“भारत कोई भूमि का टुकड़ा नहीं है, यह जीता जागता राष्ट्रपुरुष है” कई बार आपने सुना होगा, पढ़ा होगा माननीय अटल बिहारी बाजपेयी की इन पंक्तियों को जिसे कई लोगों ने समयोचित अपने भाषण का हिस्सा भी बनाया है। भारत जो अपने नाम में ही हज़ारों वर्षों का इतिहास समेटे हुए है वाकई में अपनी सुदृढ़ संस्कृति, ज्ञान और विवेक के कारण कई बार आक्रांताओं के कुकृत्यों का शिकार होने के बावजूद सनातन के परचम को सम्पूर्ण विश्व में उजागर करने में सक्षम रहा है।
वर्तमान परिस्थिति में एक बार पुनः सनातन के परचम को लहराते हुए देखने का सौभाग्य हम सबको मिल रहा है। जी हाँ ! मैं बात कर रहा हूँ सनातन के महान पर्व “महाकुम्भ” की, जो इस बार सैकड़ों वर्षों पश्चात विशिष्ट ग्रहों के संयोग की वजह से आस्था और आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। साथ ही उत्तर प्रदेश के यशश्वी मुख्यमंत्री माननीय योगी आदित्यनाथ जी की दूरदर्शिता और व्यवस्था दोनों ही इस आकर्षण में चार चाँद लगा रहे हैं। अब तक लगभग 45 करोड़ श्रद्धालु प्रयागराज में आयोजित महाकुम्भ में आस्था की डुबकी लगा चुके हैं और यह संख्या महाशिवरात्रि के साथ इस पर्व की समाप्ति तक 55 करोड़ तक पहुँचने का अनुमान है, जिसमें देशी के साथ अंतर्देशीय श्रद्धालु भी शामिल हैं।
इतनी उचित और सटीक व्यवस्था के बावजूद यद्यपि कुछ अप्रत्याशित घटनाओं के कारण मन व्यथित है। पर, परिस्थितियां जैसी भी हों दुर्घटनाएं किसी भी स्वरुप में स्वीकार्य नहीं हैं। किसी भी दुर्घटना से त्वरित नुकसान स्वयं का ही होता है, जो मात्र सतर्क रहने और यथाशीघ्र अपना उद्देश्य पूर्ण कर वहां से निकल जाने में शायद टाला जा सकता है। साथ ही जब हम आस्था की भावना से किसी धर्मक्षेत्र में जाते हैं तो यथासम्भव दूसरों की भी मदद करें। अपनी भावनाओं को इन पंक्तियों द्वारा व्यक्त किया जा सकता है :
कुछ जिम्मेदारी हमनें ली है, कुछ जिम्मेदारी तुम भी ले लो
आस्था के महाकुम्भ संग, जीवन में कुछ मिश्री घोलो
जाओ हाथ बढ़ाओ अपना, कुछ सुख अपना दे दुःख ले लो
यही सनातन का मतलब है, इक पल में दूजे का हो लो
महाकुम्भ के इस पर्व में इतना तो अवश्य देखने को मिल रहा है कि सनातन के प्रति नई पीढ़ी की जागरूकता तेजी से बढ़ रही है। बस जरूरत इस बात की है कि उनकी इस दिशा में बढ़ती उत्सुकता को सही जवाब मिलता रहे। विगत कई दशकों में विरोधी परिस्थितियों के बावजूद सनातन के मशाल वाहकों की कभी कमी नहीं रही है और आज भी ऐसा ही है स्वरूप चाहे जैसा भी हो, यही विश्वास सनातन के सुगंध को सदैव सुवासित करता रहेगा।