देश हमारा नहीं झुकेगा
डॉ आशुतोष त्रिपाठी, रायपुर
समझौते के चौराहे पर,
कब तक अपना मान बिकेगा।
जाकर कह तो महा शक्ति से,
देश हमारा नहीं झुकेगा।
जिसकी हस्ती मिटा न पाए,
आक्रांता बन आए लुटेरे ।
सूरज को आंखें दिखलाते,
जुगनू के दल और अंधेरे ।
स्वावलंब के हम आराधक ।
स्वाभिमान अब नहीं डिगेगा।
हम अनेक हैं, मगर एक हैं,
तुमको क्या ये बात सताती ?
छद्म रूप से बांट रहे हो,
खुलकर लड़ते फटती छाती ?
जिसको जो करना है कर ले,
आर्यवर्त अब कहांरुकेगा।
तुम सुविधा पर बिके हुए हो ।
हमें घास की रोटी भाती।
तुम कोहनी पर टिके हुए हो,
हमको अपनी साख सुहाती ।
राणा के वंशज हैं हम भी,
कब तक रिपु का दंभ ठगेगा ॥
विश्व शांति का गीत सुनाते,
सकल जगत अपनी फुलवारी ।
हमने दिया बुद्ध दुनिया को,
शांति – अहिंसा हमको प्यारी ॥
छोड़ेंगे पर नहीं उसे भी,
कोई अगर हमको छेड़ेगा ॥
मर्यादा के हम पोषक हैं,
राम हमारे हैं अनुप्रेरक
यहां कृष्ण बन लीला करते,
गीता के गायक – उद्घोषक ॥
चक्र सुदर्शन रक्षक अपना,
पाञ्चजन्य का स्वर गूंजेगा।
