साइकिल बम/ बम ब्लास्ट...(व्यंग)
गिरिधर राय, कोलकाता
एक दिन मैंने एक आतंकी से पूछा
भइया ! भारत के कोने-कोने में
आये दिन तुम सीरियल ब्लास्ट कराते रहते हो
कलकत्ते में कभी नहीं किया
कलकत्ते से क्या डरते हो
डरते तो हम अपने बाप से भी नहीं
फिर कलकत्ते की क्या बात है।
मैंने मन में कहा काश ! डर गए होते
तो आज आतंकीनहीं हुएहोते
माँ-बाप से न डरने वाले ही
आतंकी और कलंकी होते हैं
फिर क्या बात है
आतंकी बोला- सुनो
बम-ब्लास्ट ऐसेनहीं होता है
यह एक टीमवर्क है
उसका एक तरीका होता है
सबसे पहले एक साइकिल खरीदी जाती है
फिर एक भीड़-भाड़ वाली जगह तलाशी जाती है
अब पहला आतंकी उस साइकिल को
वहाँ खड़ाकर के चला जाता है
आधे घण्टे बाद दूसरा एक टिफिन बाक्स
उस साइकिल पर लटका कर खिसक जाता है
तीसरा टिफिन बाक्स में टाइम बम रखता है
आधे घण्टे बाद चौथा
टाइम बम में टाइम सेट करके दूर चला जाता है
और निश्चित समय पर बम फट जाता है।
तुम्हारी सरकारें सोयी की सोयी रह जाती हैं
और हजारोंबेगुनाह जानें चली जाती हैं
पर कलकत्ते में हर बार
प्लानिंग फेल हो जाती है
क्योंकि कभी तीसरे तो कभी चौथे
आतंकी के पहुँचने के पहले ही
साइकिल ही गायब हो जाती है।
सहानुभूति दर्शाते हुए मैंने कहा –
फिर बाइक का प्रयोग किया होता
उनकी भी हालत वही हुई
तब कारों का उपयोग किया होता
अरे ! कारों तक तो दो नम्बर वाला भी
नहीं पहुंच पाता है टिफिन बाक्स
रखने के पहले ही कारें गायब हो जाती हैं।
और सारी प्लानिंग धरी की धरी रह जाती है
आखिरी बार तो रिमोट से
खुलने वाली गाड़ी का प्रयोग किया था लाखों रुपये उस पर खर्च किया था
पर किस्मत धोखा दे गयी
वह रिमोट वाली गाड़ी
दस मिनट में ही गायब हो गयी
लौटा तो देखा
वहाँ पर एक भिखारी तन कर खड़ा था
और आतंकवाद
उसके पैरों में औधे मुँह पड़ा था
भिखारी से पूछा, यहाँ एक गाड़ी थी कहाँ गयी बड़े ही इत्मिनान से बोला
पुलिस उठा ले गयी
मैने तो आप से पहले ही कहा था
गाड़ी यहाँ मत खड़ा कीजिए
यह नो पार्किंग जोन है,
पर भिखारी की सुनता कौन है
मेरा सिक्स्थ सेंस जागा
मैं उस भिखारी के पीछे भागा
और ढूंढ निकाला और उससे पूछा
पुलिस को कैसे पता चलता है?
भिखारी ने बड़े गौर से मुझे
ऊपर से नीच तक देखा
फिर मुझसे पूछा तुम कौन हो
मैने कहा मैं एक शरीफ आदमी हूँ
भिखारी बोला –
शरीफ तो पाकिस्तान में रहता है
पर हकीकत में वह सिर्फ नाम का शरीफ है,
गर वह शरीफ होता तो
आतंकवादियों को पनाह न देता
पर तुम शरीफ कैसे हो सकते हो
तुम्हारे तो दोनों तरफ काली काली
और बीच में सफेद दाढ़ी है
शक्ल सूरत से तो तुम आतंकी लग रहे हो
मैंने कहा-क्या बक रहे हो ?
मैं एक कवि हूँ !
भिखारी दो कदम पीछे हट गया और बोला
आतंकी कवि का कुछ भी नहीं कर सकता है,
पर कवि चाहे तो अपनी कलम से आतंकी क्या
उसके बाप को भी नेस्तनाबूद कर सकताहै।
पर यदि तुम कवि हो तो तुम्हें बता दे रहा हूँ
पुलिस को खबर मैं ही करता रहता हूँ
इससे तुम्हेक्या मिलता है?
‘कमीशन’ ।
शर्मनहीं आती है।
शर्म किस बात की कविवर !
अरे ! जब देश के कर्णधार ही
कमीशन खा रहे हैं
तो हम कौन सा गुनाह कर रहे हैं?
फर्क इतना है
जनमेत्री
वो देश को बेचकर कमीशन खाते हैं
और हम देश को बचा कर कमीशन पाते हैं
हमने देश के लिए अपने को भिखारी बना दिया
और उन्होंने अपने लिए
देश को ही भिखारी बना दिया।
भिखारी बनकर भी
मैं बेगुनाहों को बचा रहाहूँ
साथ ही इसी भीख के धन्धे से ही
दो-दो दुकाने भी चला रहा हूँ
एक साइकिल की,
दूसरी टिफिन बॉक्स की
हमारे दोनों बेटे बाइक पर चल रहे हैं
और हम आज भी अपने लिए नहीं
बल्कि देश के लिए भीख माँग रहे हैं
और देश को वारदातों से बचाने के लिए
हम ताउम्र भीख माँगते रहेंगे, माँगते रहेंगे ।
भारत माता की जय !
जिन्दाबाद !!वंदेमातरम !!
