शालिनी त्रिपाठी
मुंबई
उसे सिद्धिविनायक मंदिर के बाहर खड़े देखा। दूर से लग रहा था कि वही है, पास जाकर पक्का हो गया कि अदिति ही है। “अदिति” आश्चर्य मिश्रित खुशी के साथ मैं जोर से बोली। मेरा बेटा बोला “कौन अदिति” पर तब तक मैं लंबे लंबे डग भरती अदिति के सामने थी। वो मुझे देखकर मुस्कुराने लगी पर थोड़ी झिझकी सी थी। “अरे तू यहां” उसने हंस कर कहा।
“हां, ये मेरा बेटा है गौरव, इसकी बहुत ही अच्छी नौकरी लग गई है, इसीलिए बाप्पा का आशीर्वाद दिलाने लाई हूं, और तू ?”
“आदित्य की शादी की पत्रिका सबसे पहले बाप्पा के चरणों में रखने आई थी “वो नजर चुराते हुए बोली।
“तेरा आदित्य तो कितना गुणी है, कितना नाम किया उसने, सब जानते हैं उसको, मैंने भी टी वी में उसे डांस करते हुए देखा। गजब का टैलेंट है उसमें, तूने उसे डांस क्लास में डाल कर अच्छा ही किया। भगवान उसे खूब तरक्की दे “मैंने एक साथ ही कितना कुछ कह डाला फिर भी लग रहा था कि आदित्य का और भी गुणगान करूं।
वो हंसी और फिर उसकी आंखो के तारे बुझ से गए।
“तूने दर्शन कर लिए” मैंने पूछा “हां, तुम भी कर लो, मैं चलती हूं, बाय” कहकर उसने अपनी गाड़ी की तरफ कदम बढ़ा दिया।
मुझे बुरा लगा कि एक बार कहा भी नहीं कि शादी में आना। हुंह, बड़े लोग हैं हमें क्यों बुलाएंगे।
गौरव बोला ” ये वही आदित्य की मम्मी हैं क्या जो ‘नाचो सब’ टी वी प्रतियोगिता में जीता था।
” हां ”
” इसकी शादी ………. पर ये तो ……”
” क्यों ”
” कुछ नहीं, यहां तक आए हैं तो मंदिर से चौपाटी भी चलेंगे, तब तक शाम हो जाएगी, अच्छा लगेगा ”
गौरव को हमेशा से चौपाटी की शाम बहुत पसंद थी, बचपन से आज तक हम सिद्धिविनायक गणपति के दर्शन के बाद चौपाटी न गए हों ऐसा तो मुझे याद नहीं।
चौपाटी में मुझे फिर से अदिति दिखी, पहले सोचा ‘नहीं मिलती हूं, क्या पता उसे मुझसे मिलने में शर्म आ रही हो। पर दस साल की दोस्ती भारी पड़ गई और मैं उसकी तरफ़ चल पड़ी। पास जाकर देखा वो जाने कौन सी दुनिया में खोई समुंदर को एकटक निहारे जा रही थी। उसकी नजरें समुंदर के पीछे डूबते सूरज में जमी थीं। पलकें भी झपकाना भूल गई थी।
” कहां खोई हो ” मेरी आवाज सुनकर वो चौंकी।
” अरे तू, बैठ न, कुछ नहीं यूं ही, जिंदगी के सफ़र के बारे में सोंच रही थी ”
” उस सफ़र में मैं याद हूं कि नहीं ” मैंने थोड़ा तंज कसा।
“तुझे कैसे भूल सकती हूं, अकेली बैठती हूं तो लगता है कि लोकल ट्रेन में तेरे साथ जैसे मस्ती करती थी वो दिन फिर से वापस आ जाएं। मुझे क्या आदित्य को अभी भी तेरी बनाई हुई गवार की सब्जी याद है और मैं आज तक तेरी जैसी सब्जी न बना पाई”।
” कैसे हम दोनों सी यस टी स्टेशन में भाग कर चढ़ते थे ट्रेन में ” मैं भी पुराने दिनों में खो गई।
