बने हर तरह हिंदुस्तानी

अशोक ‘अंजुम’, अलीगढ़

हाय भुलक्कड़! भूल गए हम
उनके बलिदानों की गाथा,
जिनके बल पर जीते हैं हम
उठा-उठा कर अपना माथा।

भूल गए पशुओं के जैसा
दुश्मन का व्यवहार रहा जो,
भूल गए भारत माता ने
अरि का अत्याचार सहा जो।

भूल गए हम वे माताएँ
किए देश पर लाल निछावर,
और देवियाँ वे, जो गर्वित-
रहीं सदा सिंदूर लुटा कर।

भूल गए उनको जीवन में
जिनके कभी बसंत न आया,
इश्क-मुहब्बत गौंण रहा, था-
देश-प्रेम जिनका सरमाया।

कैसे उत्सव, कैसी महफ़िल
कैसी ईद, कहाँ की होली,
वे थे ऐसे लोग जिन्होंने-
हँसकर लीं सीनों पर गोली।

भूल गए हम कालकोठरी
कालापानी वाले किस्से,
उनको, जिन ने छोड़ रौशनी
चुने अंधेरे अपने हिस्से।

भूल गए गर्दनें अनगिनत
फाँसी के फंदों पर झूलीं,
हुए कृतघ्न शहीदों की जो-
हमने सब गाथाएँ भूलीं

पाकर आज़ादी का तोहफा
कैसे मद में झूल गए हम,
लूट-खसोट मचाने निकले
राष्ट्रप्रेम को भूल गए हम।

चकाचैंध ने रची साज़िशें
अच्छे-अच्छों को भरमाया,
भूल गए हम कर्तव्यों को
सिर्फ़ देश से लेना आया।

याद रहे बस गोरखधंधे,
करें स्वयं के घर में चोरी।
याद रहा, घपले-घोटालों-
से कैसे हम भरें तिजोरी।

याद रहा बस स्वार्थ-शिखर पर
आँख मूँदकर चढ़ते जाना,
याद रहा भ्रष्टाचारों के
नए आँकड़े गढ़ते जाना।

हम-से नाशुक्रों की ख़ातिर
क्या वीरों ने प्राण दिए थे?
क्या ऐसे ही भारत के हित
लाखों ने बलिदान दिए थे?

कुछ तो शर्म करें हम यारों
रखें आँख में कुछ तो पानी,
रखें देश को सर्वोपरि हम
बनें हर तरह  हिंदुस्तानी!

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