कृत्रिम बुद्धि से बचें

कृत्रिम बुद्धिमता के चलते इंसान की स्वाभाविक बुद्धि नष्ट हुऐ जा रही है। कृतिम बुद्धिमता कंप्यूटर का एक प्रकार का नया परिष्करण है जहां साफ्टवेयर का तरह-तरह से बहुआयामी इस्तेमाल करके इसकी उपयोगिता को सिद्ध करना है। विभिन्न कामों को करने में उसकी मदद लेना है। मानव द्वारा अपनी नैसर्गिक बुद्धि को एक तरह के डिब्बा बंद करके मशीन को गिरवी रख देना है। जो नाना प्रकार के भेद भाव से मानव को उसकी आवश्कता के अनुसार परिणाम दे सके। हमारे जीवन में मशीनों पर निर्भरता न केवल श्रम क्षेत्र में पराश्रित हो गया है, बल्कि अब तो बौद्धिक स्तर पर भी होता जा रहा है। कागज की जगह कंप्यूटर के रेडियेशन विस्तृत स्क्रीन का प्रचलन वैश्विक बाजार का मुख्य आकर्षण बनाकर विभिन्न विज्ञापनों के माध्यम से लोगों की चाहना बनाया जा रहा है। देश के कागज उद्योग विदेशी पूंजी के भेंट चढ़ रहे हैं। इंसान की आंखे समय से पहले अपनी दृष्टि खो रही हैं। बच्चों में चश्मा धड़ल्ले से अपनी बिक्री का दर हर साल बढ़ा रहा है। भले ही उस रफ्तार से देश का आर्थिक विकास दर न बढ़ रहा हो। बच्चे देश का भविष्य हैं, पर दुविधा ये है कि आज की बढ़ती कंप्यूटर आधारित निर्भरता ने पूरे तंत्र के साथ-साथ इनकी भी सेहत मार रखी है। जरूरत ही इनका दुश्मन हो गया है। कंप्यूटर आधारित अध्ययन अथवा रोजगार के काम का एक महत्वपूर्ण उपकरण हो गया है। कृत्रिम बुद्धि ने मनुष्य की बुद्धि को अपने चंगुल में लेना शुरू कर दिया है, उनकी निजी जिंदगी में अपनी दखलअंदाजी से उनकी सोचने-समझने को बांधना शुरू कर दिया है। वो अपने जीवन को इससे परे होकर नही देख पाते। उनका रोज का महत्वपूर्ण समय का एक बड़ा हिस्सा कृत्रिम बुद्धिमता के कंप्यूटर के साथ बीत रहा है।
मानवीय रिश्तों की जैविकता को, जीवंतता को कृत्रिम बुद्धिमता ने बेजान और कृत्रिम बना दिया है। भौतिक अधिकार ने नए प्रौद्योगिक को फलने का एक वैश्विक मंच दिया है, जहां कंप्यूटर का कृत्रिम जगत मानव के रहने का वर्तमान ठिकाना हो गया है। बिना किसी संदेह के इसने मानव के जीवन को अपने अनुरूप गढ़ा है, जहां मानव की इच्छा डिजिटल हो गई है, उसकी बौद्धिकता कृत्रिम मशीन हो गई है। कई मानवों का श्रम मात्र एक कृत्रिम मशीनी हो गई है और कइयों का श्रम मात्र एक कृत्रिम बुद्धि संपन्न कंप्यूटर व मशीन के द्वारा हो रहा है। काम करने वाले मानव हाथ बेकाम खाली हो रहे हैं। मानवीय बुद्धि खाली और कृत्रिम बुद्धि के कुप्रभाव से जाली हो रही है। कृत्रिम बुद्धि का इस्तेमाल करके लोगों को तत्क्षण अपनी बातों में लेना दूसरे पूंजीवादी देशों के लिए आसान हो गया है, उनका रुख क्या हो ? वो क्या सोचें, उन्हें किस तरह के उत्पाद करने के लिए उकसाया जाए, किस देश को किस तरह के सामानों के उपयोग वाला बाजार बना लिया जाए, लोगों की जासूसी जाति जिंदगी में किस तरह उनके डाटा की चोरी करके की जाए और उन्हे दूसरे मुल्कों की कंपनियों को बेच कर कैसे उनकी सुरक्षा का खतरा बढ़ा दिया जाए। कैसे डिजिटल डकैतों से लोगों को लूटा जाए। एक बड़े खतरे के साथ मशीनी युग अपने आधुनिक औपनिवेशक डिजिटल – दौर में अप्रत्यक्षत: काबिज है, और यह कब्जा लोगों के जन-जीवन के साथ ही नहीं बल्कि देश की सुरक्षा के साथ भी खतरा बढ़ा रहा है,और अपनी पकड़ विभिन्न नेटवर्क चैनलों के माध्यम से बना रहा है।
