अलविदा

शालिनी त्रिपाठी मुंबई

उसने मुड़ कर देखा — नीलेश बड़ी खामोशी से गाड़ी चला रहे थे। उसने सोचा वो भी तो चुप ही है। दरअसल उसे अब तक यकीन नहीं आ रहा था कि यह सब कुछ सच है या एक सपना जो टूट जाए तो अच्छा है। उसने धीरे से खुद को चिमटी काटी, “नहीं ,ये सब कुछ सच ही है” ! अभी आधा घंटा पहले जो कुछ भी डॉक्टर ने बोला उस बात को सोच कर उसका मन कांपा, फिर खुद को समझाते हुए बुदबुदाई, “सब ठीक हो जाएगा, कितनों को होता होगा, सब थोड़े ही मर जाते हैं।

“नीलेश ने पूछा” — क्या हुआ?” उसने बस मुस्कुरा कर कहा, “कुछ नहीं “। नीलेश ने गाड़ी साइड में लगा कर उसका हाथ थाम कर कहा, “कुछ नहीं होगा, हम अच्छे से अच्छे डॉक्टर के पास जाएंगे। “उसका बांध टूट गया, गालों पर आंसू बह चले, “अभी तो नेहा का टेंथ है,आशु भी सेवेंथ में है, इन बच्चों को टेंशन फ्री माहौल चाहिए, हमारा सपोर्ट चाहिए,और अभी ये सब…” ! उसको लग रहा था कि वह गुनाहगार है इन सब तकलीफों की, उसको थोड़ा ध्यान रखना चाहिए था।

पिछले साल भर से उसे भूख कम लग रही थी, पेट भी फूला फूला सा रहता था। उसे लगता रहा, भारी खाना खाने की वजह से हुआ, रात में ठीक से न सोने की वज़ह से हुआ। तभी डॉक्टर के पास आती तो शायद…..। दोनों ने तय किया कि बच्चों को कुछ नहीं बताएंगे। दरअसल निकिता को ओवेरियन कैंसर डिटेक्ट हुआ था। डॉक्टर ने और भी कई टेस्ट कराने को कहा था ताकि उसकी स्टेज का पता लगा कर इलाज को शुरू किया जा सके।

घर पहुंचते ही नेहा उखड़ी हुई थी, “मम्मा कितना टाइम लगा दिया, कहां गए थे आप दोनों ? मुझे सैंडविच खाना था पर आप तो थे ही नहीं।” नीलेश ने तेज़ आवाज़ में कहा, “तो खुद बना लेती” उसने नीलेश को आंखों से इशारा कर चुप होने को कहा और किचन में चली गई। दरअसल उसके मन में इतना शोर था कि बाहर का शोर उसे चुभ रहा था। सैंडविच बना कर नेहा के रूम में ले गई तो वो मुंह फुला
कर बैठी थी। मन किया गले लगाकर बोले कि बेटा कुछ काम मम्मा के बिना भी करना सीख लो पर उसे लगा वो रो देगी इसलिए चुपचाप बाहर आ गई।

आशू को दूध दिया तो नीलेश से कॉफी का पूछा। नीलेश ने हां में सिर हिलाया तो वो दो कप कॉफी बना कर नीलेश के पास बैठ गई। नीलेश मोबाइल स्क्रोल करने में लगे थे। साफ था मन कहीं और था और दिखाया कुछ और जा रहा था।

वो पूरी रात सो नहीं पाई। अजीब अजीब से ख्याल आते रहे। एक मन था जो डट कर कह रहा था कि कुछ नहीं होगा और दूसरा डरा रहा था कि तुम मर गई तो क्या होगा? उसने सोचा वो नीलेश से कहेगी दूसरी शादी कर लेना। नीलेश का जवाब भी उसे खुद ही मिल गया। वो बोलेंगे कि कौन करेगा मुझसे इस उम्र में शादी और तुम्हे कुछ नहीं होगा, बकवास बंद करो। इसी तरह पूरी रात वो अजीब सी मनोस्थिति में खुद से ही सोच कर अपनी सोच को मिटाती रही।

नेहा पढ़ाई को लेकर गंभीर थी उसकी निगरानी नहीं करनी पड़ती थी पर आशू तो मौका मिलते ही गेम खेलने बैठ जाता था, उसको देखना पड़ता था कि पढ़ रहा है या कुछ और कर रहा है। नेहा के रूम में जाकर निकिता नेहा के सामने बैठ गई, “क्या हुआ मम्मा” नेहा ने पूछा, उसको समझ में नहीं आया कि क्या बोले और कैसे ? लेकिन फिर उसने कहना शुरू किया, “देखो तुम तो पढ़ाई को लेकर समझदार हो लेकिन ये आशु का मुझे समझ में नहीं आता कि क्या करेगा आगे जाकर, मेरी बात का इस पर असर होता नहीं, नेहा अब इसकी पढ़ाई की जिम्मेदारी तुम्हीं संभालो।” क्या मम्मा कुछ भी ? मेरी सुनता है क्या ? अभी इस साल तो मुझे इसके साथ माथा पच्ची में अपना टाइम नहीं गंवाना, आप ही संभालो अपने लाडले को। “रूम से निकलते ही दो आंसू गिर गए, “अरे मैं ही संभालना चाहती हूं पर भगवान ने समय न दिया तो…..।”

