एक दिन एक बेटे ने पिता से कहा पापा आपने अपनी जिंदगी में किया ही क्या है, कौन सी धन दौलत कमाई आपने और हमारे खातिर रखा ही क्या है ।
इतने पर पिता शांत होकर आंखों में आंसू लिए आहिस्ता से बोला, बेटा मैंने जो गलती की है उसे तुम कभी न दोहराना, सफलता का मतलब मुझ जैसों को न समझाना। जो अपनों के लिए तपता है, भागता है, सर्दी हो या गर्मी या फिर हो बरसात हर दिन कुछ कमाने की आस लिए घर से हर हाल में निकल पड़ता है। बारिश में जो भीगता, तेज धूप में खुद को जलाता, अपनी सारी पसंद-नापसंद को नजर अंदाज करता,
परिवार के हर सदस्य के लिए जिंदगी भर जिंदगी से ही लड़ता , कोई कमी न रह जाए उन सबके परवरिश में यह सोच कर रोज एक मशीन की तरह है चलता । बच्चों की हर ख्वाहिश पूरी करने के लिए हर रोज घर से मन-बेमन है निकलता । जिसकी उम्र भर की दौलत उसके अपने संतान होते हैं, क्या दौलत कमाई है जीवन में यही ताना वे अक्सर सुनते हैं।
इतना सुन बेटा स्तब्ध हो गया उसकी जो भी थी शिकायत मानो आंसुओं में बह गया। जैसे पिता की बात दिल में उतर गई हो, एक पिता के लिए पिता होना क्या है उसे अब समझ आ गई हो। अब बेटा ये एहसास कर पा रहा था, पिता के पिता होने का दर्द मानो वो जी पा रहा था। उसकी शिकायत अब खत्म हो चली थी, आंखों में बस अब क्षमा औ याचना रह गई थी । वह पिता से गले मिल फफक – फफक कर रो रहा था, और पिता अपने सीने से उसे लगा पिता होने का फर्ज अदा कर रहा था !