हमने कंप्यूटर और उसकी कृत्रिम बुद्धिमता को बनाया है, पर आज वो हमें ही बना रहा है। विभिन्न लाइक और शो-शां के खुजलाहट को उकसा कर उसमे मानवीयता को मात्र सेल्फी लेने भर तक सीमित कर लोगों को एक संवेदनाहीन अवज्ञा करने वाला मशीन बना कर रख दिया है। जीवन में सबकुछ कंप्यूटर से पूछ कर किया जाने लगा। सर्वाधिक विज्ञापनों का निवेश क्षेत्र कंप्यूटर के सामाजिक एप्लीकेशन में हो रहा है। सूचना-संपन्नता का अड्डा व्यक्तियों के ब्लॉग पर जाति तौर पर निर्भर है। यहां किसी व्यक्ति की पहचान जानना कठिन होता है, साथ ही सूचना पर पूर्णतः अंधा होकर आंख नहीं खोला जा सकता है क्योंकि यह क्षेत्र विभिन्न अतिक्रमणों-संक्रमणों से बाधित रहता है और इसकी आड़ में बहुत से गुनाह भी होते रहे हैं। यह इतना विकृत जरिया हो गया है कि एक मोबाइल के इस्तेमाल करने पर भी आये दिन साइबर-क्राइम की चपेट का चोट खाते रहते हैं। देश ने बेधड़क इसके इस्तेमाल की छूट दे रखी है, पर उस लिहाज से प्रशासन रक्षा-क्षेत्र अपनी दुरुस्त चौकसी को सुस्त कर सब होने देने को मजबूर और मंजूर बना दिखता है, जबकि होना यह चाहिए कि कृत्रिम बुद्धिमता के ऊपर एक मानवीय बुद्धिमता का पूरा नियंत्रण हो, जो लोगों और देश की रक्षा के प्रति जवाबदार हो। कृत्रिम बुद्धिमता के द्वारा हो रहे अपराधों को कम या नहीं के बराबर किया जा सके अन्यथा मानव के साथ-साथ अब मशीन भी इस असामाजिक कुकृत्य में अपना योगदान बढ़ती बेकारी में बेधड़क देगी और लोग धीरे-धीरे कृत्रिम बुद्धिमता को अपनी बुद्धि से अपने जीवन से खदेड़ बाहर निकाल देंगे।
जीवन में प्रौद्योगिक क्रांति के भय को देखते हुए यह मशीनी जीवन और उसके निकायों की असफलता को परिपुष्ट कर इसके भविष्य को खतरनाक संदेहों में व्यवस्थित कर रखे हैं। अतः सांप के बिल मे हाथ डालने से पहले उसका जहर उतरने का मंत्र भी जानना चाहिए। डिजिटल इंडिया में कृत्रिम बुद्धिमता को नियंत्रित-मर्यादित करने की आवश्यकता इतने बड़े लोकतंत्र को बिना किसी खतरे में डाले चलाने की जिम्मेदारी नेता और कर्मचारियों के साथ कानून के रखवालों की है, ताकि देश इसका बेजा इस्तेमाल न करे और यह देश की व देशवासियों की तरक्की में काम आए न की उनकी बर्बादी मे हाथ बटाएं। पर भारत की बुद्धिमता इस ओर से अभी भी सुमति संपन्नता नहीं हो पाई है और न लोगों में जागरूकता को जारी कर उन्हें सख्त फैसला लेने में अपना योगदान दे पाई है। उदाहरण के रूप में गूगल कंपनी के कृत्रिम बुद्धिमता द्वारा हो रहे जासूसी डाटा की खरीद-फरोख्त को जानते हुए चीन जैसे महान देश ने बड़ी लड़ाई से उसे अपने देश में प्रतिबंधित कर दिया। इससे चीन की किसी भी तरह आर्थिक अवन्नती नहीं हुई और न चीन ने अपने देश और देशवासियों को खतरे में डालकर मजबूरी का सौदा सर झुका कर किया, बल्कि गर्व से अपना सर उठा कर अपने और दूसरे देशों के लिए एक मिसाल बन कर उभरा। भारत को भी चीन से सीखना चाहिए। जब तक इंसान जिंदा है तब तक सीखता रहता है, और यह दौर कभी ख़त्म, नहीं होता। अतः कृत्रिम बुद्धिमता पर कम भरोसा और अपनी मानवीय बुद्धिमता पर अधिक ध्यान दें, अन्यथा जीवन पथभ्रष्ट होता जायेगा क्योंकि कृत्रिम बुद्धि में मानवीय संस्कार नहीं होते हैं।