चाँद की रंजिश

डॉ.दुर्गेश कुमार शुक्ल,प्रयागराज

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नीलाम्बर से नीला चाँद जब जब नीचे तकता होगा,
देख धरा के चाँद को मेरे, वह धीरे धीरे जलता होगा।
उसकी बिंदिया देख के निंदिया उसकी जाती होगी,
देख गुलाबी होंठ प्रिया के आहें रह रह भरता होगा।।

उसकी झील सी गहरी आँखें जब भी यूँ शरमाती होगी,
नील गगन की उजली गंगा, जी भरके बलखाती होगी।
पलक झुके जब प्रिय के मेरे, सागर का भी मन डोले है,
काजल की काली से उसकी, घनघोर घटाएँ छाती होगी।।

चाँद सफर में जब भी अकेले, रात में आगे बढ़ता होगा,
देख प्रिया को साथ में मेरे वह रंजिश मुझसे रखता होगा।।
प्रिय जब जब मेरी बाहों में होगी, पूनम की वे रातें होंगी,
और अमावस का वह चाँद हाथ को अपने मलता होगा।।