जीवन प्रतिपल आशाओं से, जुड़ा हुआ एक सपना है ।
उम्मीदों के सूरज से बल ले, प्रतिपल आगे बढ़ना है । ।
सपनों की दुनियाँ से आगे, भावी इतिहास सुहाना है ।
करनी बस अपने हाथों में, उज्जवल भविष्य बनाना है । ।
पत्रिका का वार्षिक सफर तय करने के दौरान हुए अनुभवों के आधार पर स्वरचित उपरोक्त पंक्तियाँ सटीक बैठती हैं। "बगैर सपनों के मंजिलें कहाँ मिलती, जीवन तो बस सफर का एक ताना - बाना है" - इसलिए सपने देखना भी जरूरी है और साथ ही उपयुक्त कदम उठाना भी। इन्हीं प्रयासों का परिणाम "जनमैत्री" है। परन्तु सपने यूँ ही कहाँ पलते हैं - उनके पीछे भी विचारों का एक अथाह संग्रह होता है जो जीवन शैली के साथ - साथ अनेकों घटनाओं का सम्मिश्रण एवं जीवन से जुड़े प्रभावशाली व्यक्तित्व के विचारों से ओत - प्रोत होता है। ऐसा ही एक विचार जो पत्रिका के रूप में व्यक्त हुआ, मेरी माँ श्री मती शशि त्रिपाठी, संयोगवश जिनकी पुण्यतिथि 15 नवम्बर को ही है, के आत्मबल और निरंतर अग्रसोची होने की प्रवृत्ति से प्रेरित है, जिसमें सहभागी बने मेरे बहन - बहनोई पल्लवी - नितिन गोपालकृष्ण अवस्थी। इस कड़ी में मार्गदर्शक बन अग्रज श्री प्रदीप शुक्ल ने कार्यकारी संपादक की भूमिका का निर्वहन कर पत्रिका को एक साकार स्वरुप प्रदान किया है।
इस एक वर्ष में "जनमैत्री" जो अपने पांचवें संस्करण के साथ प्रस्तुत है, ने पाठकों के प्रेम के साथ ही लेखकों का ध्यान भी आकर्षित किया है। लेखकों की सहभागिता, पत्रिका पर उनके विश्वास का द्योतक है जिसका प्रमाण "जनमैत्री" के मूल विषयों की प्रस्तुति से मिलता है। इस संस्करण में, जो प्रमुख त्योहारों के मध्य प्रकाशित हो रहा है, आप उनकी खशबू अवश्य पाएंगे। दशहरा से दीपावली तक हम मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन से जुड़े कई उत्कृष्ट तथ्यों का स्मरण - अनुसरण करते हैं। श्री राम के जीवन से सम्बंधित बेहद संवेदनशील तथ्यों की झलक विभिन्न लेखों के माध्यम से देखने को मिलेगी।
"दीपावली" पर्व का नाम आते ही हृदय रोमांच से भर जाता है। दरअसल, हर त्यौहार की अपनी एक गरिमा होती है, पर दीपावली की बात ही अलग है। पर्व के पश्चात एक दूसरे से मिलने और आशीर्वाद लेने - देने की प्राचीन परंपरा का आज भी अनुपालन हो रहा है, जो आपसी प्रेम को बढ़ाता है। यद्यपि इस परम्परा ने परिस्थितियों वश नया रूप ले लिया है, जो आजकल फ़ोन और डिजिटल माध्यम से होने लगा है, बावजूद इसके इसकी मिठास और प्रारूप आज भी बरकरार है।
यह सन्देश अपने आप में महत्वपूर्ण है कि आज हमें वाकई एक दूसरे के सहारे की कितनी जरूरत है। युग भले ही अर्थ प्रधान हो परन्तु बिना आपसी सहयोग के किसी भी वस्तु का इधर से उधर होना असंभव है। अतः स्वाभाविक रूप से हर उस योगदान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए, जिसकी वजह से प्रकृति का संतुलन बना हुआ है। इन्हीं छोटे - छोटे प्रयासों का सम्मिलित रूप इस पत्रिका का संयोजन है। उम्मीद है आप अवश्य पसंद करेंगे।
सभी पाठकों को "जनमैत्री" परिवार की ओर से दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !