व्यग्र पाण्डे
गंगापुर सिटी, राजस्थान
हिन्दू धर्म का प्राण जो
सब दुखों का त्राण जो
पढ़ लिया धारण किया
भगवद् गीता ज्ञान जो ।1।
कृष्ण मुख से जो निकला
ऐसा अद्भुत विचार जो
योग की शिक्षा समाहित
पहुंचाती उस पार जो ।2।
कर्म ही जीवन मूल है
कहती गीता है हमारी
मोह का बंधन मिटाती
शंका करे निर्मूल सारी ।3।
गीता बताती इंद्रियों संग
चित्त-मन पर हो नियंत्रण
सार जीवन का ये ही है
कर्म से फल का निमंत्रण ।4।
पार्थ को रण क्षेत्र में जब
मोह ने तत्काल घेरा
हो विमुख कर्तव्य पथ से
करने लगा जो व्यर्थ हेरा ।5।
गांडीव रखा धरती पर जब
समझायें समझ नहीं आया
चक्षु अलौकिक दे अर्जुन को
विराट स्वरूप दिखलाया ।6।
तब रथी श्री कृष्ण ने
ज्ञान गीता का उतारा
मोह ग्रसित कौन्तेय को
दे दिया उपदेश प्यारा ।7।
वेद उपनिषद सार इसमें
धर्म का सुविचार इसमें
करने वाला मैं स्वयं हूँ
तू निमित्त का भार इसमें ।8।
इसलिए केवल कर्म कर तू
फल की आश नहीं करनी
कहा कृष्ण ने अर्जुन से यूँ
मोह पाश तुझको हरनी ।9।
धर्म गीता कर्म गीता
सच मर्म गीता ज्ञान है
जिसने ना जाना इसे
वो स्वयं से अंजान है ।10।
नमन करता रहा जगत
इसके अपूर्व ज्ञान को
भटकने ना दे कभी जो
सुपथ से इंसान को ।11।
साक्षात कृष्ण स्वरूप गीता
जगत अमृत रूप गीता
जिसने पिया धन्य हो गया
देश धर्म प्रारूप गीता ।12।
जब बने अवस्था जीवन में
क्या सही क्या गलत है अब
फिर बैठके पढ़ लो गीता को
असमंजस मिटे पल में तब ।13।
गीता शास्त्रों का है सार
गीता सनातन का प्रचार
आत्म-परमात्म मिलन गीत
जीवन में लाती है सुधार ।14।
पढ़ कर इसे विचार सखे
जो है सुख की आगार सखे
ये शरीर अधीरता को तज दे
फिर नहीं मृत्यु की मार सखे ।15।
गीतानुसार आचरण तेरे
कर लेंगे कष्ट हरण तेरे
बन पार्थ और बढ़ जा आगे
रोके मत बढ़ा चरण तेरे ।16।
श्वांस श्वांस में हो गीता
ये श्री कृष्ण नाम की संहिता
होता सफल जीवन उसका
शिक्षा पर इसकी जो जीता ।17।
गीता जीवन का आधार सखे
कर इस पर कुछ विचार सखे
लेकर डुबकी हो ले पवित्र
हर हर गीते मन धार सखे ।18।