– गिरिधर राय, कोलकाता
पश्चिम की नकल ने
माँ-बाप को दर किनार कर
बीवी-बच्चों को ही खास कर दिया
भारतीय संस्कृति और सभ्यता का
इसने सत्यानाश कर दिया
दो सगे भाइयों ने बचपन में
जो पकड़ा था एक दूसरे का हाथ
रहने के लिए साथ-साथ वह बहुओं के आते ही छूट गया
एक संयुक्त परिवार आज फिर टूट गया
बँटवारा सबका हुआ
घर का द्वार का, खेत खलिहान का,
बड़े से बड़े और छोटे से छोटे सामान का
बैल का, भैंस का, धवली गाय का
जायदाद सम्पत्ति और आय का
पर गाड़ी अटक गई, जब
बँटवारा होने को आया माँ-बाप का
उन्हें अपने पास रखने के लिए
कोई भी बहू तैयार न थी
क्योंकि अब वे ऐसी नौका थे
जिसमें पतवार न थी
यही वे बेटे हैं, जिनको
अपने पास रखने के लिए
वे लड़ते थे, झगड़ते थे,
फिर एक-एक को-
गोदी में लेकर ही सोते थे
यही नहीं जब वे पढ़ने के लिए
शहर जाते थे, तो उनके जाने के
बाद घण्टों चौखट पर बैठकर वे रोते थे
खैर माँ-बाप को
वृद्धाश्रम में भेजने पर सहमति हुई
पर माँ अड़ गई बाप ने कहा मान जा पगली
मत पड़ किसी झमेले
में वर्ना तेरे ये लाल,
तुझे छोड़ आयेंगे किसी कुम्भ के मेले में
सब कुछ शांति पूर्वक सलट गया
पर एक पुश्तैनी जमीन का टुकड़ा
विवाद में पड़ गया
छोटा तो छोटा,
बड़ा भी उसी के लिए अड़ गया,
कोर्ट में तारीख पर तारीख पड़ने लगी,
दोनों की सूरत एक दूसरे को गड़ने लगी
साल पर साल बीतते गये खेत-खलिहान,
एक-एक कर बिकते गये
आज उनके मुकदमे की
चौदहवीं सालगिरह थी,
बहुत लम्बी जिरह थी।
कोर्ट खचा-खचा भरा था,
कोई बैठा तो कोई खड़ा था।
मजबूरन दोनों भाइयों को
एक ही बैंच पर बैठना पड़ा
और अपने नम्बर का इन्तजार करना पड़ा
नाम पुकारे जाने पर
बड़े ने छोटे को ऊँघते हुए पाया
पर छोड़कर गया नहीं
सिर पर हाथ रखकर जगाया तू सो रहा है,
नम्बर आ गया है, इशारे से बतलाया।
छोटे ने कहा – कल बहू के कहने पर
बेटे ने चूल्हा अलग कर लिया,
रात भर सो न सका
चाय-बिस्कुट खा के बैठा तो नींद आ गई
बड़े ने छोटे का हाथ पकड़कर कहा
तू कल की बात कर रहा है
मैं तो तीन महीने से
चने का सत्तू पी कर आ रहा हूँ
छोटा भईया कहकर सीने से लिपट गया
दोनों की आँखों से आँसू बह रहे थे,
लोग जाने क्या-क्या कह रहे थे
संतरी चिल्लाता रहा पर दोनों
उसी तरह लिपटे रहे
वकीलों ने आकर अलग किया और बोले-
मुकदमा खारिज हो जायेगा
तुम लोग हार जाओगे
मुकदमा तो तुम हारोगे वकील साहब!
हम तो जीत गए।
संतरी-वकील चिल्लाते रह गए पर दोनों भाई एक दूसरे का हाथ पकड़े
और कोर्ट के बाहर आ गये
आँसू तो दोनों की ही आँखों में थे
पर छोटा कुछ ज्यादा ही रो रहा था
बड़े ने कहा – तू अब भी रो रहा है
अरे छोटू ! ये तो जो हमने
अपने माँ-बाप के साथ किया था,
वही तो हमारे साथ हो रहा है
अब उस विवादित जमीन के टुकड़े पर
एक सुन्दर-सी झोपड़ी है
धवली गइया भी
अपने बछड़े के साथ वहीं रहती है
सामने राम जी का मन्दिर है
सुबह-शाम रामायण की कथा होती है
गाँव के लोग तो सुनने आते हैं
पर बहू-बेटों की हिम्मत नहीं होती है
गाँव के लोग कहते हैं-
राम और भरत अयोध्या में नहीं
इसी झोपड़ी में रहते हैं