नियत और नियती

– राहुल चनानी, मुंबई
ज़िंदगी बढ़ते कदम को..
नया आगाज़ देती है..
ग़र नियत सही हो तो
नियति भी साथ देती है..
मंजिलो की राह में..
कई पड़ाव आयेंगे..
थम गए जो ये कदम..
फ़ासले बढ़ जाएँगे..
अपने भी अब थोड़े बचे..
जितने हैं उतने काफ़ी हैं
कुछ उम्मीदें रहीं अधूरी..
उसकी तुमसे माफ़ी है..
महत्वाकांक्षा और ख़ुशी..
जुड़े भी हैं और विपरीत भी..
हर लम्हे को जो जी पाये..
निश्चित है उसकी जीत भी..
जीवन कंपन से क्या डरना?
कंपन गति का अभिप्राय है..
कंपन से बनते सातों सुर और..
कंपन ही जीवन का पर्याय है।