संध्यावंदन और गायत्री मंत्र

प्रकाश नाथ झा कोलकाता

“ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्
संध्यावंदन में, गायत्री मंत्र का जाप किया जाता है। यह एक धार्मिक अनुष्ठान है, और माता की, आराधना करने की विधि है। गायत्री मंत्र करने के कई लाभ हैं। पारंपरिक रूप से, सनातन के द्विज समुदाय इसे करते हैं। द्विज का शाब्दिक अर्थ, “द्वि” और “ज” से मिलकर बना है। द्वि का अर्थ होता है, दो और ज का अर्थ होता है जन्म। जिसका दो बार, जन्म हो चुका हो। ये शब्द, उन लोगों के लिए, प्रयोग किया जाता है, जो ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य वर्ण के हैं। इन तीनों वर्णों के लोगों को, द्विज माना जाता है, क्योंकि उनकी दीक्षा, संस्कार, दूसरा, या आध्यात्मिक जन्म, माना जाता है। द्विज शब्द का प्रयोग, उन लोगों केलिए भी किया जाता है, जो पवित्र सूत्र अनुष्ठान उपनयन से गुजरते हैं और गायत्री मंत्र का जाप करते हैं।

द्विज शब्द का प्रयोग जैन धर्म में भी किया जाता है। जैन धर्म में द्विज जाति का अर्थ भारतीय समाज की उच्च जाति में गणना की जाती है। यह अवधारणा इस विश्वास पर आधारित है, कि एक व्यक्ति पहले शारीरिक रूप से जन्म लेता है और बाद में आध्यात्मिक रूप से दूसरी बार जन्म लेता है, आमतौर पर जब वह वैदिक अध्ययन के लिए एक विद्यालय में दीक्षा लेने के लिए संस्कारों से परिचित होता है।

गायत्री मंत्र को सनातन धर्म में महामंत्र माना जाता है। इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति का तेज बढ़ता है और मानसिक चिंताओं से मुक्ति मिलती है। इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति सन्मार्ग की ओर प्रेरित होता है। इस मंत्र का जाप करने से जीवन में सुख एवं समृद्धि बनी रहती है। इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति की कुंडलिनी शक्ति जाग्रत होती है। इस मंत्र का जाप करने से ध्यान केंद्रित करने में सहायता मिलती है, जिससे  व्यक्ति के मन की, अस्थिरता कम होती है। प्रातः काल में गायत्री मंत्र का जाप करने से मन शांत रहता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इससे मन के दुःख, पाप, द्वेष, भय, शोक जैसी नकारात्मक वस्तुएं दूर होती हैं। इससे एकाग्रता बढ़ती है और वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करने में सहायता मिलती है। इससे आत्मा सक्रिय होती है। इससे त्वचा में खून का संचार बढ़ता है और त्वचा जवान दिखती है। इससे बौद्धिक क्षमता और मेधाशक्ति बढ़ती है।

गायत्री मंत्र का जाप करने का सब से सही समय, प्रातःकाल का होता है और विशेष तौर पर ब्रह्ममहूर्त में उचित माना गया है। नित्य गायत्री मंत्र का जाप, प्रातःकाल में, बिना कुछ खाए, कर के देखिए, आपकी दिनचर्या में, आपकी वाक्पटुता में, आपकी शैली में, आपके व्यक्तित्व में, एक अभूतपूर्व परिवर्तन दिखेगा।