सम्पादक की ओर से

प्रदीप शुक्ल

जागो मोहन प्यारे !

जनमैत्री का यह अंक ऐसे समय में पाठकों तक पहुंच रहा है, जब देश देशद्रोहियों की बेहद खौफनाक साजिश के खुलासे से गम्भीर है। भरोसा किया जाना चाहिए कि देशवासियों की चिंता की गंभीरता हमेशा की तरह ‘आई गई’ न होकर रंग दिखलाएगी। वक्त बड़ी तेजी से निकलता जा रहा है। दुर्भाग्यवश हम सब छद्म राष्ट्रवाद और ‘सियासी राष्ट्रीयता’ के दलदल में धंसे फंसे ‘आत्ममुग्धता’ से आनंदित हो रहे हैं। अपने मुंह मियां मिट्ट बनने की महामारी ने हमारी सोचने-समझने की क्षमता मार दी है। संकुचित सियासी दायरे से बाहर निकल ही नहीं पा रहे हैं। हर बात को सियासत से जोड़कर देखते हैं। यह प्रवृत्ति बदलनी होगी और सच्चे राष्ट्रवाद की तरफ मुड़ना होगा, अन्यथा आत्ममुग्धता की अतिरेकता हमारी ‘आत्मा’ को ही क्षत-विक्षत कर देगी।

जब राष्ट्र संकटों से घिर जाएगा तो फिर सियासत घरी की धरी रह जाएगी। मुल्क के दुश्मनों को जानने-समझने पहचानने की जरूरत है और यह तभी सम्भव होगा जब हमारी सोच में राष्ट्रवाद को जगह मिलेगी। 15 अगस्त और 26 जनवरी को ही’झंडा ऊंचा रहे हमारा’ का नारा लगाने भर से राष्ट्रवाद के प्रति प्रतिबद्धता नहीं साबित हो जाती। राष्ट्रवाद हमारे विचारों में आना चाहिए। अब ‘राष्ट्रवाद फर्स्ट’ का नारा लगना चाहिए। राष्ट्र को विध्वंसकारी ताकतों से बचाने की जिम्मेदारी सिर्फ शासन तंत्र के शीर्ष पर बैठे लोगों की ही नहीं, बल्कि हर राष्ट्रवासी का धर्म है, कर्तव्य है।

इसी भावना के साथ आगे चलना होगा, अगर देश को बचाना है – दहशतगर्दों से, असली राष्ट्रद्रोहियों से, शांति अमन-चैन के दुश्मनों और तरक्की की तेज रफ्तार से जलन रखने वालों से। राष्ट्रद्रोही वह हैं, जो नफरती जहर घोल रहे हैं हमारे समाज में, जो जल रहे हैं भारत की आर्थिक तरक्की से, जिन्हें तकलीफ है देश की बढ़ती सामरिक ताकत से, जो हमला कर रहे हैं हमारी जड़ों पर, कमजोर कर रहे हैं हमारी मिल-जुलकर रहने, चलने, आगे बढ़ने की संस्कृति और कुछ नया करने की चाहत को। ऐसे सफेदपोश दहशतगर्द हमारे इर्द-गिर्द, हर जगह, हर नुक्कड़-मुहल्ले में पल-बढ़ रहे हैं। इनका कोई जाति-धर्मनहीं है। नफरत फैलाना जिनका पेशा है और इंसानियत का कत्ल करना जिनका धर्म है, ऐसे लोगों को पहचानना होगा। समझना परखना होगा। हवा-हवाई की धुंध का पर्दा अपने चेहरे से उतारकर आँखे खोलनी होंगी।विचारों में घुल-मिल रहे जहर का इलाज करना होगा और यह सम्भव तभी होगा जब टूटेगी हमारी नींद ।

आखिर कब तक सोते रहेंगे दिखावे भुलावे और झूठे खोखलेराष्ट्रवाद के नशे में। सरहदों की हिफाजत में प्रहरी अपना फर्ज अदा कर रहे हैं। अपनी ताकत दुनिया में जगजाहिर कर रहे हैं, लेकिन सरहदें तभी सुरक्षित रह पाएंगी जब हमारा घर साजिशों से मुक्त रह पाएगा। अगर अंदरूनी हालातइसी कदर बिगड़ते रहे तो फिर ‘बाहरी ताकतों’ के लिए राह आसान हो जाएगी। इसलिए आइए हम सब ‘राष्ट्र फर्स्ट’ के नारे के साथ अपने घर की हिफाजत के लिए नवजागरण का अभियान शुरू करें।

धन्यवाद
प्रदीप शुक्ल

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