अशोक अंजुम के छंद
अशोक कुमार शर्मा ‘अंजुम’, अलीगढ़
पहलगाम हमले पे मौन साध लेते किंतु
शत्रु के शवों पे वो सवाल कर डालते ।
उजड़ा सिंदूर न तनिक भी दिखाई देता
ऑपरेशन सिंदूर पे मलाल कर डालते ।
हिंसा है ये, हिंसा है ये, शांति के पुजारी बन
रोकने को सेना सौ बवाल कर डालते।
पाक को बचाने हेतु छोड़ते न कोई राह
गांधी होते भूख हड़ताल कर डालते।
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अपने जनम से नापाक ये इरादे लिये
पाल के आतंक को है सीने को फुला रहा।
कितनी ही बार मार पड़ी है परंतु पाक
अपनी हिमाकतों के गीत गुनगुना रहा।
अपने गले में खुद डाल लिया फंदा अब
धुआं धुआं होके न नज़र कुछ आ रहा।
फुस्स हैं मिसाइलें कि मौन हो गए हैं ड्रोन
एक करने पे ये हज़ार चोट खा रहा।
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धधक उठी है ज्वाल, शंखनाद हो गया कि
भवानी को शेर पर सवार होना चाहिए ।
हर ओर सेना पर गुमान का ही गान बजे
पाक वाले पापों पे गुबार होना चाहिए ।
पनप सके न विष बेल फिर कोई कहीं
शत्रु की जड़ों पर यूं प्रहार होना चाहिए ।
छिड़ जो गया है युद्ध, भूल कर शांति, बुद्ध
जो भी होवे किंतु आर-पार होना चाहिए।