तय करेंगे हम

जब कभी रुक जायेगा दिन–रात का ये क्रम।
जी रहे या मर रहे, ये तय करेंगे हम।। 

तब तलक बहती रहेगी जिंदगी की नाव।
औ’ छलेंगे मन अपरिचित अनछुए से भाव।।
टूट बिखरेगा कभी जब नित्यता का भ्रम।
जी रहे या मर रहे, ये तय करेंगे हम।। 

गेह के ताने बुने भर कर हृदय में नेह।
पर पुरानी हो रही है मृत्तिका की देह।।
हारकर रुक जायेगा जब सर्जना का श्रम।
जी रहे या मर रहे, ये तय करेंगे हम।। 

मोह के नाते सजाए हर तरफ मेले।
परिजनों के हाथ के सारे सितम झेले।।
जब अकेले ही बचेंगे राह में दुर्गम।
जी रहे या मर रहे, ये तय करेंगे हम।।

काल छुप कर ले गया कुछ राह के मनमीत।
जो बचे चलते दिखे फिर मौत से भयभीत।।
जब अनर्गल ही लगेगा मौत का मातम।
जी रहे या मर रहे ये तय करेंगे हम।। 

उम्र भर रोते रहे भर कर हृदय में चाह।
कौन अपना या पराया, बस यही परवाह।।
जब सहज मरना लगेगा, ज़िंदगी निर्मम।
जी रहे या मर रहे ये तय करेंगे हम।। 

देह को दुर्बल करे है अमरता की चाह।
मन सदा विह्वल हुआ सुनकर दुखों की आह।।
जब कभी दिख जाएगा जीवन मरण में सम।
जी रहे या मर रहे ये तय करेंगे हम।।

दीप बन जलते रहे, काटी अमा की रात।
इक किरण की आस में बीते पहर भी सात।।
सत्व जब दुर्वार सा, अपना लगेगा तम।
जी रहे या मर रहे ये तय करेंगे हम।।

डॉ .आशुतोष त्रिपाठी,रायपुर