अगले एक महीने डॉक्टर के पास दौड़भाग और टेस्ट के ऊपर टेस्ट करवाने में ही गुजर गए। तब तक नेहा के बोर्ड के एग्जाम भी शुरू हो गए। डॉक्टर ने तुरंत ही कीमोथेरेपी शुरू करवाने को कहा था। उसने डॉक्टर से कहा कि एक महीने बाद करवाऊं ? तब तक मेरी बेटी के बोर्ड के एग्जाम हो जाएंगे। डॉक्टर ने अच्छी डांट लगाई। उसने नीलेश को नेहा के साइंस और मैथ्स के पेपर के बाद कीमो करवाने के लिए राजी कर लिया। नीलेश नाराज़ तो बहुत हुए लेकिन सिर्फ दस दिन की ही बात है बोल कर राज़ी कर लिया।

कीमोथेरेपी शुरू होने के बाद तो उसका शरीर खुद को ही नहीं संभाल पाएगा। घर में सब कैसे होगा, सोचकर पड़ोस के गुप्ता जी के घर जो खाना बनाने आती थी उसको बुला कर उसको खाना बनाने के लिए लगा लिया। रोज ही उसको जाकर बताती रहती कि हमारे यहां इसको ये पसंद है और ये नहीं पसंद। सबके बारे में ऐसे बताती जैसे वो जीवन भर निकिता के घर खाना बनाने वाली हो। झाड़ू, पोछा, बर्तन वाली बाई से भी हफ़्ते में एक दिन डस्टिंग कराने लगी।

कीमोथेरेपी शुरू होने के बाद पता चला कि जितना उसने सुना था ये उससे कहीं ज्यादा तकलीफदेह था। उसको लग रहा था वो धीरे धीरे खत्म हो रही है। उसके किमोसेशन से निकलने के बाद उसने कई बार आधी खुली हुई आंखों से देखा कि नीलेश उसके पास बैठ कर रो रहे होते थे। तब उसे लगता था कि क्या वो सच में मरने वाली है। बच्चों को ये बताया गया था कि मम्मा के लीवर में स्वेलिंग है और उसका इलाज़ चल रहा है। तीन महीने के कीमो के बाद उसकी सर्जरी की तारीख़ तय हुई। नेहा के बोर्ड खत्म हो चुके थे। एक दिन नीलेश ने नेहा को सब बता दिया और अभी आशू को न बताने को कहा। उसके बाद से नेहा उस घर की दूसरी निकिता बन गई। आशू के ऊपर पूरी नज़र रखना, पापा का ध्यान रखना, सुबह जल्दी उठ कर आशू को टिफिन देना, सब करती। पहले निकिता थोड़े बहुत घर के काम कर भी लेती थी पर अब नेहा उसे उठने भी न देती। उसकी नख़रीली बच्ची के नखरें कहां चले गए, सोच कर उसकी आँखें भर आतीं।

सर्जरी के तीन दिन पहले से एडमिट होना था। एक रात पहले निकिता ने नेहा और आशू से खूब बातें की, सांप सीढ़ी खेली और दोनों बच्चों को गले लगा कर सोने भेज दिया। दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ कर पूरे घर में एक चक्कर लगा कर देखा, अपनी नई न पहनी हुई साड़ियों को देखा। नहा धोकर नीलेश को उठाया जो शायद सुबह ही सोए थे, क्योंकि पूरी रात उनको करवटें बदलते हुए देख रही थी। तैयार होकर कमरे से निकलने से पहले नीलेश ने उसे हल्के से बाहों में भर कर कहा, “सब ठीक हो जाएगा” और उसने नीलेश को कस कर बाहों में भींच लिया, दोनों दो मिनट तक एक दूसरे से लिपटे हुए बहते हुए आंसुओं को रोकने की कोशिश करते रहे। ये उनका आखिरी आलिंगन था क्योंकि फिर निकिता घर नहीं लौटी। सर्जरी के बाद उसकी हालत बिगड़ती गई। नीलेश आज भी उसका सिर अपनी छाती पर और उसकी बाहों की कसावट अपने आस पास महसूस करता है।

 

 

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