इच्छायें

पल्लवी अवस्थी, मसकट , ओमान

इस रंग बदलती दुनिया में,
जाने कितना झमेला है;
अपनेपन का दिलों में आज,
ना पहले जैसा मेला है।

धरती तो पहले ही बंटती थी,
अब आसमान भी बाँट रहे;
जाने कौन सी चाहत है,
बस अपनों को ही काट रहे।

चाहत का कभी ना अंत हुआ,
लालच का रेलम रेला है;
इस लोभ लिप्सा ने ही तो बस,
अपनों को दूर धकेला है।

ऊपर-ऊपर से तो मुस्काते,
पर अंदर से सब सूना है;
इतनी इच्छायें जीवन में कि,
जीना खुलकर भूल गए।

ये भी ले लें वो भी चाहें पर,
चाहत कभी न ख़त्म हुई;
झूठी मुस्कान के पीछे सच्ची,
ख़ुशी भी कहीं गुम हुई।

इस रंग बदलती दुनिया में,
चाहत के पीछे भाग रहे;
पर पीछे छूट रहा सूनापन,
इस बात का हरदम भान रहे।

इच्छायें अनंत व्योम सी हैं,
इनसे पार ना पाओगे;
छोड़ इन्हें ना बढ़े यदि,
अपनों से दूर हो जाओगे।

जीवन ऋतु
राहुल चनानी, मुंबई

जीवन के इस नील गगन में..
जब कारे बदरा छाते हैं ..
धूमिल हो जातीं हर ख़ुशियाँ..
और अपने भी नज़र चुराते हैं ..

और जब इसी कारे बदरा से..
बरखा रानी आ जाती है..
सारे संकट को दूर भगा के..
मोर पंख फैलाते हैं ..

इंद्रधनुष तब ही आता है..
जब धूप और बरखा मिलते हैं ..
जीवन के इस बगिया में भी..
ये हाथ पकड़ कर चलते हैं ..

जीवन की आपा धापी में..
हमें पैर जमा कर चलना है..
वक़्त कभी ले साथ उड़ चले..
कभी उसके साथ फिसलना है..

जीवन की अंतिम साँसो तक..
सारी ऋतुएँ ही आयेंगी..
कभी तुम्हें बेबस कर देंगी..
कभी तुमको बहुत लुभाएँगी..

वक़्त कभी बदले जो करवट..
क्षण भर की तन्हाई है..
आलिंगन कर लेना इनको..
जीवन की सच्चाई है..