नफरत का बोझ
विक्रम सिंह, रानीगंज
नफरत, एक भारी शब्द है,
कंधों पर नहीं ढोया जा सकता,
लंबे समय तक नहीं सँभाला जा सकता।
इसलिए मैं नफरत नहीं करता,
ना किसी से, ना कभी।
क्या तुम करते हो नफरत?
किसी से, या शायद मुझसे भी?
क्या तुम नफरत करते हो—
हिंदू से, मुस्लिम से,
सिख से, ईसाई से?
छोटी जाति, बड़ी जाति,
अमीर, गरीब से?
तो मत करो नफरत,
क्योंकि यह शब्द भारी है,
मानुष के कंधे इसे
हमेशा नहीं थाम सकते।
इसके बोझ तले,
दब जाने का डर,
हर पल बना रहता है।
