तो यह एक अच्छी पहल है कि जिन ख़बरों का इंतज़ार करने के लिए पूरा दिन निकल जाता था और सुबह की घटना अगले दिन सुबह हमें पता चलती थी, वह हमें घटना घटने के पांच मिनट में ही पता चल जाती है। परंतु इसके साथ ही कभी-कभी उसकी प्रमाणिकता पर भी संशय होने लगता है।

पहले भले ही 24 घंटे के इंतज़ार के बाद हमें देश दुनिया की ख़बरें मिलतीं हों, परंतु उन्हें पढ़ने में उनके ऊपर विचार विमर्श करने में एक रुचि बनी रहती थी। पहले साधन भले ही सीमित थे किन्तु पत्रकारिता बिलकुल सटीक और सच्ची हुआ करती थी। जहां पत्रकारिता किसी घटना या व्यवहार के विषय को प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत करती थी वहीं समाचारों का एकत्रीकरण व लेखन की पूरी प्रक्रिया एक जिम्मेदारीपूर्ण व सटीक जानकारियों पर निर्भर हुआ करता था

पत्रकारिता हमारे संविधान का चौथा स्तंभ माना जाता है। एक पत्रकार सम-सामयिक घटनाओं, लोगों एवं मुद्दों आदि पर सूचनाएँ एकत्रित कर आम जनता तक विभिन्न माध्यमों की मदद से पूरी सच्चाई से पहुँचाता है। पहले की पत्रकारिता में एक भरोसे की झलक दिखाई देती थी जो आज अत्याधुनिक संसांधनों एवं बेहतर प्रस्तुतीकरण के बावजूद भ्रामक सा प्रतीक होता है। आज जितने संसाधन बढ़ गए हैं, पत्रकारिता का स्तर बढ़ने के बजाय गिरता जा रहा है। दूसरे शब्दों में या सरल शब्दों में कहूं तो मॉडर्न इक्विपमेंट्स, मॉडर्न मोड ऑफ़ कम्यूनिकेशन होने के बावजूद भी पत्रकारों में से वो “पत्रकार” वाली बात धूमिल होती जा रही है। आज के पत्रकार – पत्रकार कम टेली शॉप के किरदार ज़्यादा नज़र आते हैं।

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में तो अलग ही होड़ मची है – TRP की रेस में शामिल होने के लिए कुछ भी तथ्यों को जाने बिना ख़बरें बनाते हैं, जिसमें 10 प्रतिशत सच्चाई और 90 प्रतिशत मसाला होता है। जितने एड्स उतना बड़ा चैनल, जितनी ज़ोर से चिल्लाएँगे उतना बड़ा पत्रकार, एक ही सेंटेंस को तोड़ मरोड़ के दस बार बोलेंगे – मानों कोई मसाला मूवी रेडी कर रहे हों।

आओ अब सोशल मीडिया की बात करें। यहां की तो बात ही निराली है। यहां तो हर दूसरा व्यक्ति सो कॉल्ड “रिपोर्टर“ है – बड़ा पत्रकार है। यहां आपको पत्रकार कई रूप में नज़र आएंगे – एक समीक्षक के रूप में, वो ही वक़ील है, क़ानून भी है और वो ही जज भी। किसी भी प्रिय अप्रिय घटना के घटते ही आपके पास ख़बरों की चिड़िया चहचहानी शुरू हो जाती है सोशल मीडिया के माध्यम से और ऑन द स्पॉट दी एण्ड भी हो जाता है कि – फ़लाँ फ़लाँ घटना कैसे घटी ? क्या? हुआ होगा और क्या होना चाहिए ?

शायद मेरी बातों से सभी सहमत न हो, मेरे विचार लोगों को आपत्तिजनक भी लग सकते हैं परंतु दो घड़ी ठहरिए और सोचिए क्या आज के पत्रकारों में वह गुण है जो सच्चे पत्रकार में होने चाहिए। आज का पत्रकार अपने आपको सब से बड़ा पत्रकार साबित करने की रेस में इतना आगे बढ़ता जा रहा है कि उसने दाएँ बाएँ देखना ही छोड़ दिया है।

एक पत्रकार में निष्पक्षता, सटीकता, विश्वास, जवाब देही और सार्वजनिक संवाद को बढ़ावा देने के गुण होने चाहिए। ऐसा नहीं है कि उन्हें यह मालूम नहीं है या उनमें यह गुण नहीं है, परंतु होड़ ये ऐसी लगी है की मूल गुणों को पीछे छोड़, पता नहीं क्या पाने की राह में अंधाधुंध आगे बढ़े जा रहे हैं। हांलाकि इन गुणों की झलक कभी कभी देखने को मिलती भी है परंतु वह दिखते ही कहाँ लुप्त हो जाती है ये बता पाना मुश्किल है।

आए दिन सार्वजनिक संवाद भी देखने मिलते हैं परंतु वह संवाद कब वाद विवाद में बदल जाता है पता ही नहीं चलता। न्यूज़ चैनल लगाओ तो कभी लगता है सास बहु का ड्रामा चल रहा है तो कहीं किसी चैनल में कॉमेडी शो हो रहा है। कभी तो प्रतीत होता है कि सार्वजनिक संवाद के नाम पर झगड़ा-लड़ाई देख रहे हैं और कभी इतना डरा देते हैं कि लोगों में पैनिक क्रिएट हो जाता है। चीजों को इतना बढ़ा चढ़ाकर बताते हैं कि आस पास एक डर का माहौल उत्पन्न हो जाता है। हमारे बचपन से माता पिता हमें ज़ोर देकर समाचार देखने के लिए बोला करते थे, परंतु आज बच्चों को अख़बारों से समाचार पढ़ने का आग्रह तो करते हैं, परंतु टेलिविज़न के माध्यम से समाचार दिखाने से हम भी घबड़ाते हैं।

पत्रकारिता समाज का प्रतिबिम्ब होती है। पत्रकारिता का प्राथमिक उद्देश्य समाज को महत्वपूर्ण घटनाओं मुद्दों और विचारों के बारे में सूचित कराना होता है न की जनता को डराना। पत्रकार को प्राप्त सामग्रियों से जो उपयोगी समाचार है, सामग्री छाँटने की कला आनी चाहिए। पत्रकारों को अपने इन गुणों का और उपलब्ध अत्याधुकिन साधनों का सही रूप में इस्तेमाल करके एक सच्ची और सही पत्रकारिता को अंजाम देना चाहिए, जिससे लोगों में पत्रकारों के प्रति विश्वास बढ़े, और उनकी बातें सच हैं इसमें कोई दूसरी राय ना बने।

पत्रकारिता समाज का आईना होता है, इसमें पत्रकारों का जनता के प्रति एक बहुत बड़ा दायित्व होता है। समाज में एक बहुत बड़ी भूमिका निभाता है पत्रकार – “जनता को आस पास और देश विदेश की ख़बरों से अवगत कराने का एवं एक सटीक और सच्चे रूप में दुनिया का चेहरा जनता के सामने प्रस्तुत करने का”। इस ज़िम्मेदारी के साथ अगर पत्रकार अपना कर्तव्य निभाता है तो सच्चे रूप में वह एक समाज का आईना बन सकता है।

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