निदेशक की कलम से

वर्षो से एक लेख पढ़ता आ रहा हूँ "विज्ञान - वरदान या अभिशाप"। सभी लेखों में बेहतरीन तथ्यात्मक विश्लेषण भी देखे गए हैं। परन्तु, उन तथ्यों की गहराई में ना जाकर आज की एक ज्वलंत समस्या का जिक्र अवश्य करूंगा। विज्ञान की खोजी प्रवृत्ति के गर्भ से निकले एक डिवाइस - मोबाइल की बात संक्षिप्त में अवश्य करना चाहूंगा। इसकी उपयोगिता की अनगिनत श्रृंखला का विश्लेषण करना अतिशयोक्ति होगा। यही नहीं "जनमैत्री" के हर संस्करण में प्रत्यक्ष या परोक्ष किसी भी रूप में इसका जिक्र हो ही जाता है।

यह सर्वविदित है कि किसी भी मानवीय खोज या यूं कहें कि प्रकृति में उपलब्ध संसाधनो के इस्तेमाल में भी यदि समझ और संयम ना दिखाया जाये तो उसका दुरुपयोग भी आसानी से किया जा सकता है। ठीक उसी तरह मोबाइल की दुनियां में भी ऐसा ही संभव है। अनेकों सुविधाओं से युक्त मोबाइल का भी इस्तेमाल कुछ अनर्गल तरीके से किया जा रहा है।

आज की ज्वलंत समस्या है - मोबाइल के माध्यम विभिन्न तरीकों से किये जा रहे फ्रॉड्स। फ़ोन पर पैसे ट्रांसफर कराना, ओटीपी लेकर डाटा चुराना और उसका गलत इस्तेमाल करना - ये सब पुराने हथकंडे हैं। वर्तमान में चलन में है - मेसेज करके या अन्य तरीकों से प्रलोभित कर वीडीयो कॉल के लिए उकसाना और फिर गलत तरीके से पैसे ऐंठना। दूसरे शब्दों में ऐसी गतिविधियों में लिप्त करना ताकि आसानी से ब्लैक-मेल किया जा सके।

इसका जिक्र जागरूकता फ़ैलाने के उद्देश्य से इसलिए भी आवश्यक हो जाता है - क्योंकि आज मोबाइल पढ़ाई से लेकर कमाई तक के लिए जरूरी साधन बन गया है और बच्चों से लेकर बुद्धिजीवियों तक के हाथ में आसानी से देखा जा सकता है। साधन होना बहुत अच्छी बात है पर उसके इस्तेमाल में कण्ट्रोल हमेशा अपने पास ही रखना है और अपने कंट्रोलिंग पावर को इस्तेमाल करने के समय अपने पूरी बुद्धि, विवेक और संयम का उपयोग करना है।

किसी भी शंका की स्थिति में अपने अभिवावक या शुभ चिंतक से तुरंत सलाह लें पर मोबाइल के जरिये होने वाले फ्रॉड से अवश्य बचें।

सधन्यवाद अमित त्रिपाठी