तोड़ो, अपनी कारा तोड़ो, छुप-छुप यूं ना अश्रु बहाओ। नारी तुम सबला बन जाओ।।
एक दिवस की बात नहीं है, युगों–युगों की करुण कथा है। नारी के हिस्से में केवल, घोर निराशा और व्यथा है।। इस क्रम का अतिक्रमण करो तुम,
व्यापक देवी रूप दिखाओ। नारी तुम सबला बन जाओ।। कभी ब्राह्मणी ऋषिका बनकर, ‘असतो माँ’ का गीत सुनाया। और तमस से ग्रस्त मनुज को, अमर ज्योति का पता बताया।। आज तिमिर ने तुम्हे छुआ है, दहक उठो, ज्वाला कहलाओ। नारी तुम सबला बन जाओ।।
अपनी सीमा लांघ चुके हैं, दूषित कुंठित काले साए। और मोड़ पर छिपे हुए हैं, हिंसक पशु संघात लगाए।। दुश्शासन के दुस्साहस को, मर्यादा का पाठ पढ़ाओ। नारी तुम सबला बन जाओ।।
बिना शक्ति के सधे, राम की, लंका–जय की आस अधूरी। रावण को लांछित कर जाती, मर्यादा से बढ़ती दूरी। शक्ति स्वरूपा देवी हो तुम। अपना विस्तृत रूप दिखाओ। नारी तुम सबला बन जाओ।।
देवी माता की अवहेला, आर्य पुरुष का भान नहीं है। अबला और अशिक्षित नारी, भारत मां की शान नहीं है।। जागो, उठो, अमरता छू लो, मातृभूमि का मान बढ़ाओ। नारी तुम सबला बन जाओ।।