झुकना ज़रूरी है

अल्हड़ उम्र में मैं अक्सर अपने भविष्य को को लेकर लापरवाह हो जाया करती। वो बाबूजी ही थे जो इसके प्रति सदैव सजग रहते। उनकी यह सजगता मुझे खल जाती। "जब देखो तब चिंता करते हैं, कुछ करने से पहले ही उल्टे नतीजे सोच लिया करते हैं। क्या इनको कुछ अच्छा सोचना नहीं भाता।" ये प्रवाह मेरे मन में प्रबल हो जाता।

खैर, बढ़ती उम्र के साथ धीरे-धीरे जीवन में ठहराव आया। मैं अपनी पढ़ाई पूरी करके व्यवसायिक प्रशिक्षण के पश्चात एक प्रतिष्ठित विद्यालय में शिक्षिका के पद पर कार्यरत हो गई। लेकिन वह बेबाक स्वभाव आज भी कायम था। परिणाम की चिंता किए बिना आसानी से पूरे जोश व आत्मविश्वास के साथ अपनी बात कह ले जाना मेरा स्वभाव था। अक्सर लोग इसे उतावलेपन का नाम दे देते, लेकिन मैं इसे अपने स्वाभिमान का एक भाग मानती हूं। बिना किसी लाग-लपेट के अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करना मुझे अच्छा लगता है। लेकिन जहां लोगों को आईना देखने से डर लगता हो उन्हें यह सब कहां पसंद आ सकता है।

मैनें अपने जीवन में ऐसे लोग भी देखे हैं जो रात में सोने से पहले भी मेकअप करके सोने में विश्वास रखते हैं कि कहीं अपनी ही सूरत सपने में दिख जाए तो भूत समझकर न डर जाएँ। कुछ ऐसे भी लोग है जो अपनी स्तुति सुनकर फूले नहीं समाते। सच सुनने में डर सा लगता है कि जो अपनी झूठी छवि उन्होंने बना रखी है सच की चोट से चकनाचूर ना हो जाए। और चाटुकार लोगों से भी मेरा पाला पड़ा है जिनके खाने के दाँत और दिखाने के और होते हैं। मैं जो करूँ वो सब सही और आपका कुछ सोचना भी पाप। ऐसे लोग मौका परस्त होते हैं, परंतु खतरनाक नहीं क्योंकि वे अपने फायदे के बारे में ज्यादा सोचते हैं, आपके नुकसान के बारे में कम। खतरा तो उनसे हुआ है जो लगते तो बड़े सज्जन व सुलझे हुए हैं लेकिन आप को उलझन में डाल देते हैं। वे दो धारी तलवार हैं और इतने वर्षों के बाद बाबूजी की चिंताओं का कारण समझ में आने लगा है। उनका बात-बात पर घबराना, चिंता करना और कोई काम करने से पहले दस बार उसके विपरीत परिणाम के बारे में सोचना। क्यों बोलते थे वे उल्टा ?

अक्सर लोग आपकी बातों को अपनी समझ के दायरे में रहकर समझते हैं, अवलोकन करते हैं और उसके अर्थ का अनर्थ कर देते हैं। कभी-कभी बातें इतनी विकराल हो जाती हैं कि स्थितियाँ आपके बस के बाहर हो जाती हैं। ऐसे में काम आता है "अनुभव, सुझाव, सलाह व सही राय और आज बाबूजी ने फिर वही किया - स्थिति का गहराई से अवलोकन, उसके नतीजों का विश्लेषण और अंत में उसके लिए सही उपाय चाहे वह आपके स्वभाव के विरुद्ध ही क्यों न हो। क्योंकि हवाओं के विपरीत खड़े रहना है तो, “ झुकना जरूरी है "।

मीरा अशोक कुमार मौर्य, मुंबई