“मैं हमेशा लेट होती थी और तू मेरे लिए सीट रखती थी ”
” हां, और जो औरतें पहले से खड़ी होती थीं वो मुझे यूं घूर कर देखती थी मानो खा ही जाएंगी, ” हम दोनों इतना जोर से हंसे कि गौरव भी हमें घूरने लगा जो हमसे थोड़ा दूर खड़ा होकर फोटो शूट में लगा था।
” हां और वो सब्जी वाली, ज्वेलरी वाली लड़की और कार्ड का कवर और ड्राइंग बुक बेचने वाले लड़के, जो दादर से चढ़ जाते थे … सब याद है मुझे ” उसकी आंखो में हजार वाट का बल्ब जल पड़ा।
” हूं ” ” सब्जी वाली तो तुझे ही ढूंढती रहती थी, जिस दिन तू नहीं आती थी उस दिन मुझसे पूछती थी’ ताई कुठे गेली ‘ ”
वो पहले की तरह तमक कर बोली ” और ज्वेलरी वाली तुझे ” हम दोनों हंस पड़े ।
” मैं ज्वेलरी रोज थोड़े ही लेती थी पर सब्जी तो तू रोज लेती थी ” ।
” क्या करती, मेरे पहुंचते पहुंचते आदित्य सोने लगता था। किसी तरह उसको कुछ खिला दूं, बस यही सोच कर सब्जी गाड़ी से ही तैयार कर लेती थी। फटाफट चपाती भाजी बन जाती थी, उसे खिला पिला कर मैं खुद के लिए चाय बनाती थी” ।
” पर उसने तेरी मेहनत सार्थक कर दी अदिति। कब है शादी और लड़की कहां की है, उसी की फील्ड की है ? ”
” अगले हफ़्ते शादी है ” उसने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।
” लड़की का क्या नाम है ”
” लड़की नहीं लड़का है, विकी नाम है” वो शून्य में देखते हुए बोली ।
क्या ” संन सी रह गई मैं ”!
“हूं” उसकी आंखो से दो बूंद गिरकर रेत में गायब हो गए। दो मिनट तक हम दोनों चुप बैठे रहे फिर उसने ही शुरू किया,” कभी कभी मुझे लगता है कि आदित्य को कत्थक क्लास में डाल कर मैंने गलती की”।
“नहीं तूने कुछ गलती नहीं की, वो तो बस एक कला है और सब कत्थक करने वाले यही तो नहीं करते” मैंने उसे दिलासा दिया।
पर अनिमेष का यही मानना है। वो तो कहते हैं कि ये सब मेरी वज़ह से हुआ है ”
” तो इस शादी में अनिमेष भाऊ की रजामंदी नहीं है “
“नहीं, वो तो आदित्य और विकी का चेहरा भी नहीं देखना चाहते। उनका बस चले तो वो आदित्य को घर में भी न घुसने दें। पर मैं आदित्य को घर आने से कभी भी नहीं रोकूंगी, बेटा है मेरा, अनिमेष के इस रुख़ से पहले वो कितना दुःखी होता था पर अब कुछ नहीं कहता ”
” पता है अमू, कभी कभी मुझे लगता है कि भगवान ने मेरे ही बेटे को ऐसा क्यों बनाया, सब के बेटे तो नॉर्मल होते हैं ” उसने दूर खड़े गौरव को देखते हुए कहा ।
” तेरा बेटा स्पेशल है न, उसमे टैलेंट भी तो स्पेशल है ” मैंने उसे दिलासा देते हुए कहा। पर मुझे भी आज गौरव के साधारण लड़कों जैसा होने की बड़ी खुशी हो रही थी। उसके हाथ देखकर मैंने कहा ‘ ये तो वही कंगन है न…..”
