चिंतन ही जीवन की सार्थकता

डॉ. संध्या जैन श्रुति, जबलपुर

समाज में अनेक विषय हैं जिन पर आजकल सब चल रहे हैं, सभी का अपना नजरिया होता है, अपनी सोच होती है। पर हम यदि यह सोचें कि जिंदगी में असल आनंद तो सुख और दुख दोनों में है – यही तो जीवन के दो पहलू हैं और इन पर समान दृष्टि रखकर ही हमें अपनी अच्छी सोच रख सत्कर्म करने चाहिए। नेकी कर दरिया में डाल अर्थात दूसरे के दुख में खड़े रहना और अपने लिए कभी अपेक्षा न करना ही श्रेयस्कर होता है।

जीवन पथ पर संभल कर चलना और औरों को संबल देना ही व्यक्ति को श्रेष्ठ बनाता है। आधुनिक दौर में यदि हम सामाजिक सौहार्द का संदेश लेकर समाज के प्रति अपना कर्तव्य निभाते हैं तो निश्चित ही मन की संप्रेषणीयता सीधे मन से मन तक बात कर सकती है। वैसे भी रचनाकार का कर्तव्य होता है कि वह समाज को न केवल जागृत बनाकर रखे बल्कि उसे अपने कर्तव्य बोध के प्रति भी सचेत करें, क्योंकि चिंतनशीलता सामाजिक विसंगतियों और विषमताओं को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सहज आत्मीयता, सुकोमल प्रेम, विश्वास और समर्पण जीवन के ऐसे तत्व हैं जो प्रभाव अवश्य ही डालते हैं और यही जीव जगत का सार है। अच्छी सोच और अपनी बात कहने का सुंदर तरीका सदैव आकर्षण का केंद्र होता है। लोकहित और सर्वहित की भावना के साथ-साथ जहाँ पर आम आदमी की समस्याओं का और दुख दर्द का वर्णन होता है, साथ ही उनका समाधान भी होता है तो मन की सरल मिठास आल्हादित कर जाती है।

लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में एक ओर जहां राजनीति आम आदमी के जीवन को प्रभावित करती है वहीं दूसरी ओर आम आदमी भी राजनीति को प्रभावित करता है। सामान्य सी बात है आज लोगों ने भ्रष्टाचार को शिष्टाचार का माध्यम बना लिया है। समाज की समृद्धि को भ्रष्टाचार से जितना नुकसान पहुँचा है उतना और किसी ने नहीं पहुँचाया। कहते हैं ना सरकारी कार्य में अगर 50% का भी सदुपयोग हो जाए तो बहुत बड़ी बात है अतः व्यक्ति कहीं ना कहीं अपने कार्यों से देश और समाज को प्रभावित कर रहा है। पहले के समय में ऐसा नहीं था प्रत्येक व्यक्ति का हर छोटे बड़े इंसान के प्रति सम्मान का भाव होता था। गाँव में छोटे बड़ों को आदर देते थे और बड़े छोटों को आशीष देते थे। पर हम महानगरों में देखते हैं कि आजकल छोटे बड़ों का भेद समाप्त हो गया है। वह विनय भाव, सम्मान भाव, सदाचरण बहुत कम नजर आता है। इसीलिए आज अध्ययन, चिंतन और मनन की आवश्यकता है। जब चिंतन होगा तो, प्रकृति और पर्यावरण की भी चिंता होगी। जल और जंगल की भी चिंता होगी। चिंतन से ही आम आदमी के दुख दर्द और जीवन की कठिनाइयों का विश्लेषण हो पाएगा – कहाँ क्या सही हो रहा है और कहाँ क्या गलत हो रहा है – इस बात को जान लेना बहुत जरूरी है इन्हीं सब बातों से तो जीवन में मिठास, गरिमा और आनंद का आल्हाद बना रहेगा।

वर्तमान में हम देखते हैं की अमीर और अमीर होता जा रहा है और गरीब और गरीब होता जा रहा है। इंसानियत, न्याय, ईमानदारी, समर्पण, त्याग जैसे शब्द बौने होते जा रहे हैं। वरिष्ठ कवि आचार्य भगवत दुबे जी ने लिखा है –

बिकता है न्याय, सस्ता ईमान हो गया
क्रेताओं को सुलभ, अब सम्मान हो गया
मेहनतकशों को रोटी, होती नहीं मयस्सर
अब जानवर से बद्तर इंसान हो गया।।

उनके लिखे शब्द जीवन में उतारने लायक होते हैं। सर्वधर्म समभाव की भावना, सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया और आपकी कल्पना ही मनुष्य के चिंतन को श्रेष्ठ बनाती है। कुछ दिनों की जिंदगी में काम अच्छे कर लेना, किसी के काम आ जाना, किसी का साथ दे देना ,किसी का दर्द ले लेना, अपने मन को भी सुकून देता है। कभी किसी की मदद करके देखिए मन द्रवित हो जाएगा। एक अलग ही तरह की खुशी प्राप्त होगी। कुछ पल को तो यूं लगेगा किसी का दर्द मिट जाए, हमारा हाथ लग जाए खुशी इससे बढ़कर कोई भी हो नहीं सकती। तो आईये आज हम सब थोड़ा इस बारे में सोचते हैं, थोड़ा चिंतन करते हैं और जीवन को सार्थक बनाने वाले इस सत्य को स्वीकार कर लेते हैं।

हमारी संस्कृति ने पूरी वसुधा को कुटुंब माना है, अतिथि को भगवान माना है। अहिंसा के पुजारी इस देश में ज्ञान और शिक्षा को सर्वोपरि माना है। माता-पिता और गुरु का सम्मान जीवन का प्राथमिक कर्तव्य माना है। वर्तमान में सभी स्वयं को ऐसा बना लें तो फिर कोई दुख, कोई तकलीफ ना बचेगी, सभी खुशहाल होंगे और स्वर्ग से नजारे जमीन पर ही नजर आएंगे। सब एक दूसरे के साथ हिल मिलकर गाएंगे – सबसे अच्छा देश हमारा, सबसे अच्छा ज्ञान, आओ सींचे इसे मोहब्बत से, कर दें बुराइयों को कुर्बान। ना ही किसी से नफरत होगी अपितु मन में प्यार खिलेगा। गाँव और शहरों में भी सुख चैन मिलेगा। संस्कृति का सम्मान होगा, मन उपवन महकेगा, सुखद चिंतन उन्मेषों से भारत नया बनेगा।

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