बन्दर देखे दर्पण में

व्यग्र पाण्डे, गंगापुर सिटी, राजस्थान

बंदर जब जब देखे चेहरा दर्पण में सबकुछ अर्पण कर देता वो दर्पण में उल्टा सीधा करे वो मुख में ‌ लेकर कैसा स्वाद मिला है उसको दर्पण

में अपना जैसा देख सामने गुस्से से खुद पर ही खों खाए बंदर दर्पण में लेकर दर्पण छत पे जाकर बैठ गया दुनियां जैसे मिल गई उसको दर्पण में

एक काच के टुकड़े कितने कर डाले दिखने लगा समुदाय उसको दर्पण में कहते पुरखा रहा हमारा पहले ये लगे क्या कुछ हमें आज भी दर्पण में हरकत उसकी समझ ना कोई आती ‘व्यग्र’ उसको देखे या फिर दर्पण में