” हां, बहू के लिए लिए थे पर अब ….. तो अब मैंने ही पहन लिए । विकी के लिए डायमंड रिंग ली है।
” तू खुश है ” मेरे मुंह से निकल गया…
वो फीकी सी हंसी हंस कर बोली ” क्या फर्क पड़ता है कि मैं खुश हूं या नहीं, मेरे लिए आदित्य की ख़ुशी ज्यादा ज़रूरी है। उसने मुझे बहुत प्यार दिया है, मेरे मुंह से बात निकली नहीं कि पूरी हुई ”
” बस उसकी शादी किसी लड़की के साथ होने की बात छोड़ कर, उसने मुझे समझाया कि मेरे कहने से अगर वो किसी लड़की से शादी कर भी लेगा तो वो उसे खुश नहीं रख पाएगा।
” तो किसी लड़की की जिंदगी क्यों बर्बाद करनी, है न ” वो मेरी सहमति के लिए मेरी तरफ देखने लगी।
“हां” मैं अचकचा के बोल पड़ी। ” क्या करता है ये विकी, कहीं तेरे बेटे के नाम और पैसे के लिए तो नहीं। ”
” नहीं, वो पैसे वाले बाप का बेटा है और फैशन डिज़ाइनर है। उसे पैसे की कोई कमी नहीं ”
” उसके मां बाप तैयार हो गए ? ”
” पहले नहीं थे, अब हो गए, यार उनके दो बेटे हैं, बड़े बेटे का तो एक बेटा भी है। मेरा तो इकलौता बेटा है …..”
” फिर बाल बच्चे ……”
” कहता है कि आजकल कितने बड़े बड़े लोग सेरोगेसी की मदद से माता पिता बन रहे हैं तो वो भी बन जाएंगे ”
” हां अब तो कानून भी उनके साथ है ” मै कुढ़ के बोली ।
” अमु वो दोनो पिछले दो साल से साथ रह रहे थे पर अब कानूनन शादी कर रहे हैं” ” तू बुरा मत मानना, मैं अपनी तरफ से इस शादी में किसी को नहीं बुला रही, वहां सब आदित्य और विकी की पहचान वाले ही होंगे। कोई पहचान वाले को बुलाने का मेरा मन ही नहीं हुआ” उसने मुझे न बुलाने की सफाई दी। |
” मैं समझ सकती हूं ” मैंने उसका हाथ दबाया ।
“अमु मुझे कभी कभी अनिमेष के लिए भी दुःख होता है। आदित्य जितना फेमस होता जा रहा है अनिमेष उतना ही खुद को घर में बंद करते जा रहे हैं। फ्लैट से नीचे तक नहीं उतरते….. बहुत जरूरी हो तो फटाफट उतर कर गाड़ी में घुस के शीशे चढ़ा लेते हैं, कोई भी इंसान उनकी तरफ देख कर कुछ भी बात कर रहा हो तो उन्हे लगता है कि उनकी ही हंसी उड़ा रहा है। मैं तो दोनों के बीच ऐसे फंसी हूं कि
” जब आदित्य की बात सुनती हूं तो मुझे उस पर भी तरस आता है कि उसकी क्या गलती है ” वो बेबसी से बोली ।
तब तक गौरव आ गया था ” चलो मां, देर हो रही है ”
” हां चलो ”
” अदिति खुद को संभालो, मैं चलती हूं, बाय ”
” अरे तेरा फोन नंबर तो दे दे, कभी दिल हल्का करने के लिए फोन तो कर सकती हूं न ” अदिति बोली
” हां हां बिल्कुल ” ” तू अपना नंबर दे मैं मिस कॉल देती हूं
आठ दिन बाद न्यूज पेपर के फिल्मी पन्ने पर आदित्य की शादी और रिसेप्शन की खबर सबसे ऊपर थी। बड़ी बड़ी नामी हस्तियों की फोटो से पेज भरा पड़ा था कि कौन कौन आया, एक फोटो अदिति की भी थी पर अनिमेष कहीं भी नहीं था। पेपर देख कर बेटा बोला “किसी को बता भी नहीं सकता कि इसकी मम्मी मेरी मम्मी की फ्रेंड है, काश ये ऐसा ना होता…